पहले 50 रुपये की मैगी बेचते थे, अब दो साल में 17 करोड़ रुपये के बेचे फूल, जानें डिटेल

पहले 50 रुपये की मैगी बेचते थे, अब दो साल में 17 करोड़ रुपये के बेचे फूल, जानें डिटेल

आज इस मिशन के तहत ही दूसरे देशों से मंगाए जाने वाले फूलों की लेह में खेती शुरू हो गई है. किसानों को संस्थान की ऐसी मदद मिल रही है कि सुबह तोड़े गए फूल शाम को दिल्ली की मंडियों के लिए रवाना हो जाते हैं और टूटने से पहले ही बिक भी जाते हैं.

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पहले 50 रुपये की मैगी बेचते थे, अब दो साल में 17 करोड़ रुपये के बेचे फूल, जानें डिटेलहिमाचल प्रदेश, पालमपुर में लगे फूल. फोटो क्रेडिट-किसान तक

वो इलाके जहां पर्यटकों का बहुत आना-जाना लगा रहता है, लेकिन खेती-किसानी की बात करें तो ना के बराबर होती है. या फिर लेह जैसे इलाकों में तो खेती करने के बारे में वहां के लोग सोचते भी नहीं थे और 50 रुपये की मैगी बेचकर ही अपना गुजारा चला रहे थे. लेकिन केन्द्र  सरकार के फ्लोरीकल्चकर मिशन की बदौलत आज ऐसे किसान करोड़ों रुपये के फूल बेच रहे हैं. इस मिशन में किसानों की मदद कर रहा है इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश. 

फूलों का 100 करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट कारोबार है. जिसमे लिलियम और टयूलिप खास हैं. ठंडे इलाकों में मेरी गोल्ड, जरबरा, कारनेशंस, जिप्सो फिला और ग्लेडियोलस की खेती को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है. लेह में लिलियम और टयूलिप उगाय जा रहे हैं. इसके अलावा मेडिशनल वैल्यू और तेल-खुशबू के कारोबार से संबंधित फारचूला, कैलेंडूला, मैरी गोल्ड, दमस्क रोज के अलावा गुलाब की कई और वैराइटियां भी खूब उगाई जा रही हैं.

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लाहौल-स्पीती और लेह के किसानों ने बेचे करोड़ों के फूल

आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. सनत ने किसान तक को बताया कि फ्लोरीकल्च‍र मिशन के तहत ऐसे किसानों की मदद की जा रही है जो पहले से फूलों की खेती कर रहे हैं और किन्हीं  कारणों के चलते वो पिछड़े हुए थे. या फिर जहां फूलों की खेती की बहुत संभावनाए हैं, लेकिन लोग वहां कर नहीं रहे थे.  अगर हम हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लेह की बात करें तो यहां 650 हेक्टेयर में खेती करने वाले करीब 17 सौ किसानों को हमने अपने साथ जोड़ा है. फूलों से जुड़ी खेती के लिए उन्हेंत हर संभव मदद दी गई है. आज उसका रिजल्ट ये है कि दो साल के अंदर ही किसानों ने चंडीगढ़ और दिल्लीं जैसी मार्केटमें 17 करोड़ रुपये के फूल बेच दिए हैं.

मिशन के तहत ऐसे की जा रही है किसानों की मदद

डॉ. सनत ने बताया कि जो भी किसान फ्लोरीकल्हर मिशन के तहत जुड़ता है तो उसे उसके एरिया और मौसम के हिसाब से फूलों के पौधे लगाने के लिए दिए जाते हैं. साइंटीफिक तरीके से फूलों की खेती कैसे करनी है यह भी बताया जाता है. इसके साथ ही फूलों की ग्रेडिंग और तोड़े गए फूलों की पैकेजिंग भी सिखाई जाती है. इतना ही नहीं इलाकों के हिसाब से हमने किसानों के ग्रुप बनाए हुए हैं. ग्रुप को बाजारों के साथ भी जोड़ा हुआ है. जब ग्रुप में किसानों के पास फूल इकट्ठा हो जाते हैं तो हम उन्हें  10 डिग्री तक तापमान मेंटेन करने वाली एसी गाड़ी देते हैं. इसी गाड़ी में फूल रखकर किसान उन्हें चंडीगढ़ और दिल्लीं की मंडियों में ले जाता है. 

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जो फूल एक्सपोर्ट होते थे वो अब लेह में हो रहे हैं

डॉ. सनत ने बताया कि खासतौर पर लिलियम और टयूलिप के फूल एक्सपोर्ट किए जाते हैं. अगर सभी तरह के फूल और उनके पौधों की बात करें तो हर साल 100 करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट होता है. लेकिन अच्छी बात यह है कि फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत रेयर फूल लिलियम और टयूलिप भारत में लेह इलाके में उगाय जा रहे हैं. किसानों की भी खूब कमाई हो रही है. यह पहला मौका है जब लेह में फूलों की खेती की गई है. और सबसे बड़ी बात यह है कि इस मिशन के तहत लेह में उगे फूल सीधे दिल्लीं की मंडियों में जा रहे हैं. 

बड़ा है मैरी गोल्ड फूल का बाजार

मैरी गोल्ड फूल के बारे में बात करते हुए डॉ. सनत ने बताया कि यह एक ऐसा फूल है जिसका बहुत बड़ा बाजार है. खासतौर पर शादी और राजनीतिक रैलियों में इसकी बहुत डिमांड रहती है. इसके अलावा मंदिरों में हमेशा इसकी जरूरत बनी रहती है. इसी को देखते हुए हिमाचल के कई बड़े मंदिरों के आसपास हमने कुछ क्लस्ट र बनाए हैं, जहां किसान मैरी गोल्ड की खेती कर रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. यह जरूरी नहीं कि मैरी गोल्ड ठंडे इलाकों में ही होगा, मैदानी इलाकों में भी ये खूब होता है. किसान एक साल में इसकी तीन-तीन फसल ले रहे हैं. 

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