इफको के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने कहा है कि अगर दूध को वैल्यू एडेड नहीं किया जाता तो अमूल सफल नहीं होता. अमूल की सफलता का रहस्य ही यही है कि उन्होंने दूध में वैल्यू एड किया. इसी तरह से किसानों को तभी सफल बनाया जा सकता है जब उनके प्रोडक्ट को वैल्यू ऐड किया. किसी भी कृषि उपज में वैल्यू एडिशन होगा तो उसका दाम अच्छा मिलेगा, जिससे किसानों की तरक्की होगी. किसान पीछे क्यों हैं इसका कारण जानने से ज्यादा जरूरी है कि उसका समाधान खोजा जाए और उस पर अमल हो. किसानों और सहकारिता के माध्यम से ही यह देश समृद्ध बनेगा.
संघानी श्रीनगर स्थित केद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान (CITH) में कॉन्फेडरेशन ऑफ एनजीओ ऑफ इंडिया (CNRI) और वर्ल्ड इकोनॉमिक कोऑपरेटिव फोरम की ओर से बागवानी के विकास पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि किसानों को समृद्ध तभी बनाया जा सकता है जब उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार से जोड़ा जाए. इसके लिए सहकारिता मंत्रालय अब किसानों को सीधे एक्सपोर्ट से जोड़ने के लिए कंपनी बनाकर काम कर रहा है. इसके परिणाम कुछ साल में देखने को मिलेंगे. यह कोशिश भारतीय कृषि की तस्वीर बदलकर रख देगी.
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सीआईटीएच के डायरेक्टर डॉ एमके वर्मा ने कहा कि अखरोट और सेब जैसे कई फसलों के मामलों में भारत पहले बहुत पीछे था, लेकिन अब इसकी उत्पादकता में बड़े-बड़े देशों को हम टक्कर दे रहे हैं. हमारे पास ऐसी किस्में और ऐसी तकनीक उपलब्ध हैं कि हम स्विट्जरलैंड जैसे देशों जितनी उत्पादकता ले सकते हैं. नई वैरायटी जो किसानों को ज्यादा लाभ देगी उनको विकसित करने का काम लगातार चल रहा है.
धानुका ग्रुप के चेयरमैन आरजी अग्रवाल ने कहा कि भारत में किसानों के पीछे रहने के पांच मुख्य कारण हैं. पहला यह कि तमाम फसलों की उत्पादकता दुनिया के तमाम देशों से बहुत कम है. दूसरा कारण यह है कि किसान तक नई तकनीक नहीं पहुंच पा रही है. तीसरा कारण यह है कि कंज्यूमर कृषि उपज की जो कीमत अदा करता है किसानों को उसका सिर्फ 20 से 30 परसेंट ही मिलता है. यह ठीक नहीं है. उनका हिस्सा बढ़ाना चाहिए.
चौथी बात यह है कि पानी का सही यूटिलाइजेशन नहीं है. माइक्रो इरिगेशन के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा एरिया को सिंचाई के तहत कवर करना पड़ेगा. पांचवी और बड़ी दिक्कत यह है कि यहां किसानों को नकली कीटनाशक, उर्वरक और बीज मिल रहा है. इन समस्याओं का समाधान हो जाए तो देश की बहुत तरक्की होगी.
अमूल डेयरी के एमडी अमित व्यास ने अमूल की सफलता की कहानी बताई. उन्होंने कहा कि हमारे साथ करीब 35 लाख किसान जुड़े हुए हैं. हम उनको उनका हिस्सा सीधे उनके अकाउंट में देते हैं. पूरी व्यवस्था ट्रांसपेरेंट है. ट्रस्ट वाली है. इसलिए हम इतना आगे बढ़ पाए. कोई भी संस्था किसानों का ट्रस्ट जीतकर काम करेगी तो आगे बढ़ेगी.
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श्रीनगर स्थित शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ. नजीर अहमद गनाई ने कहा कि अब देश को विकसित बनाने का लक्ष्य लेकर काम हो रहा है और विकसित बनाने के लिए लक्ष्य में कृषि की बहुत बड़ी भूमिका होगी. कृषि और सहकारिता के बिना देश विकसित नहीं हो सकता. उसमें भी बागवानी का योगदान बहुत बड़ा होगा. अब खाद्यान्न फसलों की जगह लोगों की फ़ूड हैबिट में फल और सब्जियों का शेयर बढ़ रहा है, यह हॉर्टिकल्चर के लिए सुखद संकेत है.
सीएनआरआई के सेकेट्री जनरल बिनोद आनंद ने कहा कि इंडियन ट्रांस हिमालयन क्षेत्र में सहकारी समितियां सरकार के साथ मिलकर इस दिशा में काम करेंगी ताकि बागवानी फसलों की खेती करने वाले किसानों की तरक्की हो. हिमालयल रीजन और सीमांचल प्रदेशों की बागवानी फसलों को बाजार से कैसे जोड़ा जाए और इसके क्रियान्वयन की नीति बनाई जाए. भारत ने 5 लाख ट्रिलियन की इकोनॉमी होने का लक्ष्य रखा है. यह लक्ष्य बिना कृषि क्षेत्र के पूरा नहीं हो सकता. कृषि क्षेत्र में भी बागवानी फसलों पर फोकस करना होगा. बागवानी फसलों के उत्पादन वाली जगह से बड़े शहरों में जल्दी से जल्दी उसे भिजवाने की व्यवस्था करनी होगी. उनके लिए स्टोरेज का ऐसा इंतजाम करना होगा जिससे कि उपज खराब न हो और उन्हें अच्छा दाम मिल सके.
कार्यक्रम में एनसीईडीएक्सह के एमडी अरुण रस्ते, जय प्रकाश नारायण आंदोलन में शामिल रहे रघुपति सिंह, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय इंफाल के पूर्व कुलपति आरबी सिंह, आईएफएस अधिकारी एसके सिंगला, सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट संवेदना वर्मा, वैमनीकॉम की डायरेक्टर हेमा यादव, ग्रामीण क्षेत्र के विशेषज्ञ विश्वास त्रिपाठी, जानेमाने बागवानी वैज्ञानिक डॉ. एचपी सिंह, आईआईपीए के प्रोफेसर राजबीर शर्मा और उर्वरक क्षेत्र के विशेषज्ञ जितेंद्र शर्मा सहित कई लोगों ने बागवानी क्षेत्र के विकास के मुद्दे पर अपने विचार रखे.
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