विकसित भारत के लिए विकसित किसान जरूरीभारत का सपना है कि 2047 तक वह एक 'विकसित भारत' बने. यह सपना तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक हमारे गांव और किसान विकसित न हों. भारत का कृषि क्षेत्र बहुत बड़ा और विविधताओं से भरा है. यहां कश्मीर के सेब के बागान भी हैं और केरल के मसालों के खेत भी. हर किसान की जरूरत, चुनौती और काम करने का तरीका अलग है. इसलिए, जब हम खेती-किसानी में नई और उन्नत तकनीकों को लाने की बात करते हैं, तो हमें यह समझना होगा कि कोई एक समाधान सभी के लिए काम नहीं करेगा.
जो तकनीक महाराष्ट्र के अंगूर किसान के लिए फायदेमंद है, जरूरी नहीं कि वह बिहार के मक्का किसान के भी काम आए. नीति आयोग (NITI Aayog) की एक रिपोर्ट इस बात को बहुत अच्छे से समझाती है. यह रिपोर्ट भारत के किसानों को उनकी आय, जमीन के आकार, सिंचाई के साधनों और तकनीक अपनाने की क्षमता के आधार पर तीन मुख्य श्रेणियों में बांटती है. जिसको समझ कर नीतिया बना सकते हैं.
भारत में 'छोटे जोत यानी आकांक्षी किसान सबसे बड़ा समूह हैं, जिनमें देश के 70 से 80 फीसदी किसान शामिल हैं. ये वे किसान हैं जो आगे बढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन उनके पास साधनों की भारी कमी है. इनके पास 5 एकड़ से कम जमीन होती है और खेती से सालाना आमदनी 17,000 से 60,000 रुपये के बीच ही हो पाती है. इनकी खेती मुख्य रूप से बारिश के भरोसे चलती है, जिससे ये बस गुजारे लायक (जैसे गेहूं या धान) ही उगा पाते हैं.
ये किसान नई तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर पाते, क्योंकि एक तो ये महंगी होती है और दूसरा, इन्हें इन पर 'भरोसा' भी नहीं होता. इन किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती 'खेती का जोखिम' है. उन्हें समय पर न तो सलाह मिलती है, न पैसा और न ही अच्छे बीज. उनकी पूरी खेती मॉनसून का जुआ है. फसल खराब होने या सही दाम न मिलने पर वे बुरी तरह टूट जाते हैं, इसलिए उन्हें खेती के साथ-साथ मजदूरी भी करनी पड़ती है. वे कोई भी नया 'रिस्क' लेने से डरते हैं.
दूसरी श्रेणी 'विकासशील किसानों' की है, जो भारत के कुल किसानों में 15 से 20% हैं. ये वे किसान हैं जो 'बदलाव की राह' पर चल पड़े हैं. वे अब सिर्फ पेट भरने के लिए (पारंपरिक) खेती नहीं कर रहे, बल्कि बाजार में बेचने के लिए (व्यावसायिक) खेती की ओर बढ़ रहे हैं. इनके पास 5 से 25 एकड़ तक मध्यम आकार की जमीन होती है और इनकी सालाना कृषि आय 1 लाख से 2 लाख रुपये के बीच होती है. ये किसान जागरूक हैं और पानी बचाने वाली तकनीकें, जैसे ड्रिप (टपक सिंचाई) या स्प्रिंकलर, इस्तेमाल करने लगे हैं.
वे अनाज के साथ-साथ सब्जियां और नकदी फसलें (जैसे कपास, गन्ना) भी उगा रहे हैं. ये स्मार्टफोन से मौसम और कीमत की जानकारी तो रखते हैं, लेकिन इनकी दो मुख्य चुनौतियां हैं. पहली, उन्हें ऐसी सलाह चाहिए जो खास उनके खेत, मिट्टी और मौसम के हिसाब से हो. दूसरी, बाजार तक सीधी पहुंच न होने के कारण बिचौलिए उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा ले जाते हैं और उन्हें उपज का सही दाम नहीं मिल पाता.
तीसरी श्रेणी 'उन्नत किसानों' की है, जो भारत में केवल 1 से 2% ही हैं. ये किसान नहीं, बल्कि 'कृषि-उद्यमी' (Agri-entrepreneurs) हैं, जो बड़े पैमाने पर बिजनेस की तरह खेती करते हैं. इनके पास 25 एकड़ से ज्यादा जमीन होती है और इनकी सालाना आय 4 लाख रुपये से कहीं ज्यादा होती है. ये खेती की सबसे आधुनिक तकनीकों, जैस ऑटोमेशन यानी खुद चलने वाली मशीनों का इस्तेमाल करते हैं और विदेश एक्सपोर्ट क्वालिटी की फसलें उगाते हैं.
ये नई तकनीकों पर प्रयोग करने से नहीं डरते. लेकिन, इनकी चुनौतियां भी अलग हैं. इन्हें ऐसी एडवांस मशीनें (जैसे रोबोट, ऑटोमैटिक हार्वेस्टर) चाहिए जो भारत में आसानी से मिलती नहीं हैं. साथ ही, इन्हें टेक्नोलॉजी समझने वाले 'प्रशिक्षित मजदूरों' की कमी महसूस होती है और अक्सर जटिल सरकारी नियमों और कागजी कामों में भी उलझना पड़ता है.
सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि पूरा कृषि सिस्टम ही एक चुनौती है. भारत के सभी किसान, चाहे वे छोटे हों या बड़े, कुछ आम मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. सबसे पहले, खेती की लागत बीज, खाद, मजदूरी आदि 20 से 40% तक बढ़ गई है. दूसरा, पैदावार जैसे गेहूं चीन जैसे देशों से काफी कम है. तीसरा, बिचौलियों के कारण किसानों को उनकी मेहनत का सही दाम सिर्फ 30-40% नहीं मिल पाता. चौथा, 52% किसान परिवार कर्ज के जाल में फंसे हैं. पांचवां, कोल्ड स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट की कमी से 15-20% अनाज और सब्ज़ियां बर्बाद हो जाती हैं.
आखिर में, मौसम का बदलता मिजाज जलवायु परिवर्तन खेती के लिए एक बड़ा खतरा है, जिससे भविष्य में पैदावार घट सकती है. अनुमान है कि 2080 तक मुख्य फसलों की पैदावार 10-50% तक घट सकती है. 'विकसित भारत' का सपना पूरा करने के लिए हमें इन सभी चुनौतियों से निपटना होगा.
भारतीय किसानों तक नई तकनीक पहुंचाने में तीन मुख्य बाधाएं हैं. पहली, देश के 80% 'आकांक्षी' यानी छोटे किसान हैं, जिनके पास 'भरोसा' और 'पैसा' नहीं है. इसी डर से वे बाजार में मौजूद ड्रिप जैसी तकनीक भी नहीं अपना पाते. दूसरी बाधा 'विकासशील' यानी मध्यम किसानों के लिए है, जहां लैब में बनी AI जैसी तकनीकें उन तक नहीं पहुंच पातीं. इसका कारण 'सही हुनर' जैसे ड्रोन ऑपरेटर और गांव में 'सुविधाओं' जैसे इंटरनेट, बिजली की कमी है.
तीसरी बाधा 'उन्नत' किसानों के सामने है, जिन्हें रोबोटिक्स जैसी जो नई तकनीकें चाहिए, वे अभी 'लैब' में ही बन रही हैं. खेती में 'एक समाधान सबके लिए' काम नहीं करेगा. 'विकसित भारत' का सपना पूरा करने के लिए हमें तीनों स्तरों पर काम करना होगा- 'आकांक्षी' किसान को भरोसा और सस्ते समाधान देने होंगे, 'विकासशील' किसान के लिए तकनीक को स्थानीय बनाना होगा, और 'उन्नत' किसान के लिए नए अविष्कारों (Innovation) को बढ़ावा देना होगा.
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