इस साल राजस्थान में सरसों का उत्पादन 55,57,029 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है. सरसों का भाव 6000 रुपए से कम होने के कारण टोंक जिले के किसान कृषि उपज मंडी समितियों में नहीं पहुंचे. 18 फरवरी को किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने राजस्थान प्रदेश के किसानों से एक अपील की थी. जिसके तहत टोंक जिले के किसान भी 1 मार्च से 15 मार्च तक सरसों लेकर मंडी नहीं पहुंचेंगे, ताकि सरसों की बोली 6000 रुपए प्रति क्विंटल से शुरू हो. सरसों उत्पादन में राजस्थान का प्रथम जिला होने के कारण उत्पादन 551157 मीट्रिक टन है जो 9.91 प्रतिशत है.
सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5950 रुपए प्रति क्विंटल है, जिसके लिए तेल की मात्रा 36% तय की गई है. 0.25 प्रतिशत की वृद्धि के साथ, किसान को 15 रुपए मिलेंगे.
व्यापारी 42% सामग्री के आधार पर नीलामी बोलियां लगाते हैं. जिस सरसों में 42% तेल नहीं होता है, उसका मूल्य व्यापारी अपनी इच्छानुसार कुछ राशि काटकर तय करते हैं. एक प्रतिशत तेल सामग्री के लिए 150 रुपए तक की कटौती की जाती है. जबकि 35% तेल सामग्री का एमएसपी 5950 रुपए है. यदि तेल की मात्रा 35% से अधिक है, तो मूल्य में प्रति एक प्रतिशत 60 रुपए की वृद्धि की जाती है. वृद्धि या कमी एक समान होनी चाहिए.
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मंडियों में नियमों के विरुद्ध जाकर व्यापारी 400-600 ग्राम प्रति क्विंटल वजन ले रहे हैं. जिससे किसानों के करोड़ों रुपए व्यापारियों के घर पहुंच रहे हैं. इस पैसे का उपयोग व्यापारी मंडी अधिकारियों को खुश करने में भी करते हैं. ऐसे में किसान इन उपायों को अपनाकर सरसों के अच्छे दाम पा सकते हैं.
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टोंक में सरसों सत्याग्रह आंदोलन में युवा प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद चौधरी, जिला संयोजक बाबू लाल धाकड़, जिला अध्यक्ष गोपीलाल जाट, सामाजिक कार्यकर्ता सत्यनारायण जाट, उपाध्यक्ष सीताराम खडवाल, महासचिव हरिशंकर धाकड़, प्रचार मंत्री राधेश्याम गोहरपुरा, देवली तहसील अध्यक्ष आत्माराम जाट, निवाई तहसील अध्यक्ष दशरथ सिंह, पीपलू, टोंक तहसील अध्यक्ष सीताराम मीना, उनियारा अध्यक्ष रमेश माली, मालपुरा अध्यक्ष नाथूसिंह राठौड़, दुल्लाराम प्रजापत, महासचिव गोविंद जाट, रामकरण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पासरोटिया, गणेश जाट आदि शामिल थे.
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