आंध्र प्रदेश में पिछले एक दशक में आधे से अधिक घट गया गन्ने की खेती का रकबा, पढ़ें क्या है वजह

आंध्र प्रदेश में पिछले एक दशक में आधे से अधिक घट गया गन्ने की खेती का रकबा, पढ़ें क्या है वजह

आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में आंध्र प्रदेश में 1.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की खेती की जाती थी. उत्तरी तटीय आंध्र प्रदेश एक बेहतर गन्ना उत्पादक राज्य के तौर पर उभरा था. हालांकि पिछले लगभग एक दशक में अब हालात बदल गए हैं.

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आंध्र प्रदेश में पिछले एक दशक में आधे से अधिक घट गया गन्ने की खेती का रकबा, पढ़ें क्या है वजहगन्ने की खेती (सांकेतिक तस्वीर)

आंध्र प्रदेश के किसानों के लिए गन्ने की खेती अब एक मीठा विकल्प नहीं रही है. राज्य में गन्ने की खेती किसान छोड़ रहे हैं. आंध्र प्रदेश में गन्ने की खेती के रकबे में गिरावट दर्ज की गई है. उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में राज्य में गन्ने की खेती के रकबे में और भी कमी देखी जा सकती है. आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 2014 के बाद से ही गन्ने की खेती में किसी तरह का सुधार नहीं देखा जा रहा है. गन्ने की खेती में गिरावट आने की वजह खेती की बढ़ी लागत को बता रहे हैं. साथ ही मजदूरों की बढ़ती कमी और राज्य में चीनी मिलों के बंद होने को भी गन्ने की खेती के रकबे में गिरावट की वजह मान रहे हैं.

आंकड़ों के अनुसार साल 2014 में आंध्र प्रदेश में 1.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की खेती की जाती थी. उत्तरी तटीय आंध्र प्रदेश एक बेहतर गन्ना उत्पादक राज्य के तौर पर उभरा था. हालांकि पिछले लगभग एक दशक में अब हालात बदल गए हैं. गन्ने की खेती में लागत बढ़ गई है. खेती की बढ़ी हुई लागत के कारण कई गन्ना उत्पादक किसान इसकी खेती को छोड़कर पारंपरिक धान, मक्का और दाल की खेती की तरफ बढ़ गए हैं. कई सालों तक लगातार खेती का रकबे में गिरावट आने के बाद इस बार 2014 में गन्ने की खेती का रकबा घटकर 40,000 हेक्टेयर हो गया है. 

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घट गया गन्ने की खेती रकबा

'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र, अनकापल्ले की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. डी. आदिलक्ष्मी ने कहा कि राज्य कृषि विभाग की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार खरीफ सीजन 2024 में गन्ने की खेती के कुल 50 हजार हेक्टेयर में गन्ने की खेती की जानी थी, लेकिन इसकी तुलना में सिर्फ 40 प्रतिशत क्षेत्र में ही गन्ने की खेती की गई. उन्होंने कहा कि हालांकि गन्ने की खेती धान और अन्य फसलों की तुलना में अधिक मुनाफा देती है, लेकिन फिर भी अधिकांश किसान इससे दूर जा रहे हैं. मजदूरों की कमी, खेती की अधिक लागत के कारण (खास कर गन्ने की कटाई के लिए) और चीनी मिलों से उचित सहयोग नहीं मिलने से वे अन्य फसलों की तरफ जा रहे हैं. यही कारण है कि गन्ने का रकबा घटकर 40,000 हेक्टेयर रह गया है.

असमंजस में हैं गन्ना किसान

चित्तूर और अनकापल्ले में गन्ने की खेती सबसे अधिक संकट में है जिन्हें चीनी का कटोरा कहा जाता था. राज्य में अधिकांश सहकारी और निजी चीनी मिलें एक-एक करके बंद हो गई हैं क्योंकि सरकारें प्रबंधन और किसानों की शिकायतों का समाधान करने में विफल रहीं. आंघ्र प्रदेश गन्ना किसान संगम के अध्यक्ष कर्री अप्पा राव ने कहा कि राज्य में चीनी मिलों के एक के बाद एक संकट में फंसने के कारण कई हिस्सों के गन्ना उत्पादक इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि उन्हें उनका बकाया कब मिलेगा या मिलेगा भी नहीं. उनकी उपज कौन खरीदेगा. 

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कम हुई चीनी मिलों की संख्या

उन्होंने कहा कि एक दशक पहले तक राज्य में 29 चीन मिलें थीं जिनमें 10 सहकारी और 19 निजी थीं. अब 2024 में यह घटकर सिर्फ पांच हो गई हैं. चीनी मिलों का बंद होना राज्य में गन्ने के रकबे में गिरावट आने का मुख्य कारण है. अनकापल्ले जिले के किसानों ने कहा कि वे काफी चिंता में हैं. कुछ किसान ही हैं जो पारंपरिक गुड़ निर्माण के लिए गन्ने की खेती करते हैं बाकी अन्य किसान दूसरी खेती की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं. इसके अलावा किसान बढ़ी हुई लागत का भी हवाला दे रहे हैं और कीमत बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.

 

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