जामुन की खेती करके किसान न सिर्फ अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि देश को मधुमेह की चुनौती से लड़ने में भी सहयोग कर सकते हैं. यह फल प्राकृतिक औषधि के साथ-साथ किसानों के लिए एक स्थायी और लाभदायक आय का स्रोत भी है. आज भारत को 'दुनिया की मधुमेह (यानी शुगर) की राजधानी' के तौर पर जाना जाता है, जो एक गंभीर और चिंताजनक स्थिति है. देश की लगभग 10% युवा आबादी इस गंभीर रोग से ग्रसित है. विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में मधुमेह के मरीजों की संख्या ग्रामीण इलाकों की तुलना में लगभग दोगुनी हो चुकी है. जब शुगर के प्राकृतिक उपचार की बात आती है, तो का नाम सबसे पहले जामुन का आता है.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं प्रमुख फल रोग विशेषज्ञ डॉ एस.के. सिंह ने बताया कि जामुन न केवल स्वास्थ्य के लिए एक लाभकारी फल है, बल्कि यह किसानों के लिए भी एक उभरती हुई और बेहद लाभदायक फसल बन चुकी है. जामुन के प्रति बढ़ती जागरूकता और बाजार में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए, कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी कई उन्नत और उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों का विकास किया है. ये किस्में बेहतर स्वाद, पोषण मूल्य और व्यावसायिक उत्पादन के लिए बेहतर हैं, जो किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो रही हैं.
CISH-J-45 (बीजहीन किस्म): सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर (CISH), लखनऊ द्वारा विकसित यह किस्म अपनी बीजहीन प्रकृति के कारण विशेष महत्व रखती है. इसके फल अंडाकार, गहरे नीले रंग के, अत्यंत मीठे और रसदार होते हैं. गुजरात और उत्तर प्रदेश में इसकी खेती बड़े पैमाने पर हो रही है, जिससे उपभोक्ताओं को बीज रहित जामुन का आनंद मिलता है.
CISH-J-37: CISH, लखनऊ द्वारा ही विकसित यह किस्म गहरे काले रंग के मध्यम आकार के फलों से युक्त है. ये फल वर्षा ऋतु में पकते हैं, जिनमें गुठली छोटी और गूदा अत्यधिक रसदार होता है. यह किस्म घरेलू उपयोग और स्थानीय बाजार के लिए उत्तम मानी जाती है.
जामवंत: जामवंत जामुन की एक उन्नत किस्म है जिसे ICAR सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर (CISH), लखनऊ द्वारा दो दशकों की कड़ी मेहनत के बाद विकसित किया गया है. यह एक बौनी और घनी शाखाओं वाली जामुन की किस्म है, जो बड़े और बेहद आकर्षक बैंगनी रंग के फलों के गुच्छे देती है. यह किस्म अपने बड़े आकार, कम कसैलेपन और अधिक गूदे के लिए जानी जाती है, जिसमें 90% से अधिक गूदा होता है
राजा जामुन: यह किस्म देशभर में काफी लोकप्रिय है. इसके फल बड़े, आयताकार और गहरे बैंगनी रंग के होते हैं. इनका गूदा मीठा और रसदार होता है, और गुठली छोटी होने से खाने योग्य भाग अधिक मिलता है, जिससे बाजार में इसकी कीमत अच्छी मिलती है. यह किसानों के लिए एक भरोसेमंद विकल्प है. कुंदन: कुंदन जामुन की एक नई किस्म है, जो छोटे कद के पेड़ों वाली है. यह किस्म अधिक उपज देने वाली है और 85-90% गूदे की मात्रा के कारण किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इसके फल गोल होते हैं, और जून के मध्य में पकते हैं. इस किस्म के फलों का वजन औसतन 7 ग्राम होता है. कुंदन जामुन किसानों को कम जगह में अधिक उत्पादन का अवसर देती है.
गोमा प्रियंका: केंद्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र, गोधरा, गुजरात द्वारा विकसित यह किस्म अपने मीठे स्वाद और उच्च गूदेदारता के लिए प्रसिद्ध है. इसके फल खाने के बाद हल्की कसैलापन की अनुभूति होती है. यह बरसात के मौसम में पककर तैयार होती है और बाजार में अच्छा भाव मिलता है.
जामुन की खेती में उच्च घनत्व पौधारोपण (5x5 मीटर दूरी पर) को लाभकारी पाया गया है, खासकर वाणिज्यिक खेती के लिए. जामुन के बीज से तैयार पौधे रोपाई के 8-10 वर्षों बाद फल देना शुरू करते हैं, जबकि कलमी पौधे 4-5 वर्षों में ही फल देने लगते हैं. फलों का पकना मुख्यतः जून-जुलाई माह में होता है, जो मॉनसून से पहले की अवधि होती है. सामान्यतः बीज से उगाया गया जामुन का पेड़ औसतन 80-100 किलोग्राम फल प्रतिवर्ष देता है, जबकि कलमी पौधे 60-70 किलोग्राम उपज देते हैं.
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