बदलते भारत की बदली तस्वीर... की टैग लाइन के साथ बीते दिनों देश के कृषि सेक्टर में बड़ा अपडेट हुआ है. 11 अगस्त 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फसलों की 109 नई किस्में जारी की हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) के वैज्ञानिकों की तरफ से तैयार फसलों की 109 किस्मों के कई फायदे बताए जा रहे हैं. मसलन, इन्हें अधिक उपज देने वाली, जलवायु अनुकूल और बॉयोफोर्टिफाइड किस्में बताया जा रहा है. सवाल ये है कि आखिर, जब देश में अनाज उत्पादन अपने सर्वकालिक शीर्ष पर है. तब फसलों की नई किस्में जारी करने की जरूरत क्यों पड़ी. सवाल ये भी है कि क्या जारी की गई ये नई किस्में क्या किसानों के लिए हैं. सवाल ये भी है कि खाद्यान्न उत्पादन में इन किस्मों से क्या क्रांतिकारी बदलाव आएगा. सवाल ये भी क्या ये बदलते भारत के लिए कोई प्लान है. आज की बात में इसे समझने की कोशिश करते हैं.
पीएम मोदी ने रविवार को 109 किस्में जारी की हैं, उनमें से से 69 किस्में खेत फसलें शामिल हैं, जिसमें से चावल- 9, गेहूं- 2, मक्का- 6, दालें- 11, तिलहन- 7, चारा फसलें- 7, गन्ना- 4, कपास की 5 किस्में हैं. तो वहीं इसी तरह 40 किस्में बागवानी फसलों की है. जिसमें आम- 3, अनार-1, अमरूद- 2 किस्में शामिल हैं. वहीं सब्जी फसलों की 8 किस्में, मसालों की 6 किस्में, फूलाें की 5 किस्में शामिल हैं.
फसलों की नई किस्में समय-समय पर जारी होती हैं, लेकिन विशेष ये रहा है कि रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथों से इन किस्मों को जारी किया. प्रधानमंत्री ने इन नई फसल किस्मों के विकास के लिए वैज्ञानिकों की सराहना की.
फसलों की नई किस्में जारी करने की जरूरत क्यों पड़ी. क्या किसानों के लिए ये किस्में जरूरी है. क्या इन किस्मों के जरिए खाद्यान्न उत्पादन में क्रांतिकारी बदलाव लाने की तैयारी है. इन सभी सवालाें के जवाब मोदी सरकार के इस प्लान में छिपे हैं, जो जलवायु परिवर्तन, बॉयोफोर्टिफाइड किस्मों को केंद्र में रखकर तैयार किया गया है यानी जलवायु अनुकूल और बाॅयोफोर्टिफाइड किस्में मोदी सरकार का बदलते भारत के लिए प्लान है, जिसमें किसानों को लिए भी बहुत कुछ है.
हम सब जान रहे हैं गर्म होती धरती जलवायु परिवर्तन का कारण बन रही है. साल 2023 में भीषण ठंड और साल 2024 की प्रचंड गर्मी को इसका ट्रेलर माना जा रहा है. वहीं जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़ी इन चुनाैतियों ने कृषि को भी संंकट में डाला है. मसलन, हम सब जानते हैं कि साल 2022 में समय से पहले पड़ी गर्मी ने कैसे गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाया था. वहीं अधिक बारिश से फसलों को होने वाला नुकसान किसी से छिपा नहीं है. जलवायु परिवर्तन से जुड़ी इन समस्यों का समाधान फसलों की नई नई किस्मों और खेती के नए तरीकों के माध्यम से किया जाना है. इसी कड़ी में जलवायु अनुकूल किस्में जारी की गई हैं. भारत सरकार की तरफ से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए कुल 1500 किस्में जारी की जानी है.
ICAR की तरफ से तैयार की गई नई किस्मों का पहला गुण जहां जलवायु अनुकूल होना है. तो वहीं दूसरा गुण बॉयोफोर्टिफाइड होना है. देश में बॉयोफोर्टिफाइड किस्मों की जरूरत को वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत की रैकिंंग से समझना होगा. उससे पहले सरल शब्दों में बॉयोफोर्टिफाइड के मायने समझते हैं. यानी बॉयोफोर्टिफाइड किस्में फसलों की वह किस्में होती हैं, जिनके बीजों में इंजीनियरिंग करके पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाई जाती है.
अब हंगर इंइेक्स और बॉयोफोर्टिफाइड किस्मों की और लौटते हैं. असल में बीते साल वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत ग्लोबली 107वें स्थान पर था, जबकि ये रैंकिंग 122 देशों के बीच बनाई थी. इस सूची में भारत का स्थान पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल से भी नीचे थे. आखिर क्या वजह थी कि जब भारत में अनाज उत्पादन खपत से अधिक है. भारत का अनाज दुनिया के कई देशाें के लोगों का पेट भर रहा है. तो आखिर ऐसा क्यों. इसकी वजह कुपोषण है. यानी अनाज में उचित पोषण की कमी.
तो क्या भारत में उगाए जाने वाले अनाज में पर्याप्त पोषण की कमी और उसे दूर करने के लिए बॉयोफोर्टिफाइड किस्में जारी की गई हैं? हां ये सच है. इसे ICAR के वैज्ञानिकों की तरफ से किए गए शोध से समझने की कोशिश करते हैं. जिसकी रिपोर्ट ये कहती है कि हरित क्रांति के बाद उर्वरकों के अंंधाधुंध प्रयोग और बीजों में तकनीकी बदलाव से फसलों में पोषक तत्वों की कमी आई और जहरीले तत्व शामिल हुए. ये रिपोर्ट ये भी कहती है कि इन हालातों में अनाज साल 2040 तक खाने लायक नहीं बचेगा. ऐसे में बॉयोफोर्टिफाइड किस्में जरूरी हो जाती हैं, जो पोषण संकट का समाधान हो सकती हैं.
अब सवाल ये है कि देश के लिए फसलों की 109 किस्में जारी की गई हैं. इससे किसानों को क्या फायदा होगा. अगर समझें तो सीधे तौर पर किसानों को इससे कोई फायदा नहीं हाेगा, लेकिन ये किस्में किसानों के लिए भी फायदे का सौदा हैं. एक जलवायु अनुकूल होने के चलते जलवायु परिवर्तन से किसानों के सिंचाई समेत तकनीक में बढ़े खर्च में कमी आएगी. वहीं किसान बॉयोफोर्टिफाइड किस्मों के अनाज को साधारण अनाज की तुलना में बेहतर दाम में बेच सकते हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today