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पंजाब-हरियाणा के किसानों को मिली ‘एमएसपी’ की मलाई, बाकी के साथ कब खत्म होगा भेदभाव?

पंजाब-हरियाणा के किसानों को मिली ‘एमएसपी’ की मलाई, बाकी के साथ कब खत्म होगा भेदभाव?

अप्रैल से शुरू होने वाले रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए केंद्र ने गेहूं की एमएसपी 2275 रुपये प्रति क्‍विंटल तय की है. पंजाब में गेहूं की लागत सिर्फ 832 रुपये प्रति क्‍विंटल आती है. यानी पंजाब के किसानों को एमएसपी पर गेहूं बेचने में 1433 रुपये प्रति क्‍विंटल का फायदा मिलेगा. हरियाणा के किसानों को 1287 रुपये का लाभ होगा, जबकि महाराष्‍ट्र के किसानों के हाथ सिर्फ 80 रुपये क्‍विंटल का ही फायदा आएगा. ऐसे में एमएसपी की गारंटी से बड़ा मुद्दा तो भेदभाव खत्‍म करने का है.  

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एमएसपी पर पंजाब-हर‍ियाणा में आंदोलन क्यों? एमएसपी पर पंजाब-हर‍ियाणा में आंदोलन क्यों?

पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच देश में एक बार फिर न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) पर बहस जारी है. किसान स्‍वामीनाथन कमीशन के फार्मूले C2+50% के अनुसार फसलों की लागत गणना पर आधारित एमएसपी और उसकी लीगल गारंटी की मांग कर रहे हैं. जबकि, एमएसपी का लाभ कैसे पंजाब, हरियाणा से आगे बढ़कर अन्‍य राज्‍यों को भी मिले, बड़े किसानों से आगे बढ़कर छोटे किसानों तक भी इसका फायदा पहुंचे...इस पर ही अभी काफी काम करने की जरूरत है. एमएसपी से जुड़ा ही एक मुद्दा यह भी है कि जब हर राज्‍य में फसलों की लागत अलग-अलग आती है तो फिर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर एमएसपी का रेट एक ही क्‍यों है?

वर्तमान में एमएसपी की जो व्‍यवस्‍था है वह कुछ सूबों के लिए बहुत लाभकारी तो कुछ के लिए नुकसान वाली है. इस समय हर राज्‍य का मिनिमम वेज और मनरेगा मजदूरी तक अलग है. डीजल का दाम अलग-अलग है तो फिर एक एमएसपी पूरे देश के लिए कैसे व्‍यवहारिक हो सकती है. कैसे हर राज्‍य के किसान के लिए वो फायदे का सौदा साबित हो सकती है. एमएसपी पर धान और गेहूं खरीदने में सरकार सबसे ज्‍यादा पैसा खर्च करती है और इसका सबसे ज्‍यादा फायदा पंजाब को ही मिलता है. आज किसान परिवारों की आय के मामले में पंजाब अव्‍वल है तो इसमें एमएसपी के तौर पर मिलने वाली सबसे ज्‍यादा रकम का भी बड़ा योगदान है.

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धान की राज्यrवार लागत कितनी है?

किसे घाटा और किसे फायदा

  • अप्रैल से शुरू होने वाले रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए केंद्र ने गेहूं की एमएसपी 2275 रुपये प्रति क्‍विंटल तय की है. पंजाब में गेहूं की लागत सिर्फ 832 रुपये प्रति क्‍विंटल आती है. यह देश में सबसे कम है. यानी पंजाब के किसानों को एमएसपी पर गेहूं बेचने में 1433 रुपये प्रति क्‍विंटल का फायदा मिलेगा.
  • हरियाणा में किसानों को प्रति क्‍विंटल गेहूं पैदा करने पर मात्र 988 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. इस तरह यहां 1287 रुपये का फायदा होगा.
  • अब आते हैं महाराष्‍ट्र पर जहां पर लागत 2195 रुपये प्रति क्‍विंटल आती है. अब अगर यहां भी एमएसपी 2275 रुपये प्रति क्‍विंटल के ही रेट पर मिलेगा तो सूबे के किसानों को प्रति क्‍विंटल सिर्फ 80 रुपये का ही फायदा होगा.
  • देश के सबसे बड़े गेहूं उत्‍पादक उत्‍तर प्रदेश में लागत 1198 रुपये आती है. इस तरह यहां एमएसपी पर गेहूं बेचने से किसानों को प्रति क्‍विंटल 1077 रुपये का ही फायदा मिलेगा.
  • हिमाचल प्रदेश में एक क्‍विंटल गेहूं उगाने में 1738 रुपये की लागत आती है. इस तरह यहां एमएसपी से सिर्फ 537 रुपये क्‍विंटल का फायदा होगा.
  • इसी तरह खरीफ मार्केटिंग सीजन 2023-24 में पूरे देश के लिए धान की एमएसपी 2183 रुपये प्रति क्‍विंटल थी. पंजाब के किसानों को धान की लागत 864 रुपये प्रति क्‍विंटल आ रही थी. यानी पंजाब के किसानों को प्रति क्‍विंटल 1319 रुपये का फायदा हुआ.
  • हरियाणा में लागत प्रति क्‍विंटल 1270 रुपये आती है. इसका मतलब यह है कि यहां के किसानों को एमएसपी पर धान बेचने पर प्रति क्‍विंटल 913 रुपये का फायदा हुआ. 
  • महाराष्ट्र में प्रति क्‍विंटल धान पैदा करने की लागत ही एमएसपी से कहीं काफी अधिक 2839 रुपये प्रति क्‍विंटल थी. इसलिए वहां के किसानों के लिए धान की एमएसपी किसी काम की नहीं है.  
  • उत्‍तर प्रदेश के किसानों को एक क्‍विंटल धान पैदा करने में औसतन 1445 रुपये खर्च करने पड़े. इस तरह यहां पर एमएसपी मिल भी जाए तो प्रति क्‍विंटल सिर्फ 738 रुपये का ही फायदा होगा.
  • ओडिशा में धान उत्‍पादन की लागत प्रति क्‍विंटल 1693 रुपये आती है. इसका मतलब यह है कि एमएसपी पर धान बेचने पर यहां के किसानों को प्रति क्‍विंटल सिर्फ 490 रुपये का ही फायदा हुआ.

निष्‍कर्ष यह है कि गेहूं और धान दोनों को एमएसपी पर बेचने पर पंजाब को सबसे ज्‍यादा फायदा हो रहा है. हरियाणा के किसानों को भी गेहूं बेचने पर अन्‍य राज्‍यों के मुकाबले अधिक फायदा मिल रहा है. कम लागत होने की वजह से हरियाणा, पंजाब को धान और गेहूं पर एमएसपी का सबसे ज्‍यादा फायदा मिल रहा है. एमएसपी तय करने का जो तौर-तरीका है उससे कुछ राज्यों के लिए एमएसपी किसी काम की नहीं रह गई है. अन्‍य सूबों को भी फायदा देना है तो दूसरी फसलों की खरीद एमएसपी पर बढ़ानी होगी. इस समय जितनी खरीद धान-गेहूं की होती है उतनी किसी और फसल की नहीं होती.

गेहूं की राज्य वार लागत कितनी है?

गारंटी से बड़ा सवाल  

दरअसल, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) एमएसपी तय करने का काम करता है. यह संस्‍था फसलों की मांग-आपूर्ति की परिस्थिति, घरेलू और वैश्विक मार्केट प्राइस ट्रेंड्स और अलग-अलग राज्यों की इनपुट कॉस्ट का औसत निकालकर एमएसपी तय कर देती है. राज्‍यों की सिफारिशें दरकिनार कर दी जाती हैं. हालांकि, सीएसीपी ने खुद अपनी ही तमाम रिपोर्टों में यह बताया है कि कैसे एक ही फसल की लागत हर राज्य में अलग अलग होती है. तो फिर सवाल ये उठता है कि फिर एमएसपी एक क्यों?

क्‍या इसीलिए एमएसपी की वर्तमान व्‍यवस्‍था पूरे देश के किसानों को जोड़ नहीं पाती. गारंटी मिल भी जाए तो क्‍या पंजाब, हरियाणा, मध्‍य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को छोड़कर किन्‍हीं दूसरे राज्‍यों के किसानों को उसका फायदा मिलेगा? दरअसल, एमएसपी पर गारंटी से बड़ा सवाल भेदभाव का है, जिसकी वजह से कम और अधिक लागत लगाने वाले किसानों को एक ही एमएसपी मिल रहा है.

क्‍यों कम-अधिक होती है लागत

अब कुछ लोगों के मन में यह सवाल यह आ सकता है कि आखिर हर राज्‍य में लागत कैसे घट और बढ़ जाती है. दरअसल, हर राज्य में श्रमिकों का खर्च अलग-अलग है, खेती में इस्‍तेमाल होने वाली मशीनों, खाद, पानी, कीटनाशक, वर्किंग कैपिटल, जमीन की रेंटल वैल्यू और बीजों के दाम अलग-अलग होते हैं.

कहीं पानी बहुत कीमती है, कहीं फ्री में मिल रहा है. कहीं खेती के लिए बिजली फ्री है तो कहीं इसके लिए पैसा देना पड़ता है. कुछ राज्‍यों में फसल बीमा फ्री है तो कुछ में किसानों को खुद पैसा देना पड़ता है. इसलिए एक ही फसल की लागत किसी सूबे में कम किसी में अधिक है. एमएसपी तय करने का पैमाना काफी दोषपूर्ण है. इससे उन राज्यों के किसानों के साथ अन्याय होता है जिनमें लागत अधिक आती है.  

काम नहीं आती राज्‍यों की सिफारिश

राज्‍य सरकारें हर साल केंद्र से अपने सूबे में लागत के हिसाब से एमएसपी देने की सिफारिश करती हैं, लेकिन उनकी सिफारिशों को दरकिनार करके एक औसत निकालकर यह बताया जाता है कि देश में किस फसल की कितनी लागत है और उस आधार पर एमएसपी कितनी होगी. केंद्र ने खरीफ मार्केटिंग सीजन 2020-21 के लिए धान की एमएसपी 1,868 रुपये क्विंटल तय की थी. जबकि उस साल के लिए महाराष्ट्र ने धान की एमएसपी 3,968 रुपये प्रति क्विंटल मांगी थी. बिहार ने 2,532 रुपये और ओडिशा सरकार ने 2,930 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी की मांग की थी.

केंद्र को भेजा गया उत्तर प्रदेश सरकार का प्रस्ताव.

अगस्‍त 2020 में उत्‍तर प्रदेश के विशेष सचिव विद्याशंकर सिंह ने केंद्रीय कृषि सचिव को पत्र लिखकर यूपी के लिए गेहूं की एमएसपी 2,710 रुपये प्रति क्विंटल तय करने की मांग उठाई थी. जबकि रबी मार्केटिंग सीजन 2020-21 के लिए केंद्र सरकार ने एमएसपी 1975 रुपये तय की थी. यानी राज्‍य की मांग के मुकाबले एमएसपी 735 रुपये कम थी. अब यहां सवाल यह है कि कैसे औसत दाम तय करने से किसानों को लाभ हो सकता है?  

पंजाब को एमएसपी का सबसे ज्‍यादा लाभ

  • खरीफ मार्केटिंग सीजन 2021-22 में धान की एमएसपी पर केंद्र सरकार ने कुल 168031.12 करोड़ रुपये खर्च किए, जिसमें से पंजाब को सबसे ज्‍यादा 36707.54 करोड़ रुपये मिले.     
  • रबी मार्केटिंग सीजन 2021-22  में गेहूं की एमएसपी पर केंद्र ने कुल 85603.57 करोड़ रुपये खर्च किए, जिसमें सबसे ज्‍यादा 26113.81 करोड़ रुपये पंजाब को मिले.   

तर्कसंगत है राज्‍यवार एमएसपी का आइडिया

मोदी सरकार की ओर से कृषि सुधार के लिए बनाई गई कमेटी के सदस्‍य पाशा पटेल मानते हैं कि एमएसपी की व्‍यवस्‍था जिस भावना से की गई थी असल में उस तरह से उसका फायदा नहीं मिल पा रहा. वजह यह है कि सभी राज्यों में उत्पादन लागत अलग-अलग है और एमएसपी एक ही है. ऐसे में तर्कसंगत बात तो यही है लागत के हिसाब से एमएसपी हो. कमेटी की बैठक में यह मुद्दा उठाया जाएगा. पटेल महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के चेयरमैन भी हैं.

‘किसान तक’ से बातचीत में उन्‍होंने कहा कि सभी राज्यों में स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन होना चाहिए. उसके चेयरमैन सीएसीपी के सदस्य हों और कमीशन को वैधानिक दर्जा हो. राज्‍यों की इन आयोगों की रिपोर्ट के हिसाब से एमएसपी तय हो तब जाकर सभी राज्‍यों के किसानों को एमएसपी का फायदा मिल पाएगा.

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