चावल निर्यातक अतिरिक्त टैक्स मांग को लेकर चिंतित हैं और निर्यात पर जोखिम की बात कही है. निर्यातकों ने कहा है कि भारी टैक्स डिमांड सोर्सेस का सामना करना पड़ रहा है. चावल निर्यात में कमी के चलते बासमती चावल के दाम करीब 10 फीसदी नीचे खिसक गए हैं. जबकि, उबला टूटा चावल की कीमत में भी पिछले सप्ताह से गिरावट दर्ज की गई है. निर्यात दिक्कतों के चलते वैश्विक चावल बाजार में दूसरे एशियाई देश पकड़ बनाने की कोशिश में जुटे हैं.
दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत ने घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने और बाजार में उपलब्धता बनाए रखने के लिए सितंबर 2022 में सफेद चावल पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया था. इसके बाद लोकसभा चुनावों मद्देनजर घरेलू आपूर्ति और चावल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए अगस्त 2023 में उबले चावल पर समान शुल्क लगा दिया था. इससे चावल निर्यात में पहले से ही गिरावट आई है.
चावल निर्यातकों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि भारतीय निर्यातकों को सीमा शुल्क विभाग से पिछले 18 महीनों में निर्यात किए गए चावल पर शुल्क अंतर के भुगतान की मांग करने वाले नोटिस मिले हैं. निर्यातकों ने इसे दुर्लभ टैक्स डिमांड बताया जो भारत से चावल शिपमेंट को बाधित कर सकती है. रिपोर्ट के अनुसार निर्यातकों ने कहा कि चावल के फ्री ऑन बोर्ड (FOB) मूल्य के आधार पर 20 फीसदी शुल्क का भुगतान कर रहे थे. हालांकि, सीमा शुल्क विभाग ने अब ट्रांजैक्शन वैल्यू पर विचार करने और किसी भी शुल्क अंतर पर भुगतान करने की जरूरत बताई है.
रॉयटर्स के अनुसार डिमांड नोटिस में सीमा शुल्क विभाग ने निर्यातकों को सूचित किया कि शिपिंग बिलों में घोषित एफओबी मूल्य से अधिक प्राप्त राशि पर लागू ब्याज के साथ निर्यात शुल्क का भुगतान निर्यातकों को करने को कहा गया है. आंध्र प्रदेश के निर्यातक ने कहा कि निर्यातकों के पास लगभग दो वर्षों के शुल्क अंतर का भुगतान करने का पैसा नहीं है. इसके बजाय वे व्यवसाय बंद कर देंगे. उन्होंने कहा कि सरकार अब अतिरिक्त शुल्क की मांग कर रही है, जो कोई भी विदेशी खरीदार हमें नहीं देगा. फिर हम सरकार को अतिरिक्त शुल्क कैसे दे सकते हैं?
रिपोर्ट के अनुसार नई दिल्ली स्थित डीलर ने कहा नए कैलकुलेशन के तहत निर्यातकों को पिछले दो वर्षों में निर्यात किए गए चावल पर लगभग 15 डॉलर प्रति मीट्रिक टन का अतिरिक्त शुल्क देना होगा. उद्योग जगत का अनुमान है कि इस अतिरिक्त शुल्क की कुल लागत लगभग 15 अरब रुपये होगी. निर्यातकों ने कहा कि यह रकम भुगतान करना उनके वित्तीय क्षमता से बाहर है. यह स्थिति चावल निर्यात पर जोखिम बढ़ा रही है.
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