आगे बढ़ने से पहले जान लें कि यहां मवेशी बिल का अर्थ है लाइवस्टॉक बिल 2023 जिसे सरकार ने अभी हाल में वापस लिया है. यहां लाइवस्टॉक बिल को आसान भाषा में रखते हुए मवेशी बिल लिखा जा रहा है. अब चलते हैं पूरे मामले की ओर. मौजूदा सरकार ने जिन गिने-चुने विधेयक यानी कि बिलों को वापस लिया है, उनमें एक लाइवस्टॉक बिल 2023 भी है. नाम से जाहिर है कि यह बिल मवेशियों से जुड़ा था. दरअसल यह बिल प्रस्तावित था जिस पर सरकार ने जनता से राय मांगी थी. लेकिन लोगों की राय इतने विरोध के साथ आई कि सरकार को बिल ही वापस लेना पड़ा. आगे हम जानेंगे कि बिल में ऐसा क्या था, आखिर उसका लब्बोलुआब क्या था जो लोग भड़क गए और सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा.
बिल के बारे में आगे बढ़ें, उससे पहले जान लेना जरूरी है कि इसमें ऐसे क्या क्लॉज या प्रावधान थे जिस पर विरोध बरपा. यह बिल एक पुराने कानून का नया वर्जन था जिसमें मवेशियों के आयात और निर्यात को लेकर नियम बनाए गए थे. सरकार का पक्ष था कि मवेशियों के आयात-निर्यात का असर देश के अंदर इंसानों और जानवरों की सेहत पर दिख सकता है, इसलिए मौजूदा कानून में कुछ रद्दोबदल की जरूरत है. बिल में यहां तक तो सब ठीक था लेकिन मामले का विरोध तब शुरू हुआ जब मवेशियों को 'कमॉडिटी' की कैटेगरी में रखा गया. यहां कमॉडिटी का मतलब गेहूं, चावल और चीनी जैसे सामानों से है और जिनका देश के भीतर-बाहर आयात निर्यात होता है.
कमॉडिटी में मवेशियों को रखते ही सामाजिक कार्यकर्ता और पशुओं से जुड़े संगठन विरोध में आ गए. उनका तर्क था कि कमॉडिटी का सीधा अर्थ है कि सरकार मवेशियों को भी रेगुलेशन में ले आएगी. यानी सरकार घोड़ा, गधा, खच्चर, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर, कुत्ते, बिल्ली, मुर्गी (अन्य पक्षियां भी) लैब के जानवर और एक्वेरियम एनिमल को भी अपने रेगुलेशन में ले आएगी.
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साफ शब्दों में कहें तो यह प्रस्तावित बिल सरकार को यह ताकत देता है कि वह बीमारी फैलने की आशंका के नाम पर ऐसे किसी मेवशी या उससे जुड़े प्रोडक्ट (यहां तक कि चारा, दाना और गोबबर आदि को भी) के व्यापार पर प्रतिबंध लगा सकती है. दूसरी ओर सरकार को इस बिल के माध्यम से यह शक्ति मिलती है कि वह मवेशी और उससे जुड़े प्रोडक्ट के निर्यात को बढ़ावा दे.
इसी दोनों मसलों पर इस प्रस्तावित बिल का विरोध शुरू हुआ. विरोधियों का तर्क था कि आयात-निर्यात को रेगुलेट करने से देश में मवेशियों का व्यापार सीमित होगा, उनकी प्रजातियां भी घट सकती हैं. अभी तक के कानून में कुत्ते-बिल्लियों के व्यापार को शामिल नहीं किया गया था लेकिन प्रस्ताविक बिल में इन दोनों के निर्यात को भी व्यापार में डाल दिया गया. यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि दुनिया के कई देशों में इन दोनों जानवरों को खाया जाता है. इस बात को दिमाग में रखते हुए जानवरों से जुड़े संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया.
विरोधियों ने तर्क दिया कि अगर यह बिल पास हो जाता तो हिंदुस्तान के लाखों-करोड़ों जानवरों की जान खतरे में आ जाती. विरोध में यह भी तर्क दिया गया कि बिल बनाने से पहले एनिमल वेलफेयर बोर्ड और मंत्रालयों के बीच कोई तालमेल नहीं रखा गया. विरोध का अगला तर्क ये रहा कि देश के कई जंगली जानवर जैसे कि नीलगाय, हिरण, कुत्ते और बिल्लियों को भी शामिल किया गया जो कि निर्यात के दायरे में आ जाते. संगठनों ने अपने विरोध में कहा इस बिल से देश की बहुसंख्यक लोगों की भावनाएं आहत होती हैं.
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सबसे बड़ा विरोध इस बात को लेकर रहा कि जब जानवरों को भी कमॉडिटी की तरह आयात-निर्यात में रखा जाएगा, तो इससे देश के अंदर कई बीमारियों के बढ़ने का खतरा होगा. लोगों ने कहा कि चिंपाजी से एड्स फैला और बैट्स से कोरोना महामारी. अगर ऐसे ही अन्य कोई जानवर भारत में आयात किया जाता है तो उससे गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा. अगर जानवरों का आयात-निर्यात होगा तो बेशक बीमारियों का भी आयात-निर्यात होगा जो कि इंसानी और मवेशियों के लिए ठीक नहीं है. यही वजह है सरकार बैकफुट पर आई और बिल को वापस लिया.
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