Mustard Procurement: सरसों क‍िसानों की दर‍ियाद‍िली पर सरकारी 'कंजूसी' ने फेरा पानी 

Mustard Procurement: सरसों क‍िसानों की दर‍ियाद‍िली पर सरकारी 'कंजूसी' ने फेरा पानी 

केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए न‍ियमों के मुताब‍िक देश में एमएसपी पर सरसों की ज‍ितनी खरीद होनी चाह‍िए थी उसकी स‍िर्फ एक त‍िहाई ही हुई है. आयात वाली नीत‍ि से भारतीय क‍िसानों को नुकसान, दूसरे देशों को म‍िल रहा फायदा. क्या इस तरह खाद्य तेलों के मामले में आत्मन‍िर्भर हो पाएगा भारत? 

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Mustard Procurement: सरसों क‍िसानों की दर‍ियाद‍िली पर सरकारी 'कंजूसी' ने फेरा पानी एमएसपी के दायरे से बाहर है त‍िलहन की 75 फीसदी उपज. (Photo-Kisan Tak).

देश में सरसों की सरकारी खरीद बंद हो गई है. इस साल अध‍िकांश क‍िसानों ने मजबूरी में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम दाम पर सरसों बेचा है. क्योंक‍ि केंद्र सरकार ने पहले खाद्य तेलों की इंपोर्ट ड्यूटी घटाकर लगभग खत्म कर दी. उसके बाद अपने ही बनाए खरीद के न‍ियम का राज्यों से पालन भी नहीं करवा सकी. ऐसे में व्यापार‍ियों ने इसका जमकर फायदा उठाया है. कम सरकारी खरीद होने की वजह से व्यापार‍ियों को क‍िसानों से औने-पौने दाम पर सरसों म‍िल गई. कायदे से इस साल एमएसपी पर लगभग 31 लाख मीट्र‍िक टन सरसों की खरीद होनी चाह‍िए थी. लेक‍िन यह हैरानी की बात है क‍ि उसकी एक त‍िहाई ही हो पाई. 

इस साल सरसों की खरीद 10,19,845 मीट्र‍िक टन पर स‍िमट गई है. आपको देखने में यह आंकड़ा बहुत बड़ा लगेगा लेक‍िन सच तो यह है न‍ियमों के अनुसार इतनी खरीद बहुत कम है. इस खरीद के बहाने हम खाद्य तेलों के मामले में आत्मन‍िर्भर होने के सपने पर भी बात करेंगे. क्योंक‍ि क‍िसानों ने उत्पादन बढ़ाने की जो दर‍ियाद‍िली द‍िखाई थी उस पर खरीद की सरकारी 'कंजूसी' ने पानी फेर द‍िया है. 

केंद्र के न‍ियमों की अनदेखी 

आपने देखा और पढ़ा होगा क‍ि इस साल हर‍ियाणा और राजस्थान में एमएसपी पर सरसों बेचने के ल‍िए क‍िसानों की लंबी-लंबी लाइनें लगी रहीं. सरसों के सबसे बड़े उत्पादक राजस्थान के क‍िसानों को तो खरीद के ल‍िए जंतर-मंतर तक आंदोलन करना पड़ा. हर‍ियाणा में त‍िलहन फसल सूरजमुखी की एमएसपी पर खरीद करने की मांग कर रहे क‍िसानों पर सरकार ने लाठ‍ियां बरसवाईं. फ‍िर भी देश में केंद्र के बनाए न‍ियमों के तहत ज‍ितनी खरीद होनी चाह‍िए थी उतनी नहीं हो सकी.

सरसों की खरीद मूल्य समर्थन योजना (Price Support Scheme-PSS) के तहत होती है. इसके तहत कुल उत्पादन की 25 फीसदी उपज की एमएसपी पर खरीद होनी चाह‍िए थी. रबी फसल सीजन 2022-23 में 125 लाख मीट्र‍िक टन से अध‍िक सरसों पैदा हुई है. यानी केंद्र के न‍ियमों के अनुसार एमएसपी पर कम से कम 31 लाख मीट्र‍िक टन सरसों की खरीद बनती थी. 

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एमएसपी के दायरे से बाहर है 75 फीसदी उपज 

लंबे समय से सरसों की सरकारी खरीद बढ़ाने के ल‍िए संघर्षरत क‍िसान नेता रामपाल जाट ने 'क‍िसान तक' से कहा क‍ि अगर भारत को त‍िलहन फसलों में आत्मन‍िर्भर बनाना है तो क‍िसानों को उच‍ित दाम देना होगा. लेक‍िन दुर्भाग्य से उल्टा हो रहा है. पहले ही कुल सरसों उत्पादन में से 75 फीसदी उपज एमएसपी के दायरे से बाहर कर दी गई है. ऐसे में बाजार पर सरकारी दाम का कोई दबाव नहीं बनता. अब ऊपर से द‍िक्कत यह है क‍ि राज्य सरकारें वो 25 फीसदी भी खरीद नहीं कर रही हैं. केंद्र इसके ल‍िए राज्यों पर दबाव भी नहीं डाल रहा है. इसकी वजह से क‍िसान औने-पौने दाम पर व्यापार‍ियों को अपनी फसल बेचने के ल‍िए मजबूर हैं. 

खाद्य तेलों में कैसे आत्मन‍िर्भर होगा देश?

दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों की इंपोर्ट ड्यूटी घटाकर नाम मात्र कर दी है. इस वजह से आयात सस्ता हो गया है और भारत में त‍िलहन फसलों का दाम घट गया है. उधर, पर्याप्त सरकारी खरीद भी नहीं हो रही है. इससे क‍िसानों पर दोहरी मार पड़ रही है. केंद्र सरकार अगर कम से कम 25 फीसदी फसल की खरीद भी सुन‍िश्च‍ित कर दे तो भी क‍िसानों का कुछ भला हो जाएगा. लेक‍िन न तो राज्यों को कोई परवाह है और न केंद्र को. क‍िसानों के साथ ऐसा व्यवहार करके तो देश खाद्य तेलों के मामले में आत्मन‍िर्भर नहीं हो पाएगा.

राज्यवार सरसों खरीद 

  • राजस्थान में एमएसपी पर 3,91,508.23 मीट्र‍िक टन सरसों खरीदा गया है. न‍ियम के अनुसार यहां 15 लाख मीट्र‍िक टन की खरीद होनी चाह‍िए थी. कुल सरसों उत्पादन में राजस्थान की ह‍िस्सेदारी 48.2 फीसदी है.
  • एमएसपी पर सबसे ज्यादा सरसों खरीदने के मामले में दूसरे स्थान पर हर‍ियाणा है. जबक‍ि उत्पादन में इसका स्थान तीसरा है. यहां इस साल 3,47,105 मीट्र‍िक टन की खरीद हुई है. देश के कुल उत्पादन में इसकी ह‍िस्सेदारी 13.1 फीसदी है. 
  • देश के दूसरे सबसे बड़े सरसों उत्पादक मध्य प्रदेश में 1,67,591.09 मीट्र‍िक टन की खरीद हुई है. एमएसपी पर सरसों खरीद के मामले में यह तीसरे नंबर पर है. जबक‍ि कुल उत्पादन में एमपी की ह‍िस्सेदारी 13.3 फीसदी है. 
  • सरसों की एमएसपी पर खरीद करने के मामले में गुजरात चौथे नंबर पर है. जबक‍ि उत्पादन में इसका नंबर छठा है. यहां इस साल 84,355.32 मीट्र‍िक टन सरसों खरीदा गया है. देश के कुल उत्पादन में इसकी भागीदारी 4.2 फीसदी की है. 
  • उत्तर प्रदेश 10.4 फीसदी उत्पादन के साथ देश का चौथा सबसे बड़ा सरसों उत्पादक है. लेक‍िन खरीद के मामले में यह पांचवें नंबर पर है. यहां इस साल 28,958.16 मीट्र‍िक टन सरसों खरीदा गया है.  

क‍ितने क‍िसानों को म‍िला फायदा

  • रबी मार्केट‍िंग सीजन 2023-24 में देश भर में 4,20,082 क‍िसानों ने एमएसपी पर सरसों बेचा. 
  • देश में एमएसपी पर कुल 5558.15 करोड़ रुपये की सरसों खरीदी गई है.
  • रबी फसल वर्ष 2022-23 में र‍िकॉर्ड 125 लाख मीट्र‍िक टन सरसों उत्पादन हुआ है.  
  • सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल है. जबक‍ि ओपन मार्केट में 4500 रुपये का रेट है. 
  • एमएसपी पर सरसों की पांच राज्यों में खरीद हुई है.

दर‍ियाद‍िली के बदले म‍िला दर्द

खाद्य तेलों के मामले में आत्मन‍िर्भरता के सपने को अगर साकार करेगा तो क‍िसान ही करेगा. लेक‍िन वो ऐसा तब करेगा जब उसे बाजार में अच्छा दाम म‍िलेगा. दाम नहीं म‍िलेगा तो वो त‍िलहन फसलों की खेती नहीं बढ़ाएगा. साल 2020 से 2022 तक क‍िसानों को ओपन मार्केट में सरसों का दाम एमएसपी से भी ज्यादा म‍िला था. इसका भाव 7000 से 8000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक म‍िल रहा था. इसके बाद सरसों की खेती का रकबा और उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ा. दाम म‍िला तो क‍िसानों ने सरसों की खेती को आगे बढ़ाने में देर नहीं की. लेक‍िन इस दर‍ियाद‍िली के बदले उन्हें कम दाम का दर्द म‍िला. क‍िसानों को अच्छा दाम म‍िलने का फायदा क्या है, इसे आंकड़ों की कसौटी पर कसने की कोश‍िश करते हैं.  

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की एक र‍िपोर्ट बताती है क‍ि साल 2008-09 में भारत में स‍िर्फ 63 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हो रही थी, जो दस साल बाद बढ़ने की बजाय घट गई थी. साल 2018-19 में सरसों का एर‍िया स‍िमट कर महज 61.2 लाख हेक्टेयर ही रह गया था. लेक‍िन जब अच्छा दाम म‍िला तो इसकी रफ्तार तेजी से बढ़ी. साल 2018-19 से 2022-23 के बीच यानी स‍िर्फ चार साल में ही इसका एर‍िया र‍िकॉर्ड 36.82 लाख हेक्टेयर बढ़ गया. फसल वर्ष 2022-23 में कुल 98.02 लाख हेक्टेयर में सरसों की खेती हुई जो अपने आप में र‍िकॉर्ड है. 

आयात को बढ़ावा देने वाली नीत‍ि से नुकसान 

त‍िलहन फसलों की उपेक्षा की वजह से भारतीय क‍िसानों को नुकसान हो रहा है. साल 2021-22 में भारत ने 1,41,532 करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात क‍िया, जबक‍ि 2017-18 में स‍िर्फ 74,996 करोड़ रुपये का आयात हुआ था. दरअसल, हमारी पॉल‍िसी त‍िलहन फसलों की खेती की बजाय खाद्य तेलों के आयात को बढ़ावा देने वाली रही है. इस वजह से इतनी बड़ी रकम अपने देश के क‍िसानों की जेब में जाने की बजाए इंडोनेश‍िया, मलेश‍िया, रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना जैसे देशों के क‍िसानों के पास पहुंच रही है. यकीन मान‍िए क‍ि जब तक अपने देश में क‍िसानों को त‍िलहन फसलों का अच्छा दाम देने की नीत‍ि नहीं बनेगी तब तक हम खाद्य तेलों के मामले में इन्हीं देशों पर न‍िर्भर रहेंगे.  

क्या है आगे का रास्ता

दलहन फसलों में भी भारत आत्मन‍िर्भर नहीं है. इन फसलों की खरीद भी मूल्य समर्थन योजना के तहत होती है. क‍िसानों को इसका अच्छा दाम द‍िलाने, बुवाई का एर‍िया बढ़ाने और महंगाई पर काबू पाने के मकसद से सरकार ने अरहर (तूर), उड़द और मसूर की खरीद के न‍ियमों में बड़ा बदलाव कर द‍िया है. 

सरकार ने पहले अरहर, उड़द और मसूर की खरीद की सीमा को 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत क‍िया और फ‍िर 40 प्रतिशत की खरीद सीमा को भी हटा दिया है. इसका मतलब यह है क‍ि सरकार के इस फैसले से बिना किसी सीमा के किसानों से एमएसपी पर इन दालों की खरीद की जा सकती है. क‍िसान एमएसपी पर दालों की चाहे ज‍ितनी ब‍िक्री कर सकते हैं. ऐसा ही बदलाव त‍िलहन फसलों के ल‍िए भी करना होगा. 

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