चना और मुर्गा ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं. लेकिन इन दोनों में क्या कोई संबंध भी है? और है तो क्या है. इसके अलावा चने को अंग्रेज़ी में चिकपी क्यो बोलते हैं. ये सवाल तो लाजमी है कि इसके पीछे आखिर क्या कारण है कि चने को अंग्रेजी में चिकपी बोला जाता है. ऐसे में अगर आप भी इन सवालों का जवाब जानना चाहते हैं तो इसको लेकर पद्म भूषण कृषि एक्सपर्ट बख्शी राम यादव ने एक रोचक जानकारी बताई है. इस जानकारी में आपको सभी प्रश्नों का जवाब मिल जाएगा.
पद्म भूषण कृषि एक्सपर्ट बख्शी राम यादव ने ललनटॉप के "गेस्ट इन द न्यूज़ रूम शो" में बताया कि चना और मुर्गे का ये संबंध हैं कि मुर्गे का दिल चने के शेप के जैसा होता है. मतलब जैसा चना दिखता है बिल्कुल वैसा ही मुर्गे का हर्ट होता है, इसलिए चने को चिपकी कहते हैं. है ना बहुत ही रोचक जानकारी. साथ ही उन्होंने बताया कि अरहर को पिजन पी क्यों कहा जाता है. बख्शी राम यादव ने बताया कि अरहर को पिजन पी इसलिए कहा जाता है क्योंकि अरहर का दाना कबूतर की आंख की तरह होता है. इसलिए उसे पिजनपी कहा जाता है. है ना बिल्कुल रोचक जानकारी. लेकिन आपको बता दें कि साइंस के मुताबिक, चिपकी शब्द 'चिकन' से नहीं आया है, बल्कि यह पुरानी अंग्रेजी के शब्द 'cicen' से आया है, जिसका मतलब 'छोटा' होता है, और 'पी' (pea) का मतलब 'मटर' होता है. तो 'चिकपी' का मतलब 'छोटा मटर' यानी छोटा दाना.
चने का मुर्गे से कोई सीधा संबंध नहीं होता है. लेकिन कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, मुर्गे का दिल चने के शेप जैसा होना ही एक संबंध है. हालांकि, चना एक प्रकार का पौधा है जिसकी फलियां खाई जाती हैं. इसे अंग्रेजी में चिकपी (chickpea) भी कहा जाता है. वहीं, मुर्गा एक पक्षी है, वैसे तो इसका चने से कोई सीधा संबंध नहीं है, सिवाय इसके कि कभी-कभी चने को मुर्गियों को खिलाया जाता है.
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बख्शी राम यादव ने गन्ने की एक खास किस्म CO238 विकसित किया था, इसलिए उन्हें शुगर मैन ऑफ इंडिया' के तौर पर भी जाना जाता है. दरअसल, उनके द्वारा तैयार कि गई गन्ने की किस्म CO238 एक ज्यादा उच्च उपज देने वाली किस्म है और इसमें चीनी की मात्रा भी ज्यादा होती है. इस फसल को Co LK 8102 और Co 775 के क्रॉस से विकसित किया गया था. इस किस्म को उत्तर-पश्चिम क्षेत्र (NWZ) में वाणिज्यिक खेती के लिए एक शुरुआती परिपक्व किस्म के तौर पर जारी किया गया था. डॉक्टर बशीराम यादव ने जो किस्म विकसित की, वह आज देश के 50 फीसदी इलाके में उगाई जा रही है. यूं तो उन्हें गन्ने की 24 किस्मों को डेवलप करने का श्रेय दिया जाता है लेकिन यह किस्म किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है.
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