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ताईवानी-फ्रेंच फिल्म ‘सैली’: एक मुर्गी पालक महिला किसान के प्रेम और आत्म-विश्वास को पाने की संवेदनशील कहानी

ताईवानी-फ्रेंच फिल्म ‘सैली’: एक मुर्गी पालक महिला किसान के प्रेम और आत्म-विश्वास को पाने की संवेदनशील कहानी

फिल्म ‘सैली’ के केंद्र में है मुर्गी-पालक किसान हुइ-जुन (एस्थर लिउ). वह अपने युवा भाई के साथ रहती है, जो कहने को तो घर का ‘पुरुष’ है, लेकिन मां-बाप की मृत्यु के बाद हुइ जुन ने ना सिर्फ अपने छोटे भाई को पाला है, बल्कि उनका मुर्गी-फार्म भी उसी की बदौलत चल रहा है.

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एक मुर्गी पालक महिला किसान के प्रेम और आत्म-विश्वास को पाने की संवेदनशील कहानी एक मुर्गी पालक महिला किसान के प्रेम और आत्म-विश्वास को पाने की संवेदनशील कहानी

ताइवान का सिनेमा अपने इतिहास से गहरे जुड़ा है. 1901 के करीब ताइवान में सिनेमा आया. उस वक्त इस छोटे से देश पर जापान का शासन था. तब से ताइवान का सिनेमा बहुत सी विधाओं के दौर से गुज़रा है. ड्रामा, यथार्थवादी, राजनीतिक प्रोपेगेंडा फिल्में, तलवारबाजी और योद्धाओं पर केंद्रित फिल्में वगैरह. उधर कृषि के क्षेत्र में, ताइवान के किसान हालांकि आधुनिक तकनीक से लैस हैं, लेकिन खेती योग्य ज़मीन कम होने के कारण यहां बहुत से खाद्य पदार्थ आयात किए जाते हैं. करीब 22 फीसदी कृषि योग्य ज़मीन पर छोटे किसान ही खेती करते हैं और भारत की तरह ही किसानी वहां पारिवारिक पेशा ही है.

फिल्म ‘सैली’ का केंद्र मुर्गी-पालक किसान

बहरहाल, आज के ताईवानी फिल्म निर्देशक तमाम विधाओं का इस्तेमाल करते हुए नए सिनेमा को जन्म दे रहे हैं, जो कलात्मक तो है ही, अपने चुस्त संवादों, प्रभावपूर्ण कहानियों और किरदारों के कारण व्यावसायिक तौर पर भी दिलचस्प है.
ऐसे ही एक फिल्म निर्देशक हैं लिएन चेन-हुंग, बहुत सारी शॉर्ट फिल्म और टीवी के लिए फिल्में बनाने के बाद लिएन ने अपनी पहली फीचर फिल्म बनाई ‘सैली’. इसे फ्रांस के सहयोग से बनाया गया है क्योंकि फिल्म की कहानी ताइवान और फ्रांस दोनों देशों में घटित होती है. कहने को तो यह एक सरल और हल्की-फुल्की सी फिल्म है, लेकिन एक गंभीर विषय पर केन्द्रित है और इसका हल्का हास्य कहानी को और भी हृदयस्पर्शी बनाता है.

फिल्म ‘सैली’ के केंद्र में है मुर्गी-पालक किसान हुइ-जुन (एस्थर लिउ). वह अपने युवा भाई के साथ रहती है, जो कहने को तो घर का ‘पुरुष’ है, लेकिन मां-बाप की मृत्यु के बाद हुइ जुन ने ना सिर्फ अपने छोटे भाई को पाला है, बल्कि उनका मुर्गी-फार्म भी उसी की बदौलत चल रहा है, लेकिन अब हुई चालीस की हो चली है और उसका छोटा भाई (ऑस्टिन लिन) अपनी गर्लफ्रेंड से शादी करना चाहता है. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है, लेकिन जब उनकी ‘टाइगर’ चाची कहती है कि हुइ सिर्फ इसलिए अपने भाई की शादी में मौजूद नहीं रह सकती क्योंकि वह खुद कुँवारी है, तो हुइ का दिल टूट जाता है.

फिल्म की तारीफ विश्व सिनेमा के मंच पर

अपनी एक टीनएजर भतीजी की मदद से वह ऑनलाइन डेटिंग ऐप में ‘सैली’ नाम से खुद को रजिस्टर करती है और इस ऐप पर उसकी मुलाक़ात एक फ्रेंच युवक मार्टिन से होती है. वर्चुअल यथार्थ में मार्टिन और हुइ के बीच एक रूमानी संबंध कायम हो जाता है. सभी लोग हुइ को हिदायत देते हैं कि यह एक ‘रोमांटिक घोटाला’ है और मार्टिन नाम का शख्स उसे धोखा देगा.
मार्टिन जब पैसे की मांग करता है तो हुइ का दिल टूट जाता है. लेकिन उसे अपने प्यार पर भरोसा है और इसलिए वह ठान लेती है कि वह मार्टिन को ढूंढने पेरिस जाएगी. सभी के मना करने के बावजूद हुई फ्रांस रवाना होती है और फिर तमाम दिक्कतों का सामना करते हुए. जब फ्रांस की ‘सैली’ यानी हुई-जुन वापस लौटती है तो वह एक अलग ही शख्सियत है.

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आत्मविश्वास से भरी दुखद और दर्द भरे अनुभवों से निकल कर हुइ जुन अब एक मजबूत और दृढ़ महिला है, जो खुद यह फैसला करती है कि उसे अपने जीवन में क्या चाहिए, और वह समाज के नियम-क़ानूनों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देती.
यथार्थ और कठिन हालात का सामना करती हुई जुन को दिलचस्प और हास्यपूर्ण तरीके से दिखाया गया है, जो फिल्म की खासियत है. अक्सर परिवार की बेहतरी के लिए एक लड़की के त्याग और बाद में उसके अकेले रह जाने पर एशिया में गंभीर फिल्में ही बनाई गई हैं. एक यादगार फिल्म बांग्ला में है, ऋत्विक घटक द्वारा निर्देशित ‘मेघे ढाका तारा’, लेकिन यह फिल्म हुइ को एक त्रासदपूर्ण शख्सियत नहीं बल्कि एक आत्मनिर्भर और आज़ाद-ख्याल शख्सियत के तौर पर उभारती है. फिल्म की इस खासियत की तारीफ विश्व सिनेमा के मंच पर भी हुई.

ग्रामीण ताईवानी समाज का जीवंत चित्रण

हुइ-जुन के रोल में एस्थर लिउ ने अद्भुत अभिनय किया है. एक मृदु-भाषी और घरेलू लड़की का एक दृढ़ और आत्मविश्वासी युवती में तब्दील होना आप धीरे-धीरे महसूस करते हैं, जो एस्थर के अभिनय में बहत सहज लगता है. युवा निर्देशक लिएन चेन-हुंग ने एक इंटरव्यू में बताया कि वे इस विषय पर फिल्म बनाना चाहते थे क्योंकि “मैंने ऐसे कुछ लोगों की कहानी सुनी थी, जो ऑनलाइन प्यार पाने की चाहत में धोखे का शिकार हुए थे. मैं उनसे यह कहना चाहता था, प्रेम ढूंढने की पहली शर्त है कि आप खुद को प्यार करें, खुद की इज्ज़त करें. हम सभी प्यार करना चाहते हैं, प्यार पाना चाहते हैं लेकिन इस तलाश में हमें खुद को खोना नहीं है, बल्कि खुद को पाना है.“

फ्रेंच सिनेमा की शैली में हुई जुन फिल्म के लगभग हर शॉट में मौजूद है. ऐसा लगता है, मानो कैमरा हुइ को ही फॉलो कर रहा हो. एस्थर मुर्गियों के साथ भी उतनी ही सहज हैं जितना कि एक अजनबी शहर में कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए. एस्टर से भी एक इंटरव्यू में पूछा गया था कि वे इतनी सारी मुर्गियों के बीच इतना सहज अभिनय कैसे कर पाईं, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए बताया कि उनका अपना भी एक फार्म है जहां वे करीब आठ सौ मुर्गियां पालती हैं. फिल्म की एक और खासियत है, ग्रामीण ताईवानी समाज का जीवंत चित्रण. जहां हर कोई एक-दूसरे को जानता है और उसकी ज़ाती ज़िंदगी में दखल देता है या देना चाहता है, जहां एक अकेली औरत को समाज का सक्रिय सदस्य समझा ही नहीं जाता.

2023 में रिलीज़ हुई थी ये फिल्म

यह ताईवानी ग्रामीण समाज की ही नहीं बल्कि हमारे समाज की भी कड़वी असलियत है कि अपना जीवन परिवार के लिए होम कर देने वाली स्त्री को हम त्याग, तपस्या और बलिदान की देवी की तरह तो पूजने लगते हैं, लेकिन वहीं, अगर वह विवाह नहीं कर पाती या नहीं करती तो उसे अपने तमाम रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों में पीछे धकेल देते हैं. ‘सैली’ समाज के इस दोहरे मापदंड को बहुत असरदार तरीके से प्रस्तुत करती है. सिनेमेटोग्राफर लाओ चिंग याओ ने ग्रामीण ताइवान और शहरी फ्रांस का बहुत दिलचस्प चित्रण किया है, जो हास्यपूर्ण तरीके से वास्तविकता और उसमें निहित विडम्बना को ज़ाहिर करता है.

2023 में रिलीज़ हुई इस फिल्म का बजट था करीब दस लाख डॉलर. इसकी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में बहुत प्रशंसा की गई और ताइवान में भी यह हिट साबित हुई. ‘सैली’ एक युवा महिला किसान के जीवन, संघर्ष और समाज में एक निश्चित स्थान बना पाने में सक्षम होने की खूबसूरत कहानी है जो किसी भी देश के दर्शकों का दिल जीत लेगी.