पंजाब में पराली निस्तारण यानी क्रॉप रेजीड्यू मैनेजमेंट (CRM) के लिए करीब 1.2 मशीनें उपलब्ध होने का दावा किया गया है, इसके बावजूद यहां पर पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं हो रही हैं. सैटेलाइट से की जा रही मॉनिटरिंग में जो आंकड़े आए हैं वो चीख-चीखकर कह रहे हैं कि पंजाब ही इन दिनों वायु प्रदूषण फैलाने का सबसे बड़ा 'गुनहगार' हैं. हम किसी सियासी बयान की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि इस बात को आंकड़ों की कसौटी पर कसने के बाद कह रहे हैं. इस साल 15 सितंबर से 9 नवंबर तक पराली जलाने के कुल 35,350 मामले आए हैं, जिनमें से 23620 अकेले पंजाब के हैं. यानी पराली जलाने के 67 फीसदी मामले एक ही सूबे से हैं. जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है. उसी आम आदमी पार्टी की सरकार है जो तब प्रदूषण के लिए पंजाब को कोसती रहती थी जब वहां कांग्रेस का शासन था. यह हाल तब है जब केंद्र सरकार ने पराली मैनेजमेंट के लिए सबसे ज्यादा पैसा पंजाब को ही दिया है.
चौंकाने वाली बात तो यह है कि इसके बावजूद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण संकट के लिए हरियाणा को जिम्मेदार ठहराया है. जबकि, हरियाणा में इस साल सिर्फ 1676 केस हुए हैं. यानी पराली जलाने के मामलों में इसका सिर्फ 4.7 फीसदी का योगदान है. इसके बावजूद आम आदमी पार्टी के नेता बहुत ही बेशर्मी से पंजाब को छोड़ हरियाणा को कोसने में जुटे हुए हैं. अगर 1676 जगहों पर पराली जलाने वाला हरियाणा दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है तो 23620 पर पराली जलाने वाले पंजाब की सरकार कितनी बड़ी गुनहगार है इसका अंदाजा आम जनता आसानी से लगा सकती है.
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सितंबर के अंतिम सप्ताह में पंजाब सरकार ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) को बताया था कि पंजाब में अभी 1,17,672 पराली मैनेजमेंट मशीनें मौजूद हैं. जबकि लगभग 23,000 मशीनों की खरीद की प्रक्रिया चल रही है. पराली मैनेजमेंट के नाम पर सबसे ज्यादा मशीनें यहीं पर बेची गई हैं. जबकि पहले से ही यहां के किसान ट्रैक्टर वाले कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. सवाल यह है कि जब देश में पराली मैनेजमेंट की सबसे ज्यादा मशीनें यहां हैं तो फिर पराली जलाने वाले मामले कम क्यों नहीं हो रहे हैं. इन मशीनों पर पानी की तरह करोड़ों रुपये की सब्सिडी बहाई गई है. सवाल यह है कि इन मशीनों का क्या हो क्या रहा है. ये मशीनें जमीन पर हैं या कागजों में काम कर रही हैं. या फिर कहीं पराली के नाम पर कोई और खेल खेला गया है?
आप सोचेंगे कि पराली तो धान उत्पादक सभी प्रमुख सूबों में जलती है तो फिर अकेले पंजाब ही बात क्यों की जा रही है. दरअसल, इसकी वजह यहां की सरकार का नकारापन है. इसका जवाब आपको आंकड़ों से मिल जाएगा. केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल यानी 2022 में 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच देश के छह राज्यों में पराली जलाने के कुल 69,615 मामले आए थे. जिनमें से 49,922 अकेले पंजाब के थे.
यानी 72 फीसदी केस यहीं के थे. पिछले वर्ष के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब के पांच जिले जहां सबसे अधिक फसल जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, वे संगरूर, बठिंडा, फिरोजपुर, मुक्तसर और मोगा थे. राज्य में हुई पराली जलाने की कुल घटनाओं का लगभग 44 प्रतिशत इन्हीं जिलों का हिस्सा है.
कैबिनेट सचिव ने प्रदूषण नियंत्रण को लेकर एक बैठक ली है. जिसमें बताया गया है कि 8 नवंबर को वायु प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान 38 फीसदी है. हरियाणा में धान की कटाई का 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है, जबकि पंजाब में अभी केवल 60 फीसदी काम पूरा हुआ है. यानी अभी वहां पर पराली जलाने की और घटनाएं हो सकती हैं. पंजाब सरकार को सुप्रीम कोर्ट भी फटकार लगा चुका है.
सवाल यही कायम है कि वहां डीएम, एसपी और एसएचओ पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए आखिर क्या कर रहे हैं? पराली मैनेजमेंट के लिए कृषि मंत्रालय ने 3333 करोड़ रुपये रिलीज किए हैं जिनमें से 1531 करोड़ रुपये पंजाब को दिए गए हैं. सवाल फिर यही है कि अगर पंजाब में इतना पैसा गया है तो पराली जलाने की घटनाएं रुकी क्यों नहीं?
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