सोयाबीन की कीमतों में लगातार गिरावट जारी है और इसी बीच, सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) ने सरकार से खाद्य तेल के आयात पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाने का आग्रह किया है. इसके साथ ही सोपा ने खरीफ विपणन सीजन 2025-26 के लिए मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत बड़े पैमाने पर सोयाबीन की खरीद के बजाय भावांतर भुगतान योजना (मूल्य कमी भुगतान योजना) लागू करने की अपील की है. सोयाबीन खली और तेल की कीमतों में गिरावट के कारण चालू विपणन वर्ष (अक्टूबर-सितंबर 2024-सितंबर 2025) के दौरान सोयाबीन का दाम 4,892 रुपये प्रति क्विंटल के MSP से नीचे बना हुआ है.
SOPA ने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे पत्र में कहा कि शून्य या बहुत कम शुल्क पर आयात की अनुमति देने की दीर्घकालिक नीति ने देश की तिलहन अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचाया है. SOPA के अध्यक्ष दाविश जैन ने पत्र में कहा, "इसलिए हम आपसे आयातित खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क ढांचे पर पुनर्विचार करने और यथाशीघ्र इसमें कम से कम 10 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध करते हैं. ऐसा उपाय किसानों का विश्वास बहाल करने, तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहित करने और आत्मनिर्भरता की ओर भारत की यात्रा को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा." SOPA के अध्यक्ष ने कहा कि सस्ते तेल आयात और मंद कीमतों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण इस खरीफ सीजन में सोयाबीन के रकबे में 5 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है.
नए विपणन वर्ष 2025-26 के लिए सोयाबीन की एमएसपी तो बढ़कर 5,328 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है, मगर आयात शुल्क में कमी और खली की जगह सस्ते डीडीजीएस के इस्तेमाल के कारण तेल और खली की कीमतें कम बनी हुई हैं. सोपा अध्यक्ष ने कहा कि मौजूदा फसल की स्थिति को देखते हुए, इस बात की प्रबल संभावना है कि सरकार को एक बार फिर सोयाबीन की खरीद करनी पड़ सकती है, जिस पर 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा.
जैन ने कहा कि हम आपसे पीएसएस (मूल्य समर्थन योजना) के तहत बड़े पैमाने पर खरीद की बजाय पर भावांतर भुगतान योजना को लागू करने पर विचार करने का आग्रह करते हैं. भावांतर के माध्यम से, किसानों को बाजार दरों और एमएसपी के बीच मूल्य अंतर सीधे उनके खातों में मिलता है, जिससे सरकार का खर्च लगभग आधा हो जाता है. सरकार ने 2024-25 के दौरान पीएसएस के तहत लगभग 20 लाख टन सोयाबीन की खरीद की. जैन ने कहा कि वर्तमान में, नैफेड और एनसीसीएफ द्वारा खुले बाजार में इस स्टॉक की नीलामी लगभग ₹10,000 प्रति टन की औसत छूट पर हो रही है, जिससे लगभग ₹2,000 करोड़ का नुकसान हो रहा है.
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