लद्दाख को भारत के ठंडे रेगिस्तान के तौर पर जाना जाता है और जहां पर खुबानी हमेशा से एक मौसमी कृषि उत्पाद के तौर पर था. लेकिन अब इसे ग्लोबली एक खास पहचान मिलने लगी है. इस गर्मी में, पहली बार, इस क्षेत्र की प्रमुख नकदी फसल कुवैत, कतर और सऊदी अरब सहित खाड़ी देशों को भेजी गई. 29 साल के किसान जाकिर जैदी जैसे बाकी किसानों के लिए यह बिल्कुल उस सपने के सच होने जैसा है जो काफी दिनों से देखा जा रहा था.
कारगिल के गेरू पहाड़ों की छाया में 65 कनाल के खुबानी के बाग के मालिक और व्यापारी के हवाले से अखबार मिंट ने लिखा, 'इस साल वह सपना सचमुच पूरा हो गया. हमारे फलों को खाड़ी के बाजारों तक पहुंचते देखकर न सिर्फ मेरे परिवार को बल्कि पूरे क्षेत्र के किसानों को गर्व और संभावना का एहसास हुआ है.' यह मील का पत्थर न सिर्फ लद्दाख की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है बल्कि भारत के ठंडे रेगिस्तान के लिए भी एक ऐसा क्षण है जो लंबे समय से भौगोलिक और रसद से जुड़ी मुश्किलों का सामना करता आ रहा है.
प्रीमियम हलमन खुबानी अपनी मिठास और सुखाने की क्षमता के लिए जानी जाने वाली एक बेशकीमती किस्म है और यह किस्म केंद्र शासित प्रदेश की बागवानी पहचान का केंद्र है. परंपरागत तौर पर मध्य जून के बाद तोड़े गए फलों को गर्मियों में ताजा खाया जाता है या सर्दियों में धूप में सुखाया जाता है. बाहरी बाजारों में इनकी बिक्री सीमित होती है. हालांकि 2025 में स्थितियां बदली हैं और इसका श्रेय कटाई के बाद की बेहतर देखभाल और हिमालयन प्रॉडक्ट्स के लिए बढ़ती ग्लोबल डिमांग को जाता है.
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) की ओर से 1.5 मीट्रिक टन की असाधारण खेप को 5 अगस्त को लेह से लद्दाख के उद्योग और वाणिज्य सचिव पी.टी. रुद्र गौड़ ने औपचारिक रूप से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) स्थित लुलु ग्रुप ने अपनी सहयोगी फर्मों के माध्यम से खरीद की सुविधा प्रदान की जिसके बाद लद्दाख ने भी ग्लोबल एग्री-बिजनेस में एंट्री कर ली है.
जैदी की मानें तो साल 2019 से पहले जब लद्दाख जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था तब कोडलिंग मोथ के डर से खुबानी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. हालांकि बाद में एक्सपर्ट्स ने पुष्टि की कि यह कीट खुबानी को नहीं बल्कि सेब को प्रभावित करता है और यह लद्दाख तक ही सीमित है. लद्दाख को जब केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला तो निर्यात का रास्ता खुला. लद्दाख के बागवानी निदेशक, त्सेवांग पंचोक ने अखबार से कहा, 'पहले, हमारे पास कोल्ड चेन स्टोरेज की कमी थी और इतनी नाजुक, जल्दी खराब होने वाली उपज को बिना भारी नुकसान के ट्रांसपोर्ट करना मुश्किल था. साल 2019 से, कोल्ड चेन टेक्नोलॉजी और क्वालिटी सर्टिफिकेशन प्रोटोकॉल लागू होने के बाद, स्थिति पूरी तरह से बदल गई है.'
फलों को ताजा बेचा जाता है, संसाधित किया जाता है और पारंपरिक धूप में सुखाने के तरीकों का उपयोग करके सुखाया जाता है. पंचोक ने बताया कि गुठली रहित सूखी खुबानी को बादाम और अन्य प्रीमियम सूखे मेवों की तरह बेचा जाता है, जिससे किसानों को साल भर आय होती है. दो दशकों से भी ज़्यादा समय से खुबानी की खेती कर रहे गुलाम मोहम्मद अखून ने बताया कि सूखी खुबानी अब बहुत अच्छी कीमतें पा रही है. 66 साल के बागवान, जो अब खुबानी जैम, जूस और ड्रिंक्स बनाने वाली एक सहकारी संस्था के साथ काम करते हैं, ने कहा, 'पहले दिल्ली के लोग लद्दाखी खुबानी के बारे में जानते तक नहीं थे. लेकिन अब हालात बदल गए हैं और हमें देश-विदेश से भी इसकी मांग मिल रही है.
प्रीमियम हलमन किस्म को काफी महंगा माना जाता है. किस्म के ए-ग्रेड बीजरहित सूखे खुबानी अब 1,000 रुपये प्रति किलो तक मिलते हैं, जबकि ताजा हलमन क्वालिटी के आधार पर 250 से 280 रुपये प्रति किलो के बीच मिलते हैं. स्थानीय रूप से 'चुली' के नाम से मशहूर खुबानी विटामिन ए और सी, कैल्शियम, आयरन, कार्बोहाइड्रेट, अमीनो एसिड, शुगर और पोटेशियम की उच्च मात्रा के लिए जानी जाती है. जहां तुर्की खुबानी उत्पादन में दुनिया में सबसे आगे है तो वहीं लद्दाख दुनिया भर में सबसे मीठी किस्म के उत्पादन के लिए जाना जाता है. यह भारत का सबसे बड़ा खुबानी उत्पादक भी है, जहां करीब 2,600 हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती की जाती है और 30,000 से ज्यादा किसान इसका लाभ उठाते हैं. इस क्षेत्र में सालाना अनुमानित 20,000 मीट्रिक टन खुबानी का उत्पादन होता है जिसमें 16,000 टन कारगिल से और 4,000 टन लेह में पैदा होती है. वहीं करीब 2,000 टन खुबानी को संसाधित करके सुखाया जाता है.
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