दूध नहीं पीते थे वर्गीज कुरियन, ना ही डेयरी में था इंट्रेस्ट... फिर भी बने श्वेत क्रांति के जनक, जानिए कैसे?

दूध नहीं पीते थे वर्गीज कुरियन, ना ही डेयरी में था इंट्रेस्ट... फिर भी बने श्वेत क्रांति के जनक, जानिए कैसे?

आज भारत का डेयरी सेक्टर खूब फल-फूल रहा है. दूध उत्पादन के मामले में तेजी से आगे बढ़ने के साथ देश के कई किसान इस क्षेत्र से जुड़कर अपनी आर्थिक आय भी मजबूत कर रहे हैं. इसमें विशेष योगदान वर्गीज कुरियन का रहा है. दिलचस्प बात ये है कि उन्हें खुद दूध नहीं पसंद था. इस खबर में सभी दिलचस्प बातें बताने जा रहे हैं.

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दूध नहीं पीते थे वर्गीज कुरियन, ना ही डेयरी में था इंट्रेस्ट... फिर भी बने श्वेत क्रांति के जनक, जानिए कैसे?दुग्ध क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन

आज भारत दूध उत्पादन के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुंच चुका है. भारत में डेयरी सेक्टर खूब फल-फूल रहा है लेकिन इसकी राह इतनी आसान नहीं थी. एक ऐसा भी वक्त था जब भारत को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए देश में सहकारिता आंदोलन शुरू हुआ था. ये कहानी इस आंदोलन के सबसे बड़े नायक कहे जाने वाले वर्गीज कुरियन की है. वर्गीज कुरियन को दुग्ध क्रांति का जनक कहा जाता है, हालांकि दिलचस्प बात ये है कि श्वेत क्रांति की अलख जगाने वाले कुरियन खुद दूध नहीं पीते थे. आइए जान लेते हैं कि वर्गीज कुरियन कौन थे और ऑपरेशन फ्लड क्या था?

कौन थे वर्गीज कुरियन

वर्गीज कुरियन का जन्म 26 नवम्बर 1921 को केरल के कोझिकोड में हुआ था.  उन्होंने चेन्नई के लोयला कॉलेज से 1940 में साइंस से ग्रेजुएशन कंप्लीट किया बाद में चेन्नई के ही GG Engineering college से  इंजीनियरिंग की डिग्री भी हासिल की. डॉ कुरियन की पढ़ाई में दिलचस्पी को देखते हुए डेयरी इंजीनियरिंग में पढ़ाई के लिए भारत सरकार की तरफ से स्कॉलरशिप भी मिली. 

वर्गीज कुरियन का दुग्ध क्रांति में योगदान 

दुग्ध क्रांति में वर्गीज कुरियन का योगदान ऐतिहासिक रहा. वे त्रिभुवनदास पटेल की अगुवाई में सहकारिता आंदोलन से जुड़े और उसके बाद 1970 में ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत कर देश को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया. गुजरात के आनंद जिले में अमूल डेयरी की स्थापना में उनका अहम योगदान रहा. इसके अलावा साल 1970–80 के बीच दूध के लिए राष्ट्रीय ग्रिड तैयार किया और फिर डेयरी सहकारी समितियों का विस्तार और तकनीकी सुधार किया.

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उनके इस तमाम योगदानों को लेकर उन्हें कई बार पुरस्कृत किया गया. आपको बता दें कि वर्गीज कुरियन को साल 1965 में पद्मश्री, 1966 में पद्मभूषण और 1999 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. 09 सितंबर 2012 के दिन गुजरात के नडियाद में उनका निधन हो गया. 

दूध नहीं पीते थे कुरियन

कहते हैं जो काम पसंद नहीं उसी की वजह से दुनिया में विशेष पहचान मिल जाती है. ऐसा ही कुछ वर्गीज कुरियन के साथ हुआ था. उनको लेकर किस्सा है कि ना उनका डेयरी में कोई बैकग्राउंड था, ना ही वो कभी गुजरात जाना चाहते थे. इन बातों का जिक्र उन्होंने कई बार खुद अपने इंटरव्यू में किया था. अमेरिका से पढ़ाई करके लौटे तो उनकी सरकारी पोस्टिंग आनंद (गुजरात) में हुई जहां उनका मन नहीं लगता था. इसके अलावा कुरियन असल में मैकेनिकल इंजीनियर थे, दूध या डेयरी इंडस्ट्री में उनका कोई बैकग्राउंड नहीं था लेकिन उन्होंने विज्ञान, तकनीक और प्रबंधन से भारत की डेयरी इंडस्ट्री की तकदीर बदल दी. उनको लेकर सबसे दिलचस्प किस्सा ये है कि उन्होंने खुद कभी दूध नहीं पिया ना ही वे दूध पीना पसंद करते थे उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा था कि 'मेरा मिशन दूध पीना नहीं बल्कि देश को दूध पिलाना था.' 
 

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