बिहार या पूर्वी मिथिलांचल में आज भी सतुवाई/सतुआनी नाम का पर्व मनाया जाता है जिसका अपना विशेष महत्व है. हालांकि इसे लगभग हर राज्य में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. हर पर्व की तरह ही इस पर्व की अपनी एक खास विशेषता और महत्व है. इस पर्व में चने के सत्तू और छोटे आम के टिकोला का बहुत महत्व होता है. यह पर्व इन्हीं बातों के लिए भी प्रसिद्ध है. माना जाता है कि इस त्योहार के बाद से ही यहां के लोग नए फल आम टिकोला का सेवन करना शुरू कर देते हैं.
ठीक लोहरी की तरह यहां भी नए फल और अनाज की पूजा की जाती है और फिर प्रसाद के रूप में उसे खाया जाता है. ऐसे में इस साल सतुवाई या सतुआन 14 अप्रैलन 2023 को मनाया जा रहा है. आइए जानते हैं क्या है इस पर्व का महत्व.
जिस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है उसे मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है. वहीं, उत्तर भारत के लोग इसे सत्तू संक्रांति या सतुआ संक्रांति के नाम से जानते हैं. इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी करते हैं. इसी के साथ खरमास समाप्त हो जाता है और सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. मेष संक्रांति को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है.
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उत्तर भारत सहित उत्तर पूर्व के कुछ राज्यों में इसे सतुआनी के रूप में मनाया जाता है और इस दिन सत्तू को अपने इष्ट देवता को भोग लगाया जाता है और फिर स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. इसी के साथ आम के टिकोले भी खाए जाते हैं. वैज्ञानिक कारण पर ध्यान दें तो इसी दिन से सूर्य का ताप बढ़ने लगता है. इससे लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में सत्तू की तासीर ठंडी होती है, जिसे पीने के बाद ठंडक मिलती है. वहीं आम का टिकोला लू से बचाता है. ऐसे में गर्मियों में इसका सेवन सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है.
मेष संक्रांति के दिन उत्तर और पूर्वी भारत के कई राज्यों में सतुआनी का त्योहार मनाया जाता है. इस बार सूर्य का गोचर मीन से मेष राशि में 14 अप्रैल को हो रहा है. ऐसे में मेष संक्रांति 14 अप्रैल को पड़ रही है. इसलिए सतुआनी का पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाएगा.
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