बचपन से एक साथ बड़े हुए भाई-बहन का रिश्ता सबसे अनोखा और खट्टा-मीठा होता है. इस रिश्ते में प्यार के साथ-साथ लड़ाई-झगड़े और नोकझोंक का तड़का भी लगता है. यूं देखा जाए तो भाई-बहन हमेशा एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं. लेकिन उनके बीच का प्यार कभी खत्म नहीं होता. इसी प्यार को बनाए रखने के लिए हम हर साल राखी का त्योहार मनाते हैं. बहनें अपने भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांधकर सदियों से यह त्योहार मनाती आ रही हैं.
साथ ही भाई-बहनों को खुश करने के लिए उन्हें उपहार भी देते हैं. राखी का यह त्योहार सावन के महीने में मनाया जाता है. या यूं कह ले की सावन महीने के आखिरी दिन इस त्योहार को मनाया जाता है. ऐसे में इस साल कब है राखी आइए जानते हैं.
भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिए शुभ मुहूर्त का होना बहुत जरूरी है. मान्यताओं के मुताबिक यदि श्रावण पूर्णिमा पर भद्रा का साया हो तो भद्राकाल में राखी नहीं बांधी जा सकती. हिन्दू संस्कृति में यह अशुभ माना जाता है. इसके पूरा होने के बाद ही राखी बांधनी चाहिए. भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है. इस संबंध में पंडित शशि शेखर मिश्रा ने बताया कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10.58 बजे शुरू हो रही है. लेकिन इस बार 30 अगस्त को पूरे दिन भद्रा का साया रहेगा और इस दिन राखी बांधने का कोई शुभ मुहूर्त नहीं है. ऐसे में इस साल 31 अगस्त को राखी मनाया जा रहा है.
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ऐसे में आप अपने भाइयों को इस बार 31 अगस्त को राखी बांध सकते हैं. लेकिन राखी बांधने के लिए आपको मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना होगा. पंडित शशि शेखर के मुताबिक 31 अगस्त को राखी बांधने का शुभ समय सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक ही है. ऐसे में इस बार आपको भाइयों को सुबह-सुबह राखी बांधनी होगी.
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10.58 बजे से शुरू हो रही है और यह 31 अगस्त को सुबह 7.05 बजे समाप्त होगी. लेकिन 30 अगस्त यानी सुबह 10:58 बजे से पूर्णिमा तिथि शुरू होने के साथ ही मृत्युलोक की भद्रा शुरू हो रही है, जो रात 9:15 बजे तक रहेगी. इसलिए राखी का शुभ मुहूर्त 31 अगस्त का निकाला गया है.
रक्षाबंधन के त्यौहार के सम्बन्ध में कई पौराणिक एवं ऐतिहासिक घटनाएं हैं. कहा जाता है कि देवराज इंद्र बार-बार राक्षसों से पराजित होते थे. जब भी देवता दानवों से पराजित होते थे तो वह निराश हो जाते थे. इसके बाद इंद्राणी ने कठोर तपस्या की और अपनी तपस्या से एक रक्षा सूत्र तैयार किया. इंद्राणी ने यह रक्षासूत्र देवराज इंद्र की कलाई पर बांधा. इस शक्तिशाली रक्षासूत्र के प्रभाव से देवराज इंद्र राक्षसों को पराजित करने में सफल हुए. तभी से रक्षाबंधन का त्योहार शुरू हुआ.
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