दशकों बाद पंजाब ने इस साल मॉनसून में भयानक बाढ़ का सामना किया. अब इस बाढ़ की वजह से यहां की मिट्टी की सेहत भी खराब हो गई है. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) की तरफ से हुई एक स्टडी में बड़ा सच सामने आया है. पीएयू की स्टडी के अनुसार पंजाब के कई जिलों में आई विनाशकारी बाढ़ ने मिट्टी की गुणवत्ता और संरचना पर गंभीर असर डाला है. स्टडी में यह बात सामने आया है कि बाढ़ की वजह से मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है. इससे फसलों की जड़ें कमजोर हो सकती हैं और जल धारण करने या पानी सोखने की क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है.
अखबार द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार यूनिवर्सिटी की तरफ से हुई स्टडी में पाया गया कि बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में मिट्टी की सतह पर नई तलछट की परतें जमा हो गई हैं. ये परतें कुछ इंच से लेकर एक मीटर तक की गहराई में पाई गई हैं, जिनका टेक्सचर अलग-अलग है. विशेषज्ञों ने बाढ़ प्रभावित जिलों से मिट्टी के सैंपल इकट्ठा किए और पाया कि इनमें कई जगहों पर रेत, गाद और भारी धातुओं की मात्रा बढ़ गई है. इससे मिट्टी की उर्वरता में गिरावट दर्ज की गई है.
पीएयू के स्कूल ऑफ क्लाइमेट चेंज एंड फूड सिक्योरिटी के निदेशक डॉक्टर विकास चावला ने बताया कि हाल ही में आई बाढ़ों ने मिट्टी की प्राकृतिक संरचना को पूरी तरह बदल दिया है. हिमालयी नदियों से आई बाढ़ ने रेत और गाद की नई परतें बना दी हैं, जिससे मिट्टी का मूल स्वरूप नष्ट हो गया है.' उन्होंने बताया कि बाढ़ के पानी के लंबे समय तक ठहराव से मिट्टी में एक कठोर परत बन गई है. यह परत पौधों की जड़ों की वृद्धि को रोकती है. इससे मिट्टी में हवा और पानी का संचलन रुक जाता है और पौधों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती.
स्टडी के अनुसार, मिट्टी की इस स्थिति से खरीफ और रबी दोनों फसलों पर असर पड़ने की आशंका है. पोषक तत्वों की असमानता और मिट्टी की कड़ी परतें फसलों की जड़ों के विकास में बाधा बन सकती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सुधार के कदम तुरंत नहीं उठाए गए तो फिर इस साल कृषि उत्पादन में गिरावट तय है. डॉ. चावला ने किसानों को सलाह दी है कि वे जल्द से जल्द मिट्टी की जांच करवाएं और उसमें ऑर्गेनिक खाद और जिप्सम का प्रयोग करें. उनका कहना था कि इससे मिट्टी का संतुलन बहाल करने में मदद मिलेगी. साथ ही उन्होंने किसानों को धान की पराली का उपयोग करने की भी सलाह दी, जिससे मिट्टी की सेहत सुधर सकती है और जैविक गतिविधियां बढ़ाई जा सकती हैं.
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