महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, खासकर नांदेड़ जिले में इस साल हुई भारी बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों की ज़िंदगी पर गहरा असर डाला है. लगभग 6 लाख 50 हजार हेक्टेयर खेती बर्बाद हो चुकी है, जिसमें सोयाबीन, कपास, हल्दी, मूंग, उड़द, गन्ना और ज्वार जैसी फसलें शामिल हैं.
कोंढा गांव, जिसे "बळी राजा" यानी किसान का गांव कहा जाता है, वहां 48 वर्षीय किसान निवृत्ति कदम ने कर्ज़ और फसल बर्बादी से परेशान होकर आत्महत्या कर ली.
परिवार की हालत:
निवृत्ति कदम के आत्महत्या करने के 12 घंटे के भीतर उनके पिता सखाराम कदम की भी मौत हो गई. “मेरे पति और ससुर दोनों चले गए. बैंक की नोटिसें, मरी हुई गाय और बेरोजगार बेटे... सब कुछ मिलकर मेरे पति को तोड़ गया.” निवृत्ति कदम के बेटे अर्जुन का कहना है- “अगर कर्ज़माफी हुई होती तो शायद पिताजी और दादा आज ज़िंदा होते. हम त्योहार मना पाते. सरकार से अपील है कि किसानों को राहत दी जाए.”
गांव के बुजुर्ग बालाजी कदम ने कहा- “चुनाव से पहले सरकार ने कर्ज़माफी का वादा किया था. अब वादा निभाने का समय है. 8,500 रुपये प्रति हेक्टेयर कोई समाधान नहीं. कम से कम 50,000 रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजा दिया जाए.” एक और आत्महत्या- येलेगांव के युवा किसान की दर्दनाक कहानी
अर्धापुर तहसील के येलेगांव निवासी परमेश्वर नारायण कपाटे (उम्र 24) ने भी आत्महत्या कर ली. डेढ़ एकड़ ज़मीन और दूध व्यवसाय के सहारे परिवार का गुजारा कर रहे थे.
"बाढ़ में सारी फसल चली गई. बैंक और साहूकारी कर्ज़ के बोझ से तंग आ चुका हूं. मैं सोचता रहता था, यह कर्ज़ कैसे चुकाऊं? अब आत्महत्या कर रहा हूं."
"हमने कभी नहीं सोचा था कि वह इतना बड़ा कदम उठाएगा. वह चुपचाप चिंता में डूबा रहता था." “गांव के अधिकतर किसानों की फसल बर्बाद हो गई. सरकार को तुरंत मुआवजा देना चाहिए ताकि और कोई किसान ऐसा कदम न उठाए.”
नांदेड़ जिल्हा कलेक्टर राहुल कर्डिले ने बताया:
नांदेड़ जिले की ये घटनाएं सिर्फ खबर नहीं हैं, बल्कि समाज और सरकार के लिए एक गहरी चेतावनी हैं. किसानों को सिर्फ वादों की नहीं, समय पर राहत और समर्थन की जरूरत है. (कुंवरचंद मंडले नांदेड़ का इनपुट)
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