धान-परती प्रबंधन से आएगी समृद्धि, गया में बदलेगी किसानों की तकदीर

धान-परती प्रबंधन से आएगी समृद्धि, गया में बदलेगी किसानों की तकदीर

गया जिले के किसान अब धान-परती भूमि प्रबंधन के तहत अच्छी कमाई कर रहे हैं. जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना द्वारा किसानों को इस प्रणाली से जुड़ा हुनर सिखाया जा रहा है.

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धान-परती प्रबंधन से आएगी समृद्धि, गया में बदलेगी किसानों की तकदीरधान-परती प्रबंधन

आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखा, बेमौसम बारिश और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रही है. वहीं, वैज्ञानिक खेती में नई तकनीकों का उपयोग कर बदलाव लाने की दिशा में कार्यरत हैं. इसी क्रम में आईसीएआर, पटना द्वारा गया जिले में धान-परती भूमि के बेहतर उपयोग और किसानों के सशक्तिकरण के लिए एक विशेष पहल शुरू की गई है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत किसानों को रबी मौसम में फसल उत्पादन के लिए तकनीकी सहायता दी जा रही है, साथ ही नमी और सिंचाई से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए भी उन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा है.

आय और आजीविका में सकारात्मक बदलाव

आईसीएआर, पटना के निदेशक डॉ. अनूप दास और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राकेश कुमार के मार्गदर्शन में किसानों को भूमि प्रबंधन, फसल विविधीकरण, जल संरक्षण और उन्नत कृषि तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए उपायों को अपनाकर किसानों ने रबी फसलों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे उनकी आय और आजीविका में सकारात्मक बदलाव आया है.

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धान-परती भूमि प्रबंधन से बढ़ रही आमदनी

गया जिले के टेकारी प्रखंड के गुलेरियाचक गांव में आईसीएआर, पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना द्वारा सोमवार को धान-परती भूमि के बेहतर उपयोग को लेकर एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस अवसर पर तकनीशियन राम कुमार मीना और प्रक्षेत्र सहयोगी श्रीकांत चौबे ने किसानों को कम अवधि में पकने वाली सीधी बुवाई वाली धान की किस्मों, मेड़ पर अरहर की खेती और अन्य वैज्ञानिक विधियों की जानकारी दी. वहीं, किसानों ने बताया कि इस कार्यक्रम से उन्हें न केवल तकनीकी ज्ञान प्राप्त हुआ है, बल्कि उन्होंने व्यावहारिक रूप से भी इसका लाभ महसूस किया है. कार्यक्रम के अंतर्गत गया जिले में अब तक 75 एकड़ क्षेत्र में दलहन और तिलहन की श्रेष्ठ किस्मों की पहचान कर किसानों को उनसे होने वाले लाभ से अवगत कराया गया है.

धान-परती भूमि प्रबंधन क्यों है फायदेमंद?

धान-परती भूमि प्रबंधन एक ऐसी कृषि प्रणाली है, जिसमें धान की कटाई के बाद खाली पड़ी भूमि का सदुपयोग किया जाता है, ताकि भूमि की उत्पादकता बढ़ाई जा सके और किसानों को अतिरिक्त आमदनी हो. इसके अंतर्गत मिट्टी की नमी का संरक्षण, फसल विविधीकरण, जल प्रबंधन और स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त फसलों का चयन किया जाता है. इस प्रणाली में कम समय में पकने वाली और कम पानी में फलने वाली फसलों को प्राथमिकता दी जाती है. यह प्रबंधन न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और खाद्य सुरक्षा की दिशा में भी एक सार्थक कदम है. 

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