पिछले 15 दिनों से दिल्ली और यूपी के जिलों में वायु की गुणवत्ता का सूचकांक काफी खराब हो चुका है. वहीं पिछले वर्षों में देखा गया है कि दीपावली के बाद वायु गुणवत्ता सूचकांक और भी ज्यादा खराब हो जाता है. आतिशबाजी और पटाखे जलाने से कई तरह हानिकारक प्रभाव हमारी सेहत पर भी देखने को मिलते हैं. आतिशबाजी और पटाखे जलाने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड ,कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस सबसे ज्यादा निकलती है. इन जहरीली गैस और प्रदूषण के चलते हवा, पानी ,मिट्टी की सेहत भी प्रदूषित होती है जो इंसानों ही नहीं पक्षियों, वन्य जीवों पर जानवरों के लिए हानिकारक है. इसलिए दीपावली के मौके पर बच्चे, बूढ़े और गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतने की भी चिकित्सकों के द्वारा सलाह दी जा रही है.
हवा की गुणवत्ता साल दर साल लगातार खराब हो रही है. सर्दियों के दौरान कोहरे की तरह दिखने वाला स्मॉग बढ़ रहा है. वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने हरे पटाखे विकसित किए हैं जो पर्यावरण की अनुकूल हैं. इनमें पेंसिल, फुलझड़ियां , मैरून, बम और चकरी शामिल है. यह पटाखे पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन द्वारा अनुमोदित भी है . हरे पटाखे के उत्पादन से दुर्घटनाओं को काम किया जा सकता है. पारंपरिक पटाखे अत्यधिक विषैला रसायन से बने होते हैं जो जलने पर वातावरण में पर्टिकुलर मैटर (पीएम ) के स्तर को बढ़ाते हैं. पीएम 2.5 के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं. फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं जिससे हमारे स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक गंभीर प्रभाव पड़ता है. प्रदूषण का इतना उच्च स्तर बच्चों गर्भवती महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. हरे पटाखे में बेरियम नाइट्रेट नहीं होता है .
कॉपर: ये आपके श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है
कैडमियम: ये आपके खून में ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता को कम करके एनीमिया की ओर ले जाता है।
जिंक: इसके हवा में अधिक होने से धुआं अधिक होता है। आपका दम घुटने लगता है और उलटी आती है।
सीसा: तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है।
मैग्नीशियम: हवा में मैग्नीशियम होने से आपको बुखार आ सकता है।
सोडियम: यह अत्यधिक क्रियाशील तत्व है। ये जलन पैदा कर सकता है।
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तमिलनाडु के शिवकाशी में देश का 70% पटाखे का उत्पादन होता है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार हरे पटाखे को लेकर खास निर्देश दिए गए हैं. इसके बावजूद भी हर साल बड़े पैमाने पर विषैले पटाखे को जलाये जाते है जिसके चलते दीपावली के बाद वायु की गुणवत्ता का सूचकांक और भी ज्यादा खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है. वायु और ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ग्रीन पटाखे के इस्तेमाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश हैं. ग्रीन पटाखे मैग्नीशियम और बेरियम के बजाय पोटेशियम नाइट्रेट और एल्यूमीनियम जैसे वैकल्पिक रसायनों के प्रयोग से बनाए जाते हैं. आर्सेनिक और अन्य हानिकारक प्रदूषकों की बजाय कार्बन का उपयोग किया जाता है. परंपरागत पटाखे के द्वारा 160 से 200 डेसीबल के बीच ध्वनि उत्पन्न होती है जबकि हर पटाखे से 100 से 130 डेसीबल तक ही ध्वनि होती है. हरे पटाखे पूरी तरीके से प्रदूषण मुक्त नहीं है लेकिन नियमित पटाखे की तुलना में काफी कम प्रदूषण करते है.
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