राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ यानी नेफेड अब अमूल की तर्ज पर एक बड़ा ब्रांड बनने की कोशिश में जुट गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि नेफेड अब अमूल की तरह ही देश-विदेश में खाने-पीने वाले 200 से अधिक तरह के सामान बेचने लगा है. खास बात यह है कि यह रेडी टू ईट प्रोडक्ट की रेस में भी शामिल हो गया है. समोसे से लेकर मटर पनीर और दाल मखनी तक रेडी टू ईट की रेंज में शामिल हैं. इसके लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मार्केट तलाशे जा रहे हैं, ताकि उसका नेफेड और उससे जुड़े किसानों दोनों का फायदा हो. कुल मिलाकर बात यह है कि किसानों के फायदे के लिए बनी यह सहकारी संस्था अब 'किसान से किचन तक' के मंत्र के साथ एक बिजनेस घराने की तरह बाजार में खुद को 'नेफेड' ब्रांड नाम से उतार रही है.
रेडी टू ईट प्रोडक्ट लोगों को नेफेड के ऑनलाइन पोर्टल पर भी मिल जाएंगे. नेफेड ये सारे सामान सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बेच रहा है. अपना दायरा बढ़ाने के लिए नेफेड और लुलु ग्रुप ने हाल ही में एक समझौता किया है. इस समझौते का मकसद भारतीय व्यंजनों को वैश्विक बाजारों तक पहुंचाना है. यह सहयोग भारतीय किसानों और उत्पादकों के लिए नए अवसर पैदा करेगा और वैश्विक कृषि-बाजार में भारत के दखल को बढ़ाएगा.
नेफेड के एमडी दीपक अग्रवाल ने 'किसान तक' से बातचीत में कहा कि पहले यह सहकारी संस्था कृषि उपज बेचने के लिए ज्यादातर गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील करती थी. लेकिन, अब ऐसा नहीं है. अब हमसे कोई भी प्राइवेट पार्टी कृषि उपज, रेडी टू ईट या रेडी टू कुक व्यंजन खरीदना चाहेगी तो हम उसे बेचेंगे. क्योंकि जितना सामान बिकेगा किसानों को उतना ही फायदा होगा. हमारी इसी सोच का परिणाम है कि हमने लूलू ग्रुप के साथ समझौता किया है, जिसके जरिए भारतीय व्यंजनों की खुशबू मिडिल ईस्ट के देशों तक पहुंचेगी. हमारे रेडी टू ईट प्रोडक्ट दो साल तक खराब नहीं होंगे.
साल 2019-20 में नेफेड का बिजनेस टर्नओवर 16281 करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 26,520 करोड़ रुपये हो गया. इसी तरह 2019-20 में नेफेड ने 165.65 करोड़ रुपये का नेट प्रॉफिट कमाया था जो 2023-24 में बढ़कर 492.38 करोड़ रुपये हो गया. नेफेड किसानों की आय बढ़ाने के लिए न सिर्फ इस वक्त अपने कारोबार के विस्तार पर जोर दे रहा है बल्कि केंद्र सरकार ने कृषि जगत की एक अहम जिम्मेदारी भी सौंपी है.
दलहन के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से केंद्र सरकार ने उत्पादन की शत प्रतिशत दालों की खरीद का प्लान बनाया है, जिसके लिए नेफेड को नोडल एजेंसी बनाया गया है. नेफेड की स्थापना गांधी जयंती के मौके पर 2 अक्टूबर, 1958 को की गई थी. इसका मकसद कृषि उत्पादों की सहकारी मार्केटिंग को बढ़ाकर किसानों को फायदा दिलाने के लिए की गई थी. नेफेड के सदस्य प्रमुख तौर पर किसान है.
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