खरीफ सीजन अपने पीक पर है, जिसके तहत खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान की पौध फसल बनने की तरफ बढ़ रही है. हालांकि बाढ़ की वजह से कई जगहाें पर दोबारा रोपाई शुरू हुई है, लेकिन कुल मिलाकर धान की पौध के लिए ये समय बड़ा ही चुनतीपूर्ण है, जिसमें धान की पौध को कई तरह के कीटों और बीमारियों का सामना करते हुए अपनी जीवन यात्रा को जारी रखना है. हालांकि धान के पौधों के इस संघर्ष को सफल बनाने के लिए किसान भी जी जान से जुटे रहते हैं. मसलन, किसानों के पास धान की पौधों को कीटों और बीमारियों को बचाने के कीटनाशकों के प्रयोग का विकल्प है, इसी कड़ी में कई किसान धान की पौध पर कीटनाशक छिड़कने की तैयारी भी कर रहे हैं, लेकिन इस बीच पंजाब सरकार ने 10 कीटनाशकों पर बैन लगा दिया है.
इस फैसले के पीछे की वजह को समझने की कोशिश करें तो कहा जा सकता है पंजाब सरकार के इस फैसले का दुनिया के कई देशों से सीधा कनेक्शन है, जबकि ये फैसला भारत को 4 हजार करोड़ रुपये का प्रॉफिट कर सकता है. बेशक ऊपर लिखे विरोधाभासी बातें पढ़कर दिमाग में खिचड़ी बन गई होगी, लेकिन सच ये ही है. आइए इस इनसाइडर में कीटनाशक बैन के फैसले का शाब्दिक पोस्टमार्टम करते हैं.
पंजाब सरकार ने कीटनाशकों पर बैन लगाने के लिए बीते रोज नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसके तहत पंजाब सरकार ने एसेफेट, बुप्रोफेजिन, क्लोरपाइरीफोस, हेक्साकोनोज़ोल, प्रोपिकोनाज़ोल, थियामेथोक्सम, प्रोफेनोफोस, इमिडाक्लोप्रिड, कार्बेन्डाजिम और ट्राइसाइक्लाजोल नामक कीटनाशकों के प्रयोग पर बैन लगा दिया है. पंजाब सरकार की तरफ से इन कीटनाकशकों के प्रयोग पर 60 दिनों का बैन लगाया है, जो 1 अगस्त 2023 से लागू होगा. मसलन, एक अगस्त से अगले 60 दिनों के लिए राज्य के किसान इन कीटनाशकों का प्रयोग नहीं कर सकेंगे. असल में राज्य सरकार किसी भी तरह के कीटनाशक पर सिर्फ 60 दिन का ही बैन लगा सकती है.
पंजाब सरकार की तरफ से कीटनाशकों पर बैन की ये पूरी कहानी बासमती चावल से जुड़ी हुई है. असल में पंजाब सरकार की तरफ से, जिन 10 कीटनाशकों पर बैन लगाया गया है, उनका प्रयोग बासमती धान के पौधों में किया जाता है. मसलन, इस समय धान के पौधों में झौंका और झुलसा रोग लगता है और इन कीटनाशकों का प्रयोग बासमती धान के पौधों को इन बीमारियों से बचाने के लिए किया जाता है.
कीटनाशकों पर बैन और बासमती धान... की ये कहानी बहुत कुछ बयां कर रही है, लेकिन इस बैन का दुनिया के कई देशों से कनेक्शन समझे बिना ये अधूरी है. असल में बासमती चावल या धान एक जीआई प्रोडक्ट है. मसलन, दुनिया में सिर्फ भारत और पाकिस्तान के पास ही बासमती चावल की बादशाहत है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, वेस्टर्न यूपी, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में उत्पादित होने वाले बासमती चावल को ही जीआई टैग मिला हुआ है. तो वहीं यहां उत्पादित होने वाले चावल की दुनिया के कई देशों में बेहद ही शानदार मांग है, जिसकी पूर्ति के लिए भारत बासमती चावल का एक्सपोर्ट दुनिया के कई देशों में करता है, लेकिन मांग और आपूर्ति की इस जुगलबंदी में कीटनाशक विलेन की भूमिका निभा रहे हैं.
कीटनाशक बैन के इस फैसले का दुनिया के कई देशों से कनेक्शन को समझने के लिए कुछ पुरानी घटनाओं का याद करना होगा. इसे एक उदाहरण से समझते हैं. असल में तकरीबन एक साल पहले मांग के बावजूद यूरोपियन यूनियन ने बासमती चावल की एक खेप को लेने से मना कर दिया था. यूरोपियन यूनियन ने आरोप लगाया था कि बासमती चावल की इस खेप में कीटनाशकों की मात्रा तय मानकों से ज्यादा हैं. ऐसे में वह बासमती चावल की इस खेप को नहीं स्वीकार सकते हैं. बासमती राइस एक्सपोर्टरों का कहना है कि दुनिया के कई देश इस तरह का आरोप लगाते हुए बासमती चावल की खेप लौटाते रहे हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Apeda) लंबे समय से बासमती में ऐसे कीटनाशकों के प्रयोग पर बैन लगाने की मांग कर रहा था. इसी कड़ी में राज्य सरकार ने ये फैसला लिया है.
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असल में बासमती एक्सपोर्ट करने के लिए एक्सपोर्टर कड़े नियमों का पालन करते हैं. इन नियमाें का पालन करने के बाद ही बासमती को दुनियाभर में बेहतर भाव मिलता है, जिसके तहत बासमती चावल में कीटनाशकों की मात्रा की जांच स्थानीय स्तर पर भी होती है तो वहीं इंपोर्ट करने वाले देश भी इसकी जांच करते हैं. बासमती एक्सपोर्ट में कीटनाशकों के मानकों की बात करें तो यूरोपियन यूनियन में अधिकतम 0.01 पीपीएम (0.01 मिलीग्राम/किग्रा) कीटनाशक की मात्रा ही स्वीकारी जाती है. मसलन, अगर 100 टन चावल में कीटनाशकों की मात्रा अगर एक ग्राम से अधिक होती है तो यूरोपियन यूनियन ऐसी चावल की खेप को अस्वीकार कर देते हैं.
बासमती धान और कीटनाशकों पर बैन की इस कहानी का क्लाइमैक्स पूरा होने को है, लेकिन यहां पर ये कीटनाशकों के जहरीले होने और इनके प्रयोग से उत्पादित होने वाले चावल के प्रयोग को लेकर मन में कई तरह के सवाल पैदा होने लाजिमी हैं. इसी तरह के सवालों का जवाब देते हुए APEDA के प्रिसिंपल साइंटिस्ट डाॅ रितेश शर्मा कहते हैं कि कीटनाशकों के प्रयोग से चावल जहरीले नहीं होते हैं. क्योंकि धान के पौधों में कीटनाशकों का प्रयोग होता है और धान को अपनी चावल तक की यात्रा में कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है. इसके बाद चावल बनाते हुए भी गर्म पानी में डाला जाता है. ऐसे में इनके जहरीले होने का कोई मतलब नहीं है. साथ ही वह कीटनाशकों पर बैन को लेकर कहते हैं कि कीटनाशकों का प्रयोग ही पौधों को बीमारियों से बचाने के लिए बनाया गया है, लेकिन इनका अंधाधुंध प्रयोग खतरनाक होता है. वहीं वह जोड़ते हैं कि कई देशों में कई कीटनाशक रजिस्टर्ड नहीं हैं. ऐसे में अगर किसी बासमती की खेप में कीटनाशकों की मात्रा बेहद कम भी है तो वह देश लेने से मना कर देता है. इन बातों को ध्यान में रखते हुए 10 कीटनाशकों पर बैन लगाने का फैसला पंजाब सरकार ने लिया है.
पंजाब सरकार ने बासमती धान में प्रयोग होने वाले 10 कीटनाशकों के प्रयोग पर बैन लगा दिया है. माना जा रहा है कि हरियाणा सरकार भी जल्द ही इस तरह का बैन लगा सकती है. इससे जहां एग्रो केमिकल कंपनियां नाखुश हैं तो वहीं बासमती एक्सपोर्टर खुश हैं. बासमती राइस एक्सपोर्टर अशोक सेठी कहते हैं कि बेशक इस फैसले से एग्रो केमिकल्स कंपनियों को 200 करोड़ रुपये का नुकसान होगा, लेकिन भारत इससे 4 हजार करोड़ रुपये का कारोबार करेगा. तो वहीं किसानों को भी बेहतर दाम मिलेगा. वह कहते हैं कि भारत ने पिछले साल 36 हजार करोड़ रुपये का बासमती एक्सपोर्ट किया है. अब, जब कीटनाशकाें पर बैन लगा है तो हमें उम्मीद है कि इस साल 40 हजार रुपये का बासमती एक्सपोर्ट होगा. मसलन, इसे फैसले से 4 हजार करोड़ रुपये का फायदा होगा. वह कहते हैं कि पिछले साल बासमती धान के किसानों को 40 रुपये क्विंटल का दाम मिला था. इस बार किसानों को भी बेहतर दाम मिलने की उम्मीद है.
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