दुनिया में जिस हिसाब से दूध की खपत है, उस हिसाब से दुधारू पशुओं को पाले जाने का काम नहीं हो रहा है. इसका नतीजा है कि दूध के नए-नए विकल्प सामने आ रहे हैं. आपने सोयाबीन मिल्क के अलावा और भी कई दूध के प्रोडक्ट के बारे में सुना होगा. लेकिन अब एक नए तरह का दूध बाजार में उतरने जा रहा है. यह दूध चीनी, पानी और बैक्टीरिया को मिलाकर बनाया जाएगा. बैक्टीरिया इसलिए क्योंकि इसके बिना दूध बनना संभव नहीं है. यह नए तरह का दूध पूरी तरह से सिंथेटिक होगा लेकिन सेहत पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा. इस दूध में गाय या पौधों का कोई अंश नहीं होगा. आजकल पौधों से भी दूध बनाए जा रहे हैं जिसे वीगन मिल्क कहते हैं. वीगन मिल्क में डेयरी प्रोडक्ट बिल्कुल नहीं होते. उसी तरह चीनी और पानी से बनने वाले दूध में भी डेयरी प्रोडक्ट नहीं होगा.
इस नए तरह के दूध के बारे में दुनिया की मशहूर पत्रिका 'दि इकोनॉमिस्ट' में जानकारी दी गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 70 लाख करोड़ रुपये के वैश्विक डेयरी बाजार का हिस्सा बनने की उम्मीद के साथ अब कुछ कंपनियां गाय, भैंस या पौधों के बिना नए तरीके से दूध बना रही हैं. ये वो कंपनियां हैं जो सिंथेटिक डेयरी का हिस्सा हैं और दूध से जुड़े सिंथेटिक प्रोडक्ट बनाती हैं. ऐसे प्रोडक्ट में डेयरी के आइटम शामिल नहीं होते.
दरअसल सिंथेटिक डेयरी की ये कंपनियां जैव-रासायनिक क्रिया से दूध बना रही हैं. इस दूध बनाने की प्रक्रिया में एक विशेष टैंक में चीनी और पानी के बीच कुछ बैक्टीरिया को रखा जाता है. ये बैक्टीरिया कुछ समय बाद नियंत्रित वातावरण में चीनी को दूध के प्रोटीन में तब्दील कर देते हैं. इस तरह के दूध के काफी फायदे भी हैं. जिन लोगों को डेयरी प्रोडक्ट से परहेज है, वे इस दूध का आराम से इस्तेमाल कर सकते हैं.
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इन नए तरह के दूध से लैक्टोस को निकाल दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि कुछ लोगों को लैक्टोस से एलर्जी होता है. ऐसे लोग दूध या उससे बने प्रोडक्ट इस्तेमाल नहीं करते. सिंथेटिक दूध में लैक्टोस को बाहर निकाल दिया जाएगा जिससे एलर्जी वाले लोग भी इसका इस्तेमाल कर पाएंगे. रिपोर्ट कहती है, खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के बारे में बढ़ती चिंताओं को देखते हुए यह दूध काफी उपयोगी है. इसमें कम पानी का उपयोग होता है. वहीं पारंपरिक डेयरी उत्पादन की तुलना इसके लिए कम ऊर्जा और कम जगह की जरूरत होती है. साथ ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है, जो इस क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग के उत्सर्जन में 3 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं.
इस नए तरह के दूध को खास प्रकार के बने टैंक में बनाया जा रहा है. इसमें प्रयोग किया जाने वाला टैंक काफी महंगा होता है. इसके एक टैंक में लगभग 30 लीटर दूध को बनाया जा सकता है. इस टैंक की कीमत 1.5 करोड़ रुपये तक है. अगर गाय या भैंस पालने और उससे दूध निकालने के खर्च की तुलना करें तो एक गाय खरीदने पर 1.5 लाख खर्च करने होते हैं जबकि इस टैंक का खर्च 1.5 करोड़ रुपये है. अभी यह प्रोसेस शुरुआती स्टेज में है और कामयाब होने पर इसकी तकनीक पूरी दुनिया में फैल सकती है.
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