रानी मधुमक्खी के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देते हैं ये नर, दिलचस्प है इनकी कहानी

रानी मधुमक्खी के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देते हैं ये नर, दिलचस्प है इनकी कहानी

मधुमक्खी की कॉलोनी में सामाजिक वर्गीकरण पाया जाता है. रानी मधुमक्खी अपने चार से पांच साल के जीवन काल में अंडे देने का काम करती है. दूसरी ओर, कर्मचारी मधुमक्खियां एक कॉलोनी में 5000 से लेकर 50000 तक होती हैं और छत्ते में शहद बनाने का काम  करती हैं.

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रानी मधुमक्खी के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देते हैं ये नर, दिलचस्प है इनकी कहानी शहद निर्माण की प्रक्रिया

मधुमक्खी का अस्तित्व सृष्टि के आरंभ से माना जाता है. मधुमक्खियां शहद ही नहीं बनाती हैं बल्कि हमारे जीवन के लिए भी जरूरी है.  मधुमक्खियां सामाजिक प्राणी हैं और एक ग्रुप बनाकर मोम के छत्ते में रहती हैं. इस ग्रुप को कॉलोनी कहा जाता है जिसमें 50000 तक मधुमक्खियों का वास होता है. एक कॉलोनी में कुल तीन तरह की मधुमक्खियां होती हैं जिनमें रानी केवल एक होती है जबकि नर की संख्या सैकड़ों में होती है. वही कर्मचारी मधुमक्खियां हजारों में होती हैं. नर मधुमक्खी निषेचन को छोड़कर किसी काम के नहीं होते हैं और उनका जीवन भी रानी की दया पर निर्भर होता है. शहद बनाने का काम कर्मचारी मधुमक्खियों के द्वारा किया जाता है. यह बिना थके अपने जीवन काल में दिन रात मेहनत करते रहते हैं. इसीलिए शहद इनकी मेहनत की बदौलत स्वादिष्ट ही नहीं बल्कि औषधि भी है. शहद में जरूरी पोषक तत्व, खनिज और विटामिन्स का खजाना होता है.

मधुमक्खी की कॉलोनी में सामाजिक वर्गीकरण पाया जाता है. रानी मधुमक्खी अपने चार से पांच साल के जीवन काल में अंडे देने का काम करती है. दूसरी ओर, कर्मचारी मधुमक्खियां एक कॉलोनी में 5000 से लेकर 50000 तक होती हैं और छत्ते में शहद बनाने का काम  करती हैं. पूरे छत्ते में अंडे देने का काम रानी मधुमक्खी करती है. एक दिन में रानी के द्वारा 2500 से 3000 अंडे दिए जाते हैं जिनसे नर मधुमक्खियां या मादा मधुमक्खियों का जन्म होता है.

ऐसा है मधुमक्खी का जीवन चक्र

मधुमक्खी की कॉलोनी में शामिल सभी मधुमक्खियों के जीवन में चार पड़ाव होते हैं. सबसे पहले मधुमक्खियों के द्वारा अंडा, लार्वा, प्यूपा और फिर इनसे मक्खी का जन्म होता है. पूरी कॉलोनी में रानी मधुमक्खी के द्वारा ही व्यवस्था का संचालन किया जाता है जबकि सारा भारी काम कर्मचारी मधुमक्खियों के द्वारा किया जाता है. नर मधुमक्खी डंक विहीन होते हैं. वे निषेचन करने के अलावा किसी काम के नहीं होते हैं.

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जान कुर्बान कर देते हैं ये नर

20 साल से मधुमक्खी पालन करने वाले बृजेश वर्मा ने किसान तक को बताया, मधुमक्खी के छत्ते में एक ही रानी होती है. इस रानी का आकार अन्य मधुमक्खियों के अपेक्षा बड़ा होता है. यह सुनहरे रंग की लंबे आकार में होती है जिसको बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है. रानी मधुमक्खी केवल अंडे देने का काम करती है. नर मधुमक्खी के द्वारा अपने पूरे जीवन काल में केवल एक बार निषेचन किया जाता है जिसके बाद रानी चार से पांच साल तक अंडा देने का काम करती है. निषेचन के बाद नर मधुमक्खियों को कर्मचारी मधुमक्खियों के द्वारा मार दिया जाता है. 

मजदूर मधुमक्खी बनाती है शहद

मधुमक्खी के छत्ते में सबसे ज्यादा संख्या मजदूर मधुमक्खियों की होती है. मजदूर मधुमक्खियां मादा होती हैं लेकिन अंडे नहीं दे सकती हैं क्योंकि इनके जननांग विकसित नहीं होते हैं. इनके द्वारा ही दिन रात मेहनत करके फूलों के रस को चूस कर शहद बनाने का काम किया जाता है. 12 मधुमक्खियों के द्वारा पूरे जीवन काल में मेहनत करके केवल एक चम्मच शहद बनाया जाता है जिसके लिए लाखों फूलों के रस की जरूरत होती है. वहीं मजदूर मधुमक्खियों के द्वारा ही कॉलोनी की देखभाल और वैक्स का निर्माण भी किया जाता है. 

एक किलो शहद के लिए 90000 मील का सफर

लखनऊ के गोसाईगंज में मधुमक्खी पालन करने वाले बृजेश वर्मा बताते हैं कि कर्मचारी मधुमक्खियां शहद बनाने का ही काम नहीं करतीं बल्कि ये अपने शहद की रक्षा के लिए डंक भी मारती है. इन मधुमक्खियों में दो पेट होते हैं जिसमें एक खाने के लिए दूसरा फलों का रस इकट्ठा करने के लिए होता है. मधुमक्खियों को एक किलो शहद बनाने के लिए 90000 मील तक उड़ना पड़ता है. वहीं इसके लिए करीब 40 से 50 लाख फूलों का रस भी चूसना पड़ता है. मधुमक्खियों की रफ्तार 20 मील प्रति घंटे की होती है. वही है जब फूलों से रस चूस कर लौटती हैं तो इनकी रफ्तार 17 मील प्रति घंटे की होती है.

कैसे तैयार होता है शहद

कर्मचारी मधुमक्खियों के द्वारा ही शहद तैयार किया जाता है. हम जिस मीठे शहद का सेवन करते हैं उसे बनाने के लिए कर्मचारी मधुमक्खियों को काफी मेहनत करनी पड़ती है. ये मधुमक्खियां अपने दूसरे पेट में फूलों का रस इकट्ठा करती हैं और फिर इसे लाकर छत्ते में स्टोर करती हैं. इस दौरान मधुमक्खियों के द्वारा इस रस को इकट्ठा करके कई मिनट तक चबाया जाता है जिससे इनके शरीर में मौजूद ग्रंथि से एंजाइम निकलकर इस रस में मिल जाता है.

इस एंजाइम के मिलने के बाद यह  सुक्रोज, ग्लूकोज और फ्रक्टोज में टूट जाता है. फिर मधु कोषों में इनको मधुमक्खियां डाल देती हैं. इसमें मौजूद पानी वाष्प बन के उड़ जाता है जबकि यह रस गाढ़ा होकर शहद बन जाता है. मधुमक्खियां मोम से इन मधु कोशों को बंद कर देती हैं ताकि उनका शहद सुरक्षित रह सके और भूख लगने पर उनके बच्चे इनका उपयोग कर सकें. एक बॉक्स से 30 किलो तक प्रति वर्ष शहद तैयार होता है. 

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