किसानों के मुद्दों पर उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान के बाद एक बार फिर एमएसपी की लीगल गारंटी और किसानों की आय जैसे पहलुओं पर बहस छिड़ गई है. सरकार समर्थक अर्थशास्त्री दावा कर रहे हैं कि सब चंगा सी'. आंदोलन करने वाले नकली किसान हैं, असली तो खेतों में काम कर रहे हैं. किसान आंदोलन में आने वाली गाड़ियों के बहाने यह बताने की कोशिश की जा रही है कि किसान तो बहुत समृद्ध हो गए हैं. लेकिन क्या यह सब सच है? बिल्कुल नहीं. हाल ही में आई नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) की एक रिपोर्ट में किसान परिवारों की आय के बारे में चौकाने वाले खुलासे किए गए हैं. इसमें बताया गया है कि 2021-22 में प्रति किसान परिवार सभी स्रोतों से औसत मासिक कमाई सिर्फ 13,661 रुपये है. जिसमें से वो 11,710 रुपये खर्च कर देता है. यानी किसान परिवार महीने में सिर्फ 1951 रुपये बचत कर पाता है. अगर रोजाना की बात करें तो यह सिर्फ 65 रुपये होगा.
चौंकाने वाली बात यह है कि कुल इनकम में खेती से कमाई का हिस्सा महज 4476 रुपये है. यानी किसान परिवारों की कमाई में खेती का हिस्सा महज 33 फीसदी ही है. इसका मतलब यह है कि किसान परिवार खेती से रोजाना 150 रुपये भी नहीं कमा पा रहे हैं. महंगाई के इस जमाने में यही किसानों की कमाई का सच है. दिलचस्प बात यह है कि कृषि परिवारों का खर्च गैर-कृषि परिवारों के मुकाबले ज्यादा है. गैर कृषि परिवारों का मासिक खर्च 10,675 रुपये जबकि खेती करने वाले परिवारों का खर्च 11,710 रुपये प्रतिमाह है. नाबार्ड ने यह सर्वे 30 राज्यों के 710 जिलों में 1,00,000 परिवारों के बीच किया है.
पंजाब और हरियाणा के किसानों की अगुवाई में एमएसपी की लीगल गारंटी को लेकर जो आंदोलन हो रहा है उसमें कुछ लोग उनके मोडिफाइड ट्रैक्टरों पर सवाल उठा रहे हैं. ऐसी धारणा बनाने की कोशिश की जा रही है कि सभी किसान ऐसे ही हैं. जबकि यह सच नहीं है. देश के बहुत कम किसान परिवारों के पास ट्रैक्टर है. नाबार्ड के सर्वे में भी इस बात की तस्दीक की गई है. रिपोर्ट कहती है कि देश के सिर्फ 9.1 फीसदी परिवारों के पास ही ट्रैक्टर है. हालांकि, 61.3 फीसदी परिवारों के पास दुधारू पशु जरूर हैं. प्रति परिवार भूमि जोत का औसत आकार 2021-22 में सिर्फ 0.74 हेक्टेयर ही रह गया है, जो 2016-17 में 1.08 हेक्टेयर था. कहीं न कहीं किसानों की इतनी कम कमाई के पीछे घटती जोत भी एक फैक्टर है.
आय का स्रोत | रुपये/माह |
कुल | 13,661 (100%) |
खेती | 4,476 (33%) |
पशुपालन | 1,677 (12%) |
अन्य उद्यम | 2,010 (15%) |
मजदूरी | 2,238 (16%) |
सरकारी/निजी सेवा | 3,150 (23%) |
अन्य स्रोत | 110 (1%) |
Source: 2021-22/NABARD |
किसान आंदोलन करने वालों की एक बड़ी मांग कर्जमुक्ति है. किसान कर्जदार बनता जा रहा है इसकी एक बड़ी वजह उसकी फसलों का सही दाम न मिलना है. आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2016-17 के बीच भारतीय किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम न मिलने की वजह से लगभग 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. ऐसे में आंदोलनकारियों का दावा है कि किसानों को दाम की गारंटी मिले तो खेती की स्थिति बदल जाएगी.
बहरहाल, नाबार्ड की रिपोर्ट बता रही है कि देश के 55.4 फीसदी कृषि परिवार कर्जदार हैं. हर कृषि परिवार पर औसतन 91,231 रुपये का कर्ज है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 23.4 फीसदी किसान परिवार अब भी बैंकों की दुनिया से अलग दूसरे स्रोतों से लोन ले रहे हैं. खासतौर पर रिश्तेदारों और दोस्तों पैसा लेकर काम चला रहे हैं. साहूकारों से लोन लेने वाले किसान परिवारों की संख्या बहुत कम है.
किसानों की दशा पर आई नाबार्ड की रिपोर्ट बताती है कि उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कुछ भी गलत नहीं बोला है. कहीं न कहीं बीजेपी और कांग्रेस दोनों के नेताओं ने किसानों का भरोसा तोड़ा है. जो वादे किए उसे निभाया नहीं है, जिसकी वजह से किसान परिवारों के आर्थिक हालात इतने खराब हैं.
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