
साल 2020 से लेकर आज 2025 के खत्म होने तक हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े किसान आंदोलन तक एक नाम हमेशा सुनाई देता है. यह नाम है चौधरी चरण सिंह का. अमेरिका के जाने-माने राजनीतिक विज्ञानी और वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमेरिटस पॉल आर ब्रास ने भारतीय राजनीति को सिर्फ दूर से नहीं देखा बल्कि उसे जमीन पर रहकर समझा. ब्रास ने उत्तर प्रदेश में लंबे समय तक रहकर यहां की खेती और राजनीति पर गहरा रिसर्च किया है. ब्रास का नाम उन विद्वानों में शामिल है जिन्होंने भारत की राजनीति को गहराई और ईमानदारी से समझा है. उन्होंने अपनी मशहूर किताब An Indian Political Life में चौधरी चरण सिंह के बारे में भी काफी लिखा है. उन्होंने लिखा है कि सिर्फ एक प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं बल्कि चरण सिंह को उत्तर भारत की किसान राजनीति, मध्यमवर्गीय किसानों और वैकल्पिक विकास मॉडल के सबसे मुखर आवाज के तौर पर भी याद रखना चाहिए. 23 दिसंबर को उनका जन्मदिवस होता है जिसे भारत में 'किसान दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. ऐसे समय में जब किसानों को लेकर कई तरह के मसले सामने आ रहे हों, यह दिन काफी अहम हो जाता है. जानिए ब्रास ने अपनी इस किताब में चरण सिंह की राजनीति के बारे में क्या-क्या लिखा है.
पॉल आर ब्रास के अनुसार, चरण सिंह उन आखिरी नेताओं में थे जिनका राजनीतिक जीवन आजादी से पहले के कांग्रेस आंदोलनों से लेकर 1980 के दशक की राष्ट्रीय राजनीति तक फैला रहा. उनकी राजनीति सत्ता की जोड़-तोड़ तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसमें खेती, गांव और किसान को विकास की धुरी बनाने का एक साफ अपील मौजूद थी. यही कारण है कि चरण सिंह को समझना, ब्रास के विश्लेषण में, केवल एक नेता को जानना नहीं बल्कि स्वतंत्र भारत की राजनीति में कृषि बनाम उद्योग की बहस को समझने जैसा है.वह न केवल उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे, बल्कि 1979 में कुछ समय के लिए देश के प्रधानमंत्री भी बने. हालांकि उनका कार्यकाल छोटा रहा, लेकिन भारतीय राजनीति और खासकर कृषि आधारित नीतियों पर उनकी छाप बेहद गहरी रही.
चरण सिंह की राजनीति की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के हर स्तर पर सक्रिय रहे. जिला राजनीति से लेकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई. उनका जुड़ाव ग्रामीण समाज से था और उनकी पहचान एक ऐसे नेता के रूप में बनी, जो किसानों और खेती को देश की अर्थव्यवस्था का केंद्र मानते थे.उत्तर प्रदेश की राजनीति में उन्होंने कांग्रेस के भीतर रहते हुए भी हमेशा किसान हितों की खुलकर वकालत की. जमींदारी उन्मूलन अधिनियम को उनका सबसे बड़ा योगदान माना जाता है. इस कानून ने उत्तर भारत में सामंती ढांचे को तोड़ने और किसानों को जमीन का मालिक बनाने में अहम भूमिका निभाई. चरण सिंह का मानना था कि जब तक किसान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सकता.
1967 में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने गैर-कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया और बाद में भारतीय क्रांति दल की स्थापना की. यह आधुनिक भारत की पहली सफल किसान आधारित राजनीतिक पार्टी मानी जाती है. उनका स्पष्ट मत था कि देश की विकास नीति उद्योगों के बजाय कृषि केंद्रित होनी चाहिए. बड़े उद्योगों, विशाल बांधों और शहरी उपभोक्तावाद के बजाय उन्होंने खेती, ग्रामीण रोजगार और छोटे उद्योगों को प्राथमिकता देने की बात कही. चरण सिंह को मध्य किसान वर्ग का सबसे बड़ा प्रवक्ता माना जाता है. उनके समर्थकों में जाटों के साथ-साथ अन्य पिछड़ी जातियों और छोटे किसानों की बड़ी संख्या थी. उन्होंने पिछड़ी जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर भी गंभीर चिंता जताई. हालांकि वे कभी आक्रामक जातीय राजनीति के पक्षधर नहीं रहे, लेकिन सरकारी नौकरियों और सेवाओं में पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के समर्थक थे.
कानून व्यवस्था को लेकर भी चरण सिंह की छवि सख्त प्रशासक की रही. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने हड़तालों, भूमि कब्जा आंदोलनों और राजनीतिक अव्यवस्था पर कठोर रुख अपनाया. उनका मानना था कि शासन की स्थिरता और आर्थिक अनुशासन के बिना विकास संभव नहीं है. भ्रष्टाचार और सरकारी खर्चों पर नियंत्रण को वे बेहद जरूरी मानते थे. इमरजेंसी के बाद बनी जनता पार्टी और साल 1977 की ऐतिहासिक जीत में चरण सिंह की भूमिका निर्णायक रही. बाद में प्रधानमंत्री पद को लेकर हुए मतभेदों के कारण जनता सरकार गिर गई और 1979 में वे प्रधानमंत्री बने. हालांकि राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी लगे, लेकिन इस दौरान भी उन्होंने किसान और कृषि आधारित नीतियों से समझौता नहीं किया.
ब्रास के अनुसार साल 1987 में उनके निधन के बाद भी उनका प्रभाव खत्म नहीं हुआ. उत्तर भारत की राजनीति में उनके उत्तराधिकारी और समर्थक आज भी उनकी विरासत का दावा करते हैं. चाहे मंडल राजनीति हो या किसान आंदोलनों की धारा, चरण सिंह की सोच की झलक आज भी दिखाई देती है. कुल मिलाकर, चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति में उस दौर का प्रतिनिधित्व करते हैं, जब नीति, नैतिकता और विचारधारा पर खुली बहस होती थी. उनकी राजनीति की सबसे बड़ी पहचान यही रही कि उन्होंने सत्ता से ज्यादा किसान और गांव को केंद्र में रखा.
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