Stubble Burning: 90 फीसदी कम जली पराली, फिर भी हवा जहरीली! वैज्ञानिकों ने खोली दिल्ली के प्रदूषण की पोल

Stubble Burning: 90 फीसदी कम जली पराली, फिर भी हवा जहरीली! वैज्ञानिकों ने खोली दिल्ली के प्रदूषण की पोल

आज दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार है, जहां हवा में घुले नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे जहरीले तत्व फेफड़ों और दिल के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं. अक्सर पराली जलाने को इसका मुख्य कारण माना जाता था, लेकिन आंकड़ों ने तस्वीर बदल दी है. संसद में पेश रिपोर्ट के अनुसार, 2022 के मुकाबले 2025 में किसानों ने पराली जलाने की घटनाओं में 90% की भारी कमी की है.

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90 फीसदी कम जली पराली, फिर भी हवा जहरीली! वैज्ञानिकों ने खोली दिल्ली के प्रदूषण की पोलदिल्ली में प्रदूषण से बिगड़े हालात

आज दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बन चुकी है, जहां हवा की गुणवत्ता अक्सर 'गंभीर' श्रेणी में पहुंच जाती है. हवा में घुले बारीक कण, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO{2}) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) जैसे जहरीले तत्व हमारे फेफड़ों और दिल के लिए बेहद हानिकारक हैं. यह प्रदूषण न केवल सांस की बीमारियां पैदा कर रहा है, बल्कि बच्चों और बुजुर्गों के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है. वायु प्रदूषण की इस चुनौती को समझना अब सिर्फ वैज्ञानिकों का काम नहीं, बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी है.

किसानों ने तो अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझ ली है, जैसा कि संसद में पर्यावरण मंत्रालय ने बताया कि पंजाब और हरियाणा ने मिलकर 2022 की तुलना में साल 2025 में पराली जलाने की घटनाओं में 90% की कमी दर्ज की है. अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए अब दूसरे सेक्टरों का इस बात को समझना जरूरी है, क्योंकि प्रदूषण में अब उनका योगदान सबसे ज्यादा है. साल 2020 की शुरुआत में जब कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लगा, तो जिंदगी थम सी गई थी. सड़कों से गाड़ियां गायब हो गईं और फैक्ट्रियों के पहिये रुक गए. इसका एक ऐसा सकारात्मक असर हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी—दिल्ली की जहरीली हवा अचानक साफ होने लगी. जिस शहर को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता था, वहां के लोगों ने पहली बार गहरा नीला आसमान देखा और साफ हवा में सांस ली.

वैज्ञानिकों की रिसर्च में दावा

इस चमत्कार को वैज्ञानिक आधार पर समझने के लिए रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय झांसी और वाराणसी बीचयू के विशेषज्ञों ने एक बड़ा शोध किया. डॉ. पवन कुमार, डॉ. एस. एस. सिंह, ऐश्वर्या और डॉ. प्रशांत कुमार श्रीवास्तव जैसे प्रमुख कृषि और पर्यावरण वैज्ञानिकों ने डेनमार्क और स्पेन के अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर 'सेंटिनल-5P' नाम के आधुनिक सैटेलाइट के आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण किया.

वैज्ञानिकों ने पाया कि जब मानवीय दखल कम होता है, तो प्रकृति बहुत तेजी से खुद को ठीक कर लेती है. इन विशेषज्ञों ने यह साबित कर दिया कि प्रदूषण कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि हमारी जीवनशैली का नतीजा है. अगर हम अपनी गतिविधियों और वाहनों के धुएं को नियंत्रित कर लें, तो दिल्ली की हवा को फिर से नया जीवन दे सकते हैं. यह बात सामने आई कि स्वच्छ पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाना नामुमकिन नहीं है.

हवा में प्रदूषण फैलाने वाली सबसे खतरनाक गैसों में से एक है नाइट्रोजन डाइऑक्साइड. यह गैस मुख्य रूप से गाड़ियों के धुएं, पावर प्लांट और कोयला जलाने से पैदा होती है. लॉकडाउन के दौरान जब ट्रैफिक बंद हुआ, तो दिल्ली में इस गैस के स्तर में भारी गिरावट आई. एनओटू हमारे फेफड़ों के लिए बहुत घातक है. यह गैस सांस लेने में तकलीफ और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां पैदा करती है. खास बात यह है कि कोरोना भी फेफड़ों पर असर करता है, ऐसे में हवा का साफ होना उस समय लोगों के लिए एक बड़ी राहत बनकर आया. इस गैस का कम होना इस बात का सबूत है कि हमारी गाड़ियां ही प्रदूषण की सबसे बड़ी जड़ हैं.

कोराना काल में दिल्ली ने चैन की सांस ली

वैज्ञानिकों की रिसर्च बताती है कि अप्रैल 2020 के आसपास दिल्ली में प्रदूषण का स्तर पहले के मुकाबले करीब 25 फीसदी तक गिर गया था. वैज्ञानिकों ने दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों के डेटा की तुलना की और पाया कि जैसे-जैसे लॉकडाउन सख्त हुआ, हवा की गुणवत्ता "अच्छी" श्रेणी में पहुंच गई. दिल्ली के पूर्वी इलाकों में सबसे ज्यादा सुधार देखा गया. सैटेलाइट से मिली तस्वीरों ने साफ कर दिया कि अगर हम गाड़ियों और निर्माण कार्यों को नियंत्रित करें, तो दिल्ली की हवा को फिर से सांस लेने लायक बनाया जा सकता है. यह डेटा हमें भविष्य के लिए एक उम्मीद देता है कि सुधार मुमकिन है.

कोरान काल में जैसे लॉकडाउन खुला और कामकाज शुरू हुआ, प्रदूषण का स्तर फिर से पुराने स्तर पर पहुंच गया. खासकर सर्दियों में दिल्ली की हालत बहुत खराब हो जाती है. इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण है जिसे 'टेंपरेचर इनवर्जन' कहते हैं. सर्दियों में ठंडी हवा भारी होकर जमीन के पास जम जाती है, जिससे धुआं और धूल ऊपर नहीं जा पाते और एक 'गैस चैंबर' बना देते हैं. इसके साथ ही, पराली जलाने से उठने वाला धुआं दिल्ली की हवा को और भी जहरीला बना देता है. यही कारण है कि अक्टूबर से दिसंबर के बीच दिल्ली के लोगों को सांस लेना दूभर हो जाता है.

सैटेलाइट बता देता है हर मोहल्ले का हाल

आज के दौर में प्रदूषण को मापने के लिए वैज्ञानिक सिर्फ जमीन पर लगी मशीनों पर निर्भर नहीं हैं. अब 'गूगल अर्थ इंजन' और सेटेलाइट का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये उपग्रह अंतरिक्ष से ही बता देते हैं कि दिल्ली के किस मोहल्ले में कौन सी गैस ज्यादा है और प्रदूषण कहां से आ रहा है. 2024 के आंकड़ों से पता चलता है कि मॉनसून के बाद नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें तेजी से बढ़ती हैं. इन मशीनों की मदद से सरकार अब उन इलाकों की पहचान कर सकती है जहां सबसे ज्यादा काम करने की जरूरत है, ताकि लोगों को प्रदूषण की मार से बचाया जा सके.

प्रदूषण अब केवल एक तकनीकी चर्चा नहीं, बल्कि हमारे घर की समस्या बन गई है. दिल्ली की हवा में मौजूद बारीक कण और जहरीली गैसें बच्चों और बुजुर्गों के लिए जानलेवा साबित हो रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जो सीधे हमारे दिल और दिमाग पर असर करता है. अगर हम आज भी नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए शुद्ध हवा में सांस लेना महज एक सपना बनकर रह जाएगा. यह समझना जरूरी है कि साफ हवा कोई लग्जरी नहीं, बल्कि हमारा बुनियादी अधिकार और जरूरत है.

गाड़ियों और फैक्ट्रियों पर भी लगाम जरूरी

हवा को साफ रखना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक सामूहिक प्रयास होना चाहिए. हमें अपनी निजी कारों के बजाय मेट्रो और बसों जैसे सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ाना होगा. पुराने वाहनों को सड़कों से हटाना और 'वर्क फ्रॉम होम' जैसी संस्कृति को बढ़ावा देना भी एक बड़ा कदम हो सकता है. किसानों को पराली जलाने के बजाय आधुनिक तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा. जिसको धीरे धीरे काफी सुधार हुआ है. लेकिन गाड़ियों, पावर प्लांट और कोयला जलाने पर अंकुश लगाना जरूरी है.

लॉकडाउन ने हमें सिखा दिया था है कि बदलाव संभव है, बस हमें अपनी आदतों और विकास के तरीकों में संतुलन बनाने की जरूरत है. अगर हम आज छोटे-छोटे कदम उठाएंगे, तभी हम अपनी अगली पीढ़ी को एक नीला आसमान और स्वस्थ जीवन दे पाएंगे.

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