बेशक उत्पादन और इस्तेमाल असम और दार्जीलिंग की चाय का ज्यादा है. लेकिन हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा टी की अपनी एक पहचान है. पहचान भी ऐसी कि देश से ज्यादा विदेशों में कांगड़ा टी की खासी डिमांड है. कांगड़ा के कुछ ही इलाकों में होने वाली इस चाय का एक बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट हो जाता है. खासतौर पर यूरोपियन देशों में इसकी खासी डिमांड रहती है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा टी पर लगातार रिसर्च चलती रहती है. इसी संस्थान ने कांगड़ा की चाय की पत्तियों से चाय के अलावा टी कोल्ड ड्रिंक्स और टी वाइन भी बनाई है.
कांगड़ा टी से ही और भी कई तरह के कॉस्मेटिक प्रोडक्ट भी बनाए गए हैं. कोरोना के खतरनाक दौर में संस्थान ने कांगड़ा टी से हैंड सेनेटाइजर भी बनाया था. संस्था न के अलावा हिमाचल के दूसरे इलाकों में भी ये सेनेटाइजर खूब इस्तेमाल किया गया था.
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आईएचबीटी की साइंटिस्ट डॉ. रंजना शर्मा ने किसान तक को बताया कि यह बात कई रिसर्च पेपरों में दर्ज है और पेपर पब्लिश भी हो चुके हैं कि कांगड़ा टी हेल्थ बेनिफिशियल प्रॉपर्टी से भरपूर है. अगर प्रोपटी की बात करें तो कांगड़ा टी की खूबी यह है कि ये एंटी डायबिटीज, एंटी कैंसर, एंटी माइक्रोबियल, एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी बैक्टीरियल है. यही वजह है कि इतनी सारी महत्वपूर्ण प्रोपटी को देखते हुए कांगड़ा टी से फार्मा और कॉस्मेटिक से जुड़े आइटम भी बनाए गए हैं.
डॉ. रंजना शर्मा ने बताय कि कांगड़ा टी में फाइटो केमीकल के चलते कोरोना के दौरान इसे पीने की सलाह दी गई थी. इसके अलावा भी क्योंकि इसकी और भी मेडिशनल वैल्यू है तो कांगड़ा टी पीने पर हमेशा फायदा ही होता है. अगर आज के वक्त की बात करें तो कांगड़ा टी ग्रीन टी के रूप में बहुत इस्तेमाल की जा रही है. जबकि कुछ वक्त पहले तक कांगड़ा टी ब्लैक टी के रूप में बहुत इस्तेमाल होती थी.
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क्योंकि इसमे फाइटो केमीकल है तो इसलिए यह दूसरी ग्रीन टी के मुकाबले ज्यादा बेहतर और फायदेमंद है. डॉ. रंजना ने यह भी बताया कि हमारे देश में कांगड़ा टी से बने और दूसरे प्रोडक्ट की डिमांड बहुत कम रहती है, इसलिए बाजार में यह आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, जबकि चीन और कई दूसरे देशों में टी से बने दूसरे प्रोडक्ट की खासी डिमांड रहती है.
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