प्राकृतिक खेती में आदर्श बना मंडी का कधार गांव, सब्सिडी का फायदा उठाकर किसान कमा रहे मुनाफा 

प्राकृतिक खेती में आदर्श बना मंडी का कधार गांव, सब्सिडी का फायदा उठाकर किसान कमा रहे मुनाफा 

वर्तमान समय में कधार के किसान प्राकृतिक खेती पद्धतियों का प्रयोग करके आठ हेक्टेयर से ज्‍यादा जमीन पर गेहूं, जौ, मक्का, मटर, आलू, सोयाबीन, राजमा और रागी जैसी पारंपरिक फसलें उगाते हैं. गांव वाले बताते हैं कि यह तरीका काफी लागत प्रभावी है जिसमें खेती मुख्य रूप से गाय के गोबर और गोमूत्र पर निर्भर करती है. हर घर में देशी गाय होने के कारण ये चीजें आसानी से उपलब्ध हैं.

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प्राकृतिक खेती में आदर्श बना मंडी का कधार गांव, सब्सिडी का फायदा उठाकर किसान कमा रहे मुनाफा नैचुरल फार्मिंग में आगे बढ़ता हिमाचल का छोटा सा गांच (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

हिमाचल प्रदेश के जोगिंदरनगर और पधर स‍बडिविजन की सीमा पर एक छोटा सा गांव बसा हुआ है कधार. इस गांव की खासियत है कि यहां पर सिर्फ 14 परिवार रहते हैं. अब यह गांव हिमाचल प्रदेश के मंडी में प्राकृतिक खेती के लिए एक मॉडल के तौर पर उभरा है.गांव के हर घर ने प्राकृतिक खेती के तरीकों को अपनाया है. इसे खेती में बदलाव के एक बड़े उदाहरण के तौर पर समझा जा रहा है. खास बात यह है कि कुछ साल पहले तक गांव में रासायनिक तत्‍वों पर आधारित खेती का चलन था. 

कैसे हुआ गांव में यह बदलाव 

कधार में यह बदलाव तब शुरू हुआ जब गांव की महिलाओं ने प्राकृतिक खेती की बारीकियों को सीखने की पहल की. ​​उनकी सफलता से प्रेरित होकर, पूरे गांव ने धीरे-धीरे केमिकल फ्री खेती को अपना लिया. कधार की निवासी रजनी देवी के हवाले से वेबसाइट द न्‍यूजरडार ने लिखा, 'हमने चार साल पहले प्राकृतिक खेती में ट्रेनिंग ली थी. पहले साल हमने इसे एक प्रयोग के तौर पर आजमाया और नतीजे हमारा उत्‍साह बढ़ाने वाले थे.' रजनी देवी के अनुसार इस सफलता से प्रेरित होकर फिर सभी खेतों में प्राकृतिक तरीके से खेती को आगे बढ़ाया गया. आज, यह गर्व की बात है कि कधार को प्राकृतिक खेती के लिए एक आदर्श गांव के रूप में मान्यता मिली है. 

कौन-कौन सी फसलें उगाते किसान 

वर्तमान समय में कधार के किसान प्राकृतिक खेती पद्धतियों का प्रयोग करके आठ हेक्टेयर से ज्‍यादा जमीन पर गेहूं, जौ, मक्का, मटर, आलू, सोयाबीन, राजमा और रागी जैसी पारंपरिक फसलें उगाते हैं. गांव वाले बताते हैं कि यह तरीका काफी लागत प्रभावी है जिसमें खेती मुख्य रूप से गाय के गोबर और गोमूत्र पर निर्भर करती है. हर घर में देशी गाय होने के कारण ये चीजें आसानी से उपलब्ध हैं. राज्‍य सरकार की तरफ से हाल ही में मक्का और गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में इजाफा किया गया है और इसने उनकी खुशी दोगुनी कर दी है. इस बढ़ोतरी से किसानों के चेहरों पर मुस्कान आ गई है. 

सरकार की तरफ से आर्थिक मदद 

रजनी देवी ने सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा है कि मक्का 40 रुपये प्रति किलोग्राम और गेहूं 60 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर उपलब्ध है. इससे प्राकृतिक खेती अब न केवल टिकाऊ है बल्कि ज्‍यादा फायदेमंद भी है. द्रंग में एटीएमए प्रोजेक्‍ट के ब्लॉक टेक्निकल मैनेजर ललित कुमार ने कहा कि कधार गांव को आधिकारिक तौर पर प्राकृतिक खेती के लिए आदर्श गांव घोषित किया गया है. उन्होंने कहा कि द्रंग विकास खंड में करीब 3,376 किसानों ने अब प्राकृतिक खेती के तरीकों को अपना लिया है. इस टिकाऊ मॉडल को बढ़ावा देने के लिए सरकार जरूरी मदद मुहैया करा रही है. 

अब तक करीब 14 लाख की मदद 

सरकार की तरफ से जो प्रोत्‍साहन दिए जा रहे हैं उनमें देशी गायों की खरीद, गौशालाओं का निर्माण, प्लास्टिक ड्रम खरीदने और गेहूं, मटर, सोयाबीन, काला चना, रागी और फॉक्सटेल बाजरा जैसी फसलों के लिए बीज उपलब्ध कराने के लिए सब्सिडी शामिल है. अधिकारियों के अनुसार, प्लास्टिक ड्रम की खरीद पर 75 प्रतिशत की सब्सिडी मिल रही है. इसमें करीब 1,500 किसानों को पहले ही लगभग 13.35 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जा चुकी है.

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