हाल ही में रिलीज हुई फिल्म जॉली एलएलबी-3 ने एक बार फिर किसानों के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर जोरदार तरीके से उठाया है. फिल्म की कहानी किसानों के हक और उनकी दयनीय स्थिति पर केंद्रित है. कोर्ट रूम में अक्षय कुमार के जरिए जो दलीलें पेश की जाती हैं, वे कई मायनों में कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा द्वारा पिछले कई वर्षों से बताए गए तथ्यों से मेल खाती हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार उन आंकड़ों को गंभीरता से ले रही है?
कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने एक वीडियो क्लिप में 1970 से 2015 के बीच गेहूं के दामों की तुलना की है. 1970 में गेहूं का दाम 76 रुपये प्रति क्विंटल था, जो 45 साल बाद यानी 2015 में बढ़कर केवल 1450 रुपये प्रति क्विंटल हुआ. यह वृद्धि भले ही संख्यात्मक रूप में बड़ी लगती हो, लेकिन अगर इसे समग्र आर्थिक विकास और महंगाई के हिसाब से देखा जाए तो यह बेहद कम है.
यहां सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि इसी अवधि में सरकारी कर्मचारियों, शिक्षकों, और विश्वविद्यालय प्रोफेसरों की सैलरी में कितनी भारी वृद्धि हुई है. सरकारी कर्मचारियों का बेसिक पे और डीए 120 से 145 प्रतिशत तक बढ़ गया है. स्कूल टीचर्स की तनख्वाह 280 से 320 प्रतिशत तक बढ़ी है, जबकि यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स की सैलरी 150 से 170 गुना तक बढ़ चुकी है.
किसानों की आमदनी में इस दौरान महज 19 गुना की वृद्धि हुई है, जो कि बाकी वर्गों की तुलना में बेहद कम है. यह आंकड़ा सरकार की उन नीतियों की पोल खोलता है जो किसानों को विकास के मुख्यधारा से बाहर रखती हैं.
सत्ता में बैठी सरकार भले ही ये दावा करती है की वो देश के अन्नदाताओं के साथ है लेकिन ये आंकड़े साफ दर्शाते हैं कि अब तक की सरकारें कितना उनके साथ हैं और कितना नहीं. सच्चाई तो ये है की आज भी देश के किसान जिन्हें देश का अन्नदाता कहा जाता है, लेकिन उन्हें माना सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक ही जाता है. समय आने पर किसानों के हाथ में जो सरकार लॉलीपॉप पकड़ा देती है वही सरकार चुनाव जीतने के बाद उसी लॉलीपॉप को मिट्टी में गिराने का काम भी करती आई है. यही कारण है की आज देश में ना सिर्फ किसान बल्कि खेती करनी वाली जमीनों का रकबा भी घटता जा रहा है. यही कारण है की कोई भी किसान ये नहीं चाहता की उसका बच्चा कभी भी किसानी करे. अब सवाल यह है: किसानों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जाता है? और अगर यह चलता रहा तो किसान कब तक अपने लिए गलत सरकारें चुनते रहेंगे?
किसानों की आर्थिक स्थिति पर सरकार की उदासीनता और अनदेखी साफ नजर आती है. जब बाकी समाज में रह रहे कामकाजी लोग भारी वृद्धि का फायदा उठा रहे हैं, तो किसानों के लिए मामूली वृद्धि भी एक बड़ा संघर्ष बन गया है. यह साफ दर्शाता है कि सरकार की प्राथमिकताएं कहां हैं.
फिल्म जॉली एलएलबी-3 सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे देश के किसानों के लिए सच को उजागर करने वाली एक चौंकाने वाली हकीकत है.
यह समय है कि सरकार अपने हरकतों पर विचार करे और किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए. किसानों के बिना देश की समृद्धि असंभव है, फिर भी उन्हें वे सम्मान और आर्थिक सुरक्षा नहीं मिल पा रही है जिसके वे हकदार हैं.
फिल्म ने एक बार फिर हमारे सामने किसानों की दयनीय स्थिति रख दी है. अब जिम्मेदारी है सरकार की कि वह सिर्फ दिखावे के लिए नहीं, बल्कि वास्तविकता में किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए सख्त और असरदार कदम उठाए.
जॉली एलएलबी-3 की कहानी न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि किसानों के अधिकारों और उनकी आर्थिक स्थिति की सच्चाई पर सरकार के उदासीन रवैये को भी बेधती है. अगर देश का विकास चाहते हैं तो किसानों की आमदनी में असली वृद्धि और उनके जीवन स्तर में सुधार अनिवार्य है.
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