भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बाढ़ हर साल लाखों किसानों के लिए चुनौती बनकर सामने आती है. घरों और खेतों को डुबो देने वाली बाढ़ को आमतौर पर विनाशकारी माना जाता है, लेकिन एक दिलचस्प सवाल यह भी है कि क्या बाढ़ के बाद मिट्टी वास्तव में उपजाऊ हो जाती है? विशेषज्ञों और कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बाढ़ का असर दो पहलुओं में देखा जाता है, विनाश और पुनर्निर्माण. एक तरफ यह फसलों और खेतों को नुकसान पहुंचाती है, वहीं दूसरी तरफ मिट्टी को प्राकृतिक खाद और नई ऊर्जा भी देती है. वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर किसान बाढ़ के बाद मिट्टी की जांच कर सही फसल और तकनीक अपनाएं, तो बाढ़ का यह संकट कभी-कभी वरदान भी बन सकता है.
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि बाढ़ के साथ बहकर आने वाली नदी की मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व, जैविक पदार्थ और महीन कण होते हैं. जब यह गाद (सिल्ट) खेतों पर जम जाती है तो भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ जाती है. यही कारण है कि गंगा, ब्रह्मपुत्र और नील जैसी नदियों के किनारे की जमीन ऐतिहासिक रूप से सबसे उपजाऊ मानी जाती रही है.
बाढ़ के बाद भले ही मिट्टी में उर्वरता बढ़ सकती है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी जुड़ी रहती हैं. कई बार पानी के लंबे समय तक खड़े रहने से मिट्टी की नमी संतुलन बिगड़ जाता है और फसल लगाने में देर होती है. बाढ़ से खेतों में रेत की मोटी परत जम सकती है, जिससे मिट्टी की उत्पादकता घट जाती है. साथ ही बाढ़ के पानी में मौजूद प्रदूषक और केमिकल भी मिट्टी की सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
प्राचीन मिस्र की सभ्यता नील नदी की बाढ़ पर ही आधारित थी. हर साल नील की बाढ़ खेतों में उपजाऊ गाद लाती और किसानों की खेती चमक उठती. भारत में भी गंगा और कोसी जैसी नदियों के मैदानों में यही परंपरा देखने को मिलती है.
यह भी पढ़ें-
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today