कश्‍मीर बन रहा खेती में आत्‍मनिर्भर, बदल रही है किसानों की दशा, जानें क्‍या-क्‍या कर रहा है SKUAST-K

कश्‍मीर बन रहा खेती में आत्‍मनिर्भर, बदल रही है किसानों की दशा, जानें क्‍या-क्‍या कर रहा है SKUAST-K

कश्मीर हमेशा से ही अपनी उपजाऊ भूमि और अनुकूल जलवायु के लिए जाना गया है. इसके बावजूद यह हमेशा बीज, उर्वरक और उच्च उपज वाली फसल किस्मों के साथ ही साथ कुछ और कृषि उत्पादों के लिए लंबे समय से आयात पर निर्भर रहा है. लेकिन अब इसमें बदलाव हो रहा है. SKUAST-K की नई पहल के तहत स्वदेशी विकल्पों को विकसित करने पर ध्‍यान केंद्रित किया जा रहा है.

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कश्‍मीर बन रहा खेती में आत्‍मनिर्भर, बदल रही है किसानों की दशा, जानें क्‍या-क्‍या कर रहा है SKUAST-Kकश्‍मीर में खेती की दिशा और दशा बदलता SKUAST-K

कश्‍मीर इन दिनों अपने ट्यूलिप गार्डन के लिए दुनिया भर में मशहूर है. जहां श्रीनगर स्थित ट्यूलिप गार्डन नए रिकॉर्ड बना रहा है तो वहीं अब दक्षिण कश्‍मीर में भी एक नया ट्यूलिप गार्डन तैयार हो रहा है. दोनों ही ट्यूलिप गार्डन के पीछे  SKUAST-K के वैज्ञानिकों का बड़ा हाथ है.  SKUAST-K यानी शेर-ए-कश्‍मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्‍चर साइंसेज एंड टेक्‍नोलॉजी और पिछले चार दशकों से ज्‍यादा यह जगह कश्‍मीर की खेती और यहां के किसानों के लिए एक मददगार साथी के तौर पर बनी हुई है. 

किसानों को बनाया जा रहा सशक्‍त 

कश्मीर हमेशा से ही अपनी उपजाऊ भूमि और अनुकूल जलवायु के लिए जाना गया है. इसके बावजूद यह हमेशा बीज, उर्वरक और उच्च उपज वाली फसल किस्मों के साथ ही साथ कुछ और कृषि उत्पादों के लिए लंबे समय से आयात पर निर्भर रहा है. लेकिन अब इसमें बदलाव हो रहा है. SKUAST-K की नई पहल के तहत स्वदेशी विकल्पों को विकसित करने पर ध्‍यान केंद्रित किया जा रहा है जो क्षेत्र के लिए सही और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ हैं. इसका मकसद है स्थानीय किसानों को घरेलू समाधानों से सशक्त बनाकर बाहरी स्रोतों पर निर्भरता को कम करना. 

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एक विस्‍तृत रिसर्च के जरिये SKUAST-K के वैज्ञानिकों ने देशी फसलों की पहचान की है जिन्हें सेलेक्टिव ब्रीडिंग और बायो टेक्‍नोलॉजी की मदद से बेहतर बनाया जा सकता है. इन प्रयासों का उद्देश्य उच्च उपज वाली, कीट-प्रतिरोधी और जलवायु-लचीली फसलें पैदा करना है जो आयातित बीजों की जरूरत को कम करती हैं. 

ऑर्गेनिक खेती के तरीकों को बढ़ावा 

वहीं SKUAST-K सक्रिय तौर पर जैविक खेती के तरीकों को भी बढ़ावा दे रहा है. यूनिवर्सिटी की तरफ से किसानों को टिकाऊ तकनीकों के बारे में ट्रेनिंग दी जा रही है. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है और रासायनिक निर्भरता भी कम होती है. साथ ही साथ उपज की गुणवत्ता में भी इजाफा होता है. इन वजहों से कश्‍मीर में उगाई जाने वाली उपज न सिर्फ राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बल्कि अंतरराष्‍ट्रीय बाजारों में भी प्रतिस्पर्धी बनती है. 

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पानी की कमी के बाद भी खेती 

कश्‍मीर में पानी की कमी किसानों के लिए एक बड़ी चिंता बनी हुई है. ऐसे में SKUAST-K ने पानी के प्रयोग को सीमित करते हुए ड्रिप सिंचाई और रेन वॉटर हार्वेस्टिंग जैसी स्मार्ट सिंचाई टेक्‍नोलॉजी की शुरुआत भी की है. इन तकनीकों की मदद से न केवल उत्पादकता बढ़ाती है बल्कि लंबे समय तक पर्यावरण में स्थिरता भी बनी रहती है. 

यूनिवर्सिटी की एक पहल में इंटीग्रेटेड पेस्‍ट मैनेजमेंट (IPM)रणनीतियां  शामिल हैं. इन रणनीतियों के तहत कीटों को कुशलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक शिकारियों, जैविक कीटनाशकों और फसल चक्र विधियों का प्रयोग होता है. इससे किसान आयातित रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भर नहीं रहते हैं और फसलें भी स्वस्थ रहती हैं. इसके अलावा यूनिवर्सिटी की तरफ से किसानों को बेस्‍ट प्रैक्टिस के बारे में बताया जा रहा है. 

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खेती में आत्‍मनिर्भर हो रहा कश्‍मीर 

कई तरह के ट्रेनिंग प्रोग्राम्‍स, वर्कशॉप्‍स और फील्‍ड डेमो हो रहे हैं. इसके अलावा डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्‍च किए गए हैं जिसकी मदद से किसान रीयल टाइम गाइडेंस, मौसम के पूर्वानुमान और बाजार के रुझानों को जान सकते हैं. कई स्थानीय किसानों ने इन प्रथाओं को सफलतापूर्वक अपनाया है जिससे उपज में इजाफा हुआ है और मिट्टी की सेहत सुधरी है. साथ ही आयातित बीजों और उर्वरकों पर निर्भरता धीरे-धीरे कम हो रही है और कश्मीर खेती में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है. 

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