Trump Tariff War: कश्मीर में सेब, अखरोट के किसानों को क्‍यों सता रही अपने भविष्‍य की चिंता?

Trump Tariff War: कश्मीर में सेब, अखरोट के किसानों को क्‍यों सता रही अपने भविष्‍य की चिंता?

नए टैरिफ ने यह आशंका जताई है कि भारत पर अमेरिका के साथ अनुकूल व्यापार समझौता करने के लिए सेब और अखरोट जैसी वस्तुओं पर इंपोर्ट ड्यूटी कम करने का दबाव हो सकता है.अगर ऐसा होता है तो यह कदम कश्मीर के बागवानी उद्योग को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है. इंपोर्ट ड्यूटी कम होने से अमेरिकी सेब और अखरोट भारत में बहुत सस्ते हो जाएंगे. इससे स्थानीय उत्पादकों को नुकसान पहुंचने का खतरा है. 

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Trump Tariff War: कश्मीर में सेब, अखरोट के किसानों को क्‍यों सता रही अपने भविष्‍य की चिंता? ट्रंप के टैरिफ से कश्‍मीर के किसान डरे

जब से अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने भारत समेत दुनिया के कुछ देशों पर टैरिफ लगाया है तब से ही कश्मीर में सेब और अखरोट उगाने वाले किसानों की चिंताएं दोगुनी हो गई हैं. ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी उत्पादों पर भारत की तरफ से हाई टैरिफ का हवाला देते हुए उस पर अतिरिक्त 26 फीसदी तक का टैरिफ लगा दिया है. अब इन किसानों को अपना भविष्‍य अंधेरे में नजर आने लगा है. माना जा रहा है कि भारत की तरफ से अब अमेरिकी उत्‍पादों पर टैरिफ कम किया जा सकता है. 

कश्‍मीर के बागवानी उद्योग पर खतरा

डेक्‍कन हेराल्‍ड की एक रिपोर्ट के अनुसार नए टैरिफ ने यह आशंका जताई है कि भारत पर अमेरिका के साथ अनुकूल व्यापार समझौता करने के लिए सेब और अखरोट जैसी वस्तुओं पर इंपोर्ट ड्यूटी कम करने का दबाव हो सकता है.अगर ऐसा होता है तो यह कदम कश्मीर के बागवानी उद्योग को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है. इंपोर्ट ड्यूटी कम होने से अमेरिकी सेब और अखरोट भारत में बहुत सस्ते हो जाएंगे. इससे स्थानीय उत्पादकों को नुकसान पहुंचने का खतरा है.

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अयातित सेब से होगा सब चौपट 

कश्मीर घाटी फल उत्पादक सह डीलर संघ (KVFGU) के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर का कहना है कि अमेरिका से आने वाले सस्ते सेबों की आमद भारतीय बाजारों को तबाह कर देगी. साथ ही ऐसे छोटे उत्पादकों को नुकसान पहुंचाएगी जिनके पास कोई वैकल्पिक आय नहीं है. बशीर और बाकी स्थानीय उत्पादकों को इस बात का डर सता रहा है कि आयातित सेब और अखरोट की खेप से उनकी उपज की कीमत कम हो जाएगी. इससे कई ऐसे परिवार जो इनकी फसल पर ही निर्भर हैं वो व्यवसाय से ही बाहर हो जाएंगे. 

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पीएम मोदी से की भावुक अपील 

वहीं ऐसे छोटे पैमाने के किसान जो कश्मीर की कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, वो कीमतों में उतार-चढ़ाव और बाजार की विकृतियों के लिए खासतौर पर संवेदनशील हैं. आजीविका के बाकी  विश्वसनीय साधन न होने की वजह से कई किसान अखरोट और सेब की खेती को न सिर्फ आय के स्रोत के तौर पर देखते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग भी मानते हैं. पिछले महीने, बशीर के संगठन ने चिट्ठी भेजकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक भावुक अपील की है. बशीर का संगठन श्रीनगर, सोपोर और बारामुल्ला जैसे प्रमुख उत्पादन केंद्रों सहित 13 क्षेत्रों के उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करता है.

टूट जाएगी कश्‍मीर की अर्थव्‍यवस्‍था 

इस चिट्ठी में कश्मीर के बागवानी क्षेत्र की अनिश्चित स्थिति पर जोर दिया गया. यह भारत के अखरोट उत्पादन में 92 फीसदी और सेब के एक बड़े उत्‍पादन में अपना योगदान देता है. बशीर ने लिखा है, 'हमने प्राकृतिक आपदाओं और राजनीतिक अशांति का सामना लचीलेपन के साथ किया है. लेकिन व्यापार नीति में यह बदलाव पहले से ही संघर्षरत उद्योग के लिए खतरनाक झटका हो सकता है.'

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बशीर के अनुसार केवीएफजीयू की मांगें साफ और बहुत जरूरी हैं. भारत को टैरिफ कम करने के अमेरिकी दबाव का विरोध करना चाहिए और इसके बजाय घरेलू उत्पादकों की रक्षा के लिए अम‍ेरिकी सेब पर टैरिफ को 100 फीसदी तक बढ़ाना चाहिए. बशीर ने चेतावनी दी है कि ऐसे उपायों के बिना, 'कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ अपूरणीय रूप से टूट सकती है.' 

कश्मीर के सेब के बाग हजारों एकड़ में फैले हैं और हजारों मजदूरों को सहारा देते हैं. दक्षिणी शोपियां जिले के किसान वाहिद अहमद ने कहा, 'कश्मीरियों की कई पीढ़ियां सेब और अखरोट की खेती करती आ रही हैं. यह सिर्फ पैसे का सवाल नहीं है बल्कि हमारे अस्तित्व का भी सवाल है. अगर सरकार हमारी सुरक्षा के लिए तुरंत कार्रवाई नहीं करती है, तो हमें अपने भविष्य को लेकर चिंता है.' 


 
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