हींग तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की एक भी बूंद भारत में नहीं होती है. बावजूद इसके दुनिया के ज्यादातर देशों में भारत से हींग एक्सपोर्ट होती है. देश में भी यूपी का एक इकलौता शहर है जहां हींग प्रोसेस की जाती है. इसी शहर से दुनियाभर में हींग भेजी जाती है. हींग कारोबारियों की मानें तो करीब एक हजार करोड़ रुपये का कच्चा माल हर साल प्रोसेस किया जाता है. धूप न निकलने के चलते सर्दियों में हींग का उत्पादन कम हो जाता है.
यूपी के हाथरस जिले का नाम आपने सुना होगा. ये जिला देश ही नहीं दुनियाभर में रबड़ी के लिए खास पहचान रखता है, लेकिन हींग का भी ये हब है, जिसके जरिए ये जिला हर घर के किचेन में भी दखल रखता है. हाथरस में सामान्य तौर पर दो हजार रुपये किलो से लेकर 10-12 हजार रुपये किलो तक के रेट वाली हींग बनती है. इससे और ज्यादा महंगी और ऊंची क्वालिटी की हींग ऑर्डर पर तैयार की जाती है. हाथरस में छोटी-बड़ी मिलाकर हींग प्रोसेस करने की करीब 80 यूनिट काम कर रही है.
हाथरस के हींग कारोबारी विकास बताते हैं कि विदेशों से मटमैले रंग का ओलियो-गम राल (दूध) आता है. यह बहुत ही ज्यादा गाढ़ा होता है. इसी दूध को मैदा और तीन-चार दूसरी चीजों के साथ प्रोसेस किया जाता है. सभी आइटम को मिलाकर आटे की तरह से गूंथ लिया जाता है. कारीगर दोनों हाथों से इसे तब तक गूंथते रहते हैं जब तक की सभी आइटम आपस में मिक्स नहीं हो जाते हैं और दूध का गीलापन खत्म नहीं हो जाता. जब मिक्स करने का यह प्रोसेस पूरा हो जाता है तो फिर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है.
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हींग प्रोसेस के पुराने कारीगर रहे होरीलाल ने किसान तक को बताया कि साल 1980-85 तक अफगानिस्तान के पठान हींग के लिए दूध लेकर आते थे. पहले एक खास तरह के बर्तन में यह दूध आता था. लेकिन कुछ नियमों के चलते अब यह दूध एल्यूमिनियम से बने खास बर्तन में आता है. कुछ लोग तो प्लास्टिक के ड्रम में भी इसे ला रहे हैं.
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लेकिन जैसे-जैसे हींग के कच्चे माल का विस्ता्र हुआ तो अब अफगानिस्तान के अलावा ईरान, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से भी दूध आ रहा है. दिल्ली की खारी बावली मार्केट में भी कच्चे माल की खरीदारी होने लगी है. यहां हाथरस के कई कारोबारियों ने अपनी गद्दी बना ली हैं.
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