भारत का कृषि क्षेत्र लंबे समय से इसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है, लेकिन वैल्यू एडिशन और प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण इसकी वास्तविक क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. परंपरागत रूप से, किसान सिर्फ प्राथमिक उत्पादन तक सीमित रहे हैं, जिससे वे कीमत में उतार-चढ़ाव, बिचौलियों और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को लेकर संवेदनशील बने रहते हैं. हालांकि, बजट 2025 कृषि-आधारित मैन्यूफेक्चिरिंग इकोनॉमी के लिए एक मजबूत नींव रखता है, क्योंकि भविष्य सिर्फ खेती में नहीं, बल्कि फूड प्रोसेसिंग, कृषि-औद्योगिक क्लस्टर और सहकारी आधारित विनिर्माण में के बारे में है.
कच्चे उत्पादन से वैल्यू एडिशन बेस्ड इकोनॉमी की ओर बदलाव से न केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होंगे, विस्थापन (पलायन) कम होगा और स्व-निर्भर ग्रामीण समुदायों को बढ़ावा मिलेगा. दालों, तिलहन, जैविक खेती और फार्म-टू-फैक्ट्री लिंक को प्राथमिकता देकर भारत हाई वैल्यू कृषि उत्पादों और ग्रामीण औद्योगिकीकरण में वैश्विक नेतृत्व करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
सरकार का दाल मिशन पोषण सुरक्षा और दाल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक और उपभोक्ता है, फिर भी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर रहता है. इस समस्या को दूर करने के लिए, बजट 2025 एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) में वृद्धि, सहकारी समितियों के माध्यम से खरीद बढ़ाने और दाल प्रसंस्करण उद्योगों को प्रोत्साहित करने को प्राथमिकता देता है.
एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) आधारित आपूर्ति श्रृंखलाओं, डी-सेंट्रलाइज्ड दाल प्रोसेसिंग यूनिट्स और अनुसंधान-आधारित उपज सुधारों को बढ़ावा देकर सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि दालें किसानों के लिए एक लाभदायक फसल बने. यह मिशन भारत की आयात निर्भरता को कम करने के साथ-साथ ग्रामीण प्रसंस्करण इकाइयों, पैकेजिंग उद्योगों और निर्यात लॉजिस्टिक्स में रोजगार भी पैदा करेगा, जिससे दालें आर्थिक विकास की दिशा में एक प्रमुख भूमिका निभा सकें.
भारत के कृषि-समृद्ध राज्य- बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर, जहां विशिष्ट कृषि उत्पादों की भरमार है, वे प्रसंस्करण और बाजार संपर्क की कमी के कारण पिछड़ रहे हैं. इस समस्या को दूर करने के लिए, सरकार फार्म-टू-फैक्ट्री मॉडल में निवेश कर रही है, जिसमें छोटे किसानों को औपचारिक आपूर्ति श्रृंखलाओं से जोड़ना, कोल्ड स्टोरेज और लॉजिस्टिक्स हब विकसित करना, और सहकारी समितियों के नेतृत्व में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित करना शामिल है.
इसके अलावा, क्षेत्र-विशिष्ट उत्पादों जैसे कि बिहार के मखाना, मक्का और लीची, हिमाचल के सेब और अखरोट, और पूर्वोत्तर के जैविक मसाले और औषधीय पौधों की ब्रांडिंग और वैश्विक विपणन को बढ़ावा दिया जाएगा. कच्चे निर्यात से उच्च-मूल्य कृषि-आधारित विनिर्माण की ओर बदलाव से भारत की कृषि जीडीपी में उल्लेखनीय वृद्धि होगी, ग्रामीण मजदूरी बढ़ेगी, और खाद्य प्रसंस्करण, पैकेजिंग और वितरण में नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे.
बजट 2025 में सहकारी आंदोलन को और अधिक मजबूत बनाने के लिए पीएसीएस-टू-एपेक्स मॉडल को अपनाया गया है. प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (PACS) अब बहु-सेवा कृषि व्यवसाय केंद्रों के रूप में कार्य करेंगी, जो राज्य और राष्ट्रीय सहकारी संघों से जुड़ी होंगी. एआई और ब्लॉकचेन को सहकारी लेनदेन में एकीकृत करके, यह बजट उचित मूल्य निर्धारण, पारदर्शिता और वित्तीय समावेशन सुनिश्चित कर रहा है, जिससे ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा.
कृषि पर्यटन, एआई-संचालित कृषि परामर्श, ब्लॉकचेन-समर्थित आपूर्ति श्रृंखला, और ग्रामीण फिनटेक हब अब ग्रामीण रोजगार परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए तैयार हैं. एआई, आईओटी और ब्लॉकचेन के एकीकरण से भारतीय कृषि में उत्पादकता, पारदर्शिता और वित्तीय सुरक्षा में क्रांतिकारी बदलाव आएगा. एआई-संचालित लॉजिस्टिक्स योजना यह सुनिश्चित करेगी कि नाशवान वस्तुएं समय पर बाजार तक पहुंचें, जिससे किसानों की आय बढ़े.
"एक भारत, श्रेष्ठ भारत" की परिकल्पना को साकार करने के लिए, यह बजट ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को राष्ट्रीय और वैश्विक बाजारों से जोड़ने का कार्य कर रहा है.
जैसा कि वेदों में कहा गया है:
"कृण्वंतो विश्वमार्यम्" – "आइए, हम इस विश्व को श्रेष्ठ बनाएं."
सही नीतियों, तकनीकी नवाचारों और समावेशी विकास के साथ, भारत एक ग्रामीण क्रांति के कगार पर है, जो आने वाली सदी के लिए इसकी आर्थिक दिशा को परिभाषित करेगी. कृषि-आधारित विनिर्माण अर्थव्यवस्था केवल एक रणनीति नहीं है, यह भारत को समृद्ध, सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने का एक दृष्टिकोण है.
(लेखक वर्ल्ड कोऑपरेशन इकोनॉमिक फोरम के कार्यकारी अध्यक्ष हैं)
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