आपदा में अवसर: पंजाब में रेत से पैसे कमा रहे किसान, एक ट्रॉली की कीमत 1500 रुपये

आपदा में अवसर: पंजाब में रेत से पैसे कमा रहे किसान, एक ट्रॉली की कीमत 1500 रुपये

फाजिल्का के बाढ़ पीड़ित किसान अब अपने खेतों में जमा रेत से कमा रहे हैं पैसा. ‘जिसदा खेत, उसदी रेत’ नीति बनी उम्मीद की किरण. जानें कैसे संकट बना आजीविका का साधन.

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आपदा में अवसर: पंजाब में रेत से पैसे कमा रहे किसान, एक ट्रॉली की कीमत 1500 रुपयेकिसानों ने आपदा में ढूंढा अवसर

पंजाब के फाजिल्का जिले के किसानों ने हाल ही में आई बाढ़ के बाद एक नई राह खोज ली है. पंजाब सरकार की नीति ‘जिसदा खेत, उसदी रेत’ ने इन किसानों को एक नई उम्मीद दी है. जहां पहले केवल नुकसान और बर्बादी दिख रही थी, अब वहीं रेत से कमाई का रास्ता खुल गया है.

बाढ़ के बाद खेतों में 3-5 फीट तक रेत जमा

सतलुज नदी में आई बाढ़ से फाजिल्का जिले के कई गांवों में सैकड़ों एकड़ खेत रेत से भर गए. इन खेतों में अब गेहूं या धान की खेती करना फिलहाल संभव नहीं है. लेकिन सरकार की नई नीति के तहत, किसान अब इस रेत को निकालकर बेच रहे हैं.

रेत बेचकर किसान कमा रहे हैं अच्छा मुनाफा

डोना नंका गांव में देखा गया कि किसान अब ट्रैक्टर-ट्रेलरों के जरिए रेत को खेतों से निकाल रहे हैं. एक ट्रेलर (लगभग 100 क्विंटल) रेत के लिए किसान ₹500 तक कमा रहे हैं. इससे उन्हें कुछ राहत मिली है और परिवार का गुजारा चलाने में मदद मिल रही है.

मशीनों से हो रहा काम

कुछ किसानों ने अपनी रेत से भरी जमीन प्राइवेट ठेकेदारों को किराए पर दे दी है. ये ठेकेदार भारी मशीनों जैसे पोकलेन आदि से रेत निकाल रहे हैं. मशीन से निकाली गई रेत का ट्रेलर करीब ₹1,500 में खेत से ले जाया जा रहा है.

“अगर सरकार करती तो हमें कुछ नहीं मिलता” – सतनाम सिंह

45 वर्षीय सतनाम सिंह ने कहा, “सरकार की ‘जिसदा खेत, उसदी रेत’ नीति हमारे लिए जीवन रेखा बनी है. इससे हमें कम से कम कुछ आमदनी हो रही है. अगर यह काम किसी सरकारी विभाग को दिया जाता, तो शायद हमें एक रुपया भी नहीं मिलता.”

मशीनों से रोजगार पर असर

हालांकि, सतनाम सिंह ने यह चिंता भी जताई कि मशीनों से काम होने से मजदूरों को रोजगार नहीं मिल रहा. उनका मानना है कि यदि रेत निकालने का काम हाथ से होता, तो गांव के कई लोगों को रोज़गार मिल सकता था.

कमाई कम, मुनाफा डीलरों का ज़्यादा

65 वर्षीय जरनैल सिंह ने बताया कि उनके खेतों में 3 फीट तक रेत है और अब वहां खुदाई का काम तीसरे दिन में है. उन्हें ₹500 प्रति ट्रेलर मिल रहा है, जबकि डीलर वही रेत बाजार में ₹5,000 तक बेच रहे हैं. यानी असली मुनाफा डीलरों को हो रहा है.

गांव की स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है

सरपंच सरोज रानी के पति अमरजीत सिंह ने बताया कि गांव की लगभग 250 एकड़ जमीन रेत से ढकी है और 100 एकड़ अब भी पानी में है. हालांकि धीरे-धीरे हालात बेहतर हो रहे हैं. विधायक नरिंदर पाल सिंह सावना ने भी किसानों की मदद के लिए काफी प्रयास किए हैं.

अभी भी कई चुनौतियां बाकी हैं

रेत निकालने में ट्रेलरों की कमी एक बड़ी समस्या बनी हुई है. प्राइवेट कंपनियों के अनुसार मशीनें अधिकतर समय खाली पड़ी रहती हैं क्योंकि ट्रेलर कम हैं. साथ ही, बाढ़ से टूटे रास्तों और पुलों ने आवाजाही को भी मुश्किल बना दिया है.

किसानों की उम्मीद कायम

जरनैल सिंह कहते हैं, “हम अपने घर वापस आ गए हैं. मेहनत से फिर सब कुछ दोबारा बनाएंगे. कुछ समाजसेवी लोग अब भी आकर हमारी मदद कर रहे हैं.” रेत से मिली आमदनी से भले ही खेती दोबारा शुरू न हो पाए, लेकिन यह एक नई शुरुआत जरूर है.

फाजिल्का के किसान इस संकट को अवसर में बदलने का बेहतरीन उदाहरण हैं. सरकार की ‘जिसदा खेत, उसदी रेत’ नीति ने जहां एक तरफ राहत दी है, वहीं इससे यह भी दिखता है कि अगर नीतियां जमीनी स्तर पर लोगों को लाभ दें, तो कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है.

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