भारतीय बासमती चावल के निर्यात पर विदेशी बाजारों में लगातार उठ रही गुणवत्ता संबंधी चिंताओं के बीच अब सरकार और उद्योग मिलकर इसे सुधारने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) तथा ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (AIREA) ने दो अत्याधुनिक कीटनाशक परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित करने का फैसला किया है. एक हरियाणा के करनाल में और दूसरी पंजाब के अमृतसर में. दोनों ही शहर बासमती उत्पादन के प्रमुख केंद्र हैं और यहां से गुणवत्ता जांच, किसानों को प्रशिक्षण तथा निर्यात सुविधा जैसे कार्य संचालित होंगे.
‘दि ट्रिब्यून’ की रिपोर्ट के मुताबिक, एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने बताया कि ये लैब्स ‘बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फंड’ (BEDF) के तहत स्थापित की जा रही हैं, ताकि बासमती चावल में कीटनाशक अवशेषों की जांच और समग्र गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में बासमती बीज सुधार और उत्पादन के लिए एक बीज स्टेशन भी विकसित किया जा रहा है.
अभिषेक देव ने जानकारी दी कि भारत जनवरी 26 से 30 तक दुबई में होने वाले गल्फ फूड फेस्टिवल में ‘कंट्री पार्टनर’ के रूप में भाग लेगा. इस दौरान एपीडा भारतीय व्यंजनों का ‘मेगा इवेंट’ आयोजित करेगा, जिसमें प्रीमियम बासमती से बने पकवानों को प्रदर्शित किया जाएगा. हमारा उद्देश्य है कि दुनिया के अधिक देशों तक भारतीय बासमती की खुशबू और गुणवत्ता पहुंचे.
उन्होंने किसानों और निर्यातकों से अपील की कि वे जैविक खेती की ओर बढ़ें, ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की विश्वसनीयता और मजबूत हो. इस मौके पर एपीडा ने एआईआरईए को ‘बासमती गैलरी और एक्सपोर्ट प्रमोशन सेंटर’ की अनुमति पत्र भी सौंपा. एआईआरईए अध्यक्ष सतीश गोयल ने बताया कि पिछले वर्ष भारत ने अब तक का सर्वाधिक बासमती 60.2 लाख टन निर्यात किया, जिसकी कीमत करीब 50,000 करोड़ रुपये रही.
इस वर्ष अप्रैल से अगस्त के बीच 27.3 लाख टन निर्यात हुआ, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में करीब चार लाख टन अधिक है. वहीं, हरियाणा राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील जैन ने राज्य में 3.5% मंडी शुल्क को घटाकर 1.5% करने की मांग की, जबकि पूर्व अध्यक्ष विजय सेठिया ने कीटनाशक अवशेषों के नियंत्रण और जैविक उत्पादन के विस्तार पर जोर दिया.
भारतीय बासमती चावल की साख को बनाए रखने और निर्यात बढ़ाने के लिए यह पहल बेहद अहम मानी जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती की मांग तो लगातार बढ़ रही है, लेकिन कई बार गुणवत्ता मानकों पर खरे न उतरने के कारण खेपें वापस लौटाई जा रही हैं. नई प्रयोगशालाओं के शुरू होने से न केवल परीक्षण प्रक्रिया तेज और पारदर्शी होगी, बल्कि किसानों को समय पर सलाह और सुधार के उपाय भी मिल सकेंगे. इससे खेत स्तर पर कीटनाशक के अति प्रयोग पर रोक लगेगी और भारत की पहचान ‘क्वालिटी बासमती’ के रूप में और मजबूत होगी.
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