एमएसपी की क्यों पड़ी थी जरूरत, क‍िसने की इसकी शुरुआत, जान‍िए इसके बारे में सबकुछ 

एमएसपी की क्यों पड़ी थी जरूरत, क‍िसने की इसकी शुरुआत, जान‍िए इसके बारे में सबकुछ 

Farmers Protest: किसानों को उनकी मेहनत और लागत के हिसाब से फसलों का उचित दाम न मिलने की समस्या आज की नहीं है. यह मुद्दा काफी पुराना है. क‍िसानों को नुकसान से बचाने के ल‍िए साल 1966-67 में पहली बार गेहूं और का धान न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया गया.  

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एमएसपी की क्यों पड़ी थी जरूरत, क‍िसने की इसकी शुरुआत, जान‍िए इसके बारे में सबकुछ कब शुरू हुई एमएसपी ?

सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर हरियाणा के कुरुक्षेत्र में सात द‍िन (6 से 13 जून) तक चला किसान आंदोलन देश भर में चर्चा में है. इस आंदोलन में अब किसान एमएसपी की लीगल गारंटी की बात करने लगे हैं. क्योंकि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से अधिक वक्त तक दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर चले आंदोलन के दौरान भी एमएसपी की लीगल गारंटी का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया था. इसी मुद्दे पर लिखित आश्वासन के साथ वो किसान आंदोलन खत्म हुआ था. जिसके बाद सरकार ने एमएसपी कमेटी बनाई है, जिसकी बैठक लगातार चल रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जो एमएसपी सरकार के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है, उसकी शुरुआत कैसे हुई थी और इसे किसने शुरू क‍िया था. 

दरअसल, किसानों को उनकी मेहनत और लागत के हिसाब से फसलों का उचित दाम न मिलने की समस्या आज की नहीं है. यह मुद्दा काफी पुराना है. आजादी के बाद ही ऐसा चल रहा है. जब देश आजाद हुआ तो देखने में आया कि किसानों को उनकी फसलों की अच्छी कीमत नहीं मिल पा रही है. जब अनाज कम पैदा होता तब कीमत बढ़ जाती थी और जब अधिक होता तो दाम कम हो जाता था. यह बात उस वक्त की है जब लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे. 

लाल बहादुर शास्त्री ने क्या क‍िया? 

क‍िसानों इस समस्या के समाधान के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पहल की. इसील‍िए वो क‍िसानों के सबसे ह‍ितैषी प्रधानमंत्री के तौर पर जाने जाते हैं. शास्त्री ने 1964 में अपने सचिव एलके झा के नेतृत्व में खाद्य और कृषि मंत्रालय की खाद्य-अनाज मूल्य कमेटी का गठन करवाया. कृषि क्षेत्र के जानकारों का कहना है क‍ि शास्त्री का मानना था कि किसानों को उनकी उपज के बदले इतना मूल्य मिलना ही चाहिए कि उन्हें नुकसान न हो. इस कमेटी ने सरकार को अपनी र‍िपोर्ट 24 दिसंबर 1964 को सौंप दी.

ज‍िस द‍िन र‍िपोर्ट म‍िली उसी द‍िन दे दी मंजूरी 

शास्त्री ने बिना क‍िसी देर किए उसी दिन इस पर मुहर लगा दी. हालांकि तब कितनी फसलों को इसके दायरे में लाया जाएगा, यह तय नहीं हो सका था. लेक‍िन साल 1966-67 में पहली बार गेहूं और का धान न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया गया. बताया गया है क‍ि सबसे पहले एमएसपी पर गेहूं की खरीद की गई. कीमत तय करने के लिए केंद्र सरकार ने कृषि मूल्य आयोग का गठन किया. ज‍िसका नाम बदलकर 1985 में कृषि लागत और मूल्य आयोग कर दिया गया. तो ज‍िस एमएसपी के ल‍िए आज भी लड़ाई हो रही है उसकी शुरुआत लाल बहादुर शास्त्री ने करवाई थी. 

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क‍िसानों की तरक्की में एमएसपी का योगदान 

क‍िसानों की तरक्की में इसका काफी योगदान माना जाता है. क्योंकि अगर कभी फसलों का दाम बाजार के हिसाब से गिर भी जाता है तो भी सरकार एमएसपी पर ही किसानों से फसल खरीदती है, ताकि किसानों को नुकसान न हो. हालांक‍ि, आज भी कुछ सरकारें क‍िसानों को इसका लाभ देने में कतरा रही हैं. हर‍ियाणा में सरकार ने सूरजमुखी को एमएसपी पर खरीदने से मना कर द‍िया, ज‍िसके ख‍िलाफ कुरुक्षेत्र के क‍िसानों ने एक सप्ताह में दो बार जीटी रोड जाम करके आंदोलन क‍िया. 

केंद्र ने गठ‍ित की है एमएसपी कमेटी 

केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में बदलाव और किसानों की आय बढ़ाने के लिए जुलाई 2022 में एमएसपी, क्रॉप डायवर्सिफिकेशन और नेचुरल फार्मिंग के लिए कमेटी गठित कर दी थी. इसमें कृषि और सहकारिता क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हैं. यह कमेटी एमएसपी को और प्रभावी व पारदर्शी बनाने का काम करेगी. ताकि किसानों की इनकम में इजाफा हो. इसकी कई बैठकें हो चुकी हैं लेक‍िन अभी इसके सदस्यों में खासतौर पर एमएसपी को लेकर काफी मतभेद हैं. देखना यह है क‍ि कमेटी सरकार को अपनी र‍िपोर्ट कब सौंपेगी और उससे क‍िसानों को क्या म‍िलेगा.

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