
भारत में इस बार मेवे की इंडस्ट्री की रफ्तार में कोई ज्यादा बदलाव होने का अंदेशा नहीं है. नट्स एंड ड्राई फ्रूट्स काउंसिल (इंडिया) ने अंदाजा लगाया है कि अगले फाइनेंशियल ईयर में इंडस्ट्री की ग्रोथ 10-15 परसेंट होगी. काउंसिल की मानें तो यह आंकड़ा पिछले कुछ सालों जैसा ही है. साथ ही उसने घरेलू प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए सरकार से दखल देने की मांग की है क्योंकि करीब 80 फीसदी तक निर्भरता आयात पर है और ऐसे में देश में इनका उत्पादन बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है.
सोमवार को नई दिल्ली में मीडिया को संबोधित करते हुए, NDFC के प्रेसिडेंट गुंजन विजय जैन ने कहा कि अखरोट, पिस्ता, काजू, किशमिश, बादाम और खजूर जैसे छह मुख्य ड्राई फ्रूट्स की सालाना 14.3 लाख टन की डिमांड में से, घरेलू प्रोडक्शन सिर्फ 3.8 लाख टन है, जो लगभग 27 परसेंट है. कई ड्राई फ्रूट्स ऐसे हैं जो 100 प्रतिशत यानी पूरी तरह से आयात किए जाते हैं. देश में उनका कोई उत्पादन नहीं होता या बहुत कम मात्रा में उगाया जाता है. उन्होंने कहा कि हर साल आयात बिल बढ़ रहा है. उन्होंने इसके पीछे दो वजहों को गिनाया जिनमें बढ़ती मांग और कमजोर रुपया शामिल हैं.
जैन ने कहा कि रॉ मटेरियल की सोर्सिंग जगहों को बड़ा किया जाना चाहिए ताकि प्रतिस्पर्धा बढ़ सके. ऐसा करने से कीमतों में गिरावट हो सकती है और साथ ही भारत में इनकी प्रोसेसिंग से रोजगार के नए मौके भी पैदा हो सकेंगे. NDFC, मेवा इंडिया का अपना तीसरा एडिशन नई दिल्ली में आयोजित करेगा. हर साल होने वाले इस आयोजन में नट्स और ड्राई फ्रूट्स सेक्टर के बारे में कई अहम जानकारियां लोगों को दी जाती हैं. इस बार होने वाले सेमिनार में 'अवेयरनेस' पर एक नई थीम जोड़ी गई है.
NDFC का मानना है कि नट्स और ड्राई फ्रूट्स पर जीएसटी में 12 प्रतिशत से 5 परसेंट की कमी का फायदा मिलेगा. NDFC का मानना है कि इस कदम से खपत में काफी बढ़ोतरी होने और भारतीय घरों के लिए इस कैटेगरी की रोजमर्रा की अहमियत मजबूत होने की उम्मीद है. NDFC ने कर्नाटक के मूदाबिद्री में काजू प्लांटेशन ड्राइव और उत्तराखंड के चकराता में अखरोट प्लांटेशन ड्राइव जैसी पहल की हैं. साथ ही अपील की गई है कि सरकार को प्लांटिंग मटीरियल के आयात में ढील देकर और पेड़ों के फल देने तक यानी शुरुआती 4-5 सालों तक किसानों की मदद करने के लिए किसी तरह की स्कीम लाकर दखल देना चाहिए.
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