देश में दिवाली का त्योहार बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है. यह त्योहार खुशी का प्रतीक है. हिन्दू धर्म के अनुसार दिवाली के दिन भगवान राम 14 वर्ष का वनवाश काट कर वापिस अयोध्या लौटे थे. जिसकी खुशी में तब से लेकर हर साल दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. लोग इस खुशी में अपने घरों में दिये भी जाते हैं. ताकि अंधकार को मिटाया जाए और घर में खुशियां आए. लेकिन एक गांव ऐसा भी जहां दिवाली के दिन लोग शोक मानते हैं. क्या है इसके पीछे की कहानी आइए जानते हैं.
मड़िहान तहसील के राजगढ़ क्षेत्र के अटारी गांव और उसके आसपास स्थित मटिहानी, मिशुनपुर, लालपुर, खोराडीह समेत करीब आधा दर्जन गांवों में दिवाली का त्योहार शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है. इन गांवों में रहने वाली करीब 8000 चौहान समाज की आबादी सैकड़ों सालों से इस परंपरा को निभाती आ रही है. यह समाज दिवाली के दिन शोक मनाने की परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी कायम रखे हुए है.
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दरअसल, चौहान समुदाय के लोग खुद को अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का वंशज मानते हैं. उनका मानना है कि दिवाली के दिन ही उनके सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या मोहम्मद गोरी ने की थी. उनके शव को गांधार ले जाकर दफनाया गया. इसलिए इस समाज के लोग इस दिन शोक मनाते हैं. अटारी गांव में ज्यादातर चौहान समुदाय के लोग रहते हैं. जिस वजह से इस गांव में दिवाली के दिन शोक मनाया जाता है.
इस गांव के लोगों का कहना है कि इस दिन हम अपने घरों में रोशनी नहीं करते और शोक मनाते हैं. दिवाली की बजाय हम लोग एकादशी (देव दिवाली) के दिन दिवाली मनाते हैं और उस दिन घरों में रोशनी करते हैं. अटारी गांव में ज्यादातर चौहान समुदाय के लोग रहते हैं. यहां के स्थानीय लोग आज भी अपने पूर्वजों की इस परंपरा को निभा रहे हैं.
सम्राट पृथ्वीराज चौहान कि हत्या के बाद इस गांव के लोग दिवाली नहीं मनाते हैं. क्योंकि पृथ्वीराज की हत्या कर दी गई थी, इसलिए एकादशी के दिन दिवाली मनाई जाती है. लोगों का कहना है कि पृथ्वीराज को अंधा कर दिया गया और गजनी ले जाया गया. वहां उनकी हत्या कर दी गई. हम दिवाली के दिन इस घटना पर शोक मनाते हैं.
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