सोनिया गांधी बीते दिनों जयपुर पहुंची हैं. वहीं मौजूदा समय में कई लोग या तो दिल्ली से बाहर चले गए हैं, या बाहर जाने का मन बना चुके हैं. ठंड शुरु होते ही दिल्ली-एनसीआर से हो रहे इस पलायन का मुख्य कारण प्रदूषण है. सीधी से बात है दिल्ली प्रदूषण की वजह से गैस चैंबर बनी हुई है. आलम ये है कि दिल्ली-एनसीआर की एयर क्वालिटी बेहद ही खराब है, जिसमें सांस लेना भी दुभर बना हुआ है. दिल्ली के इस प्रदूषण पर देश का राजनीतिक पारा भी गर्माया हुआ है.
केजरीवाल सरकार प्रदूषण के लिए केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है तो वहीं सुप्रीम कोर्ट पंजाब में पराली जलाने वाले किसानों को सजा देने का सुझाव दे चुका है. दिल्ली में प्रदूषण के इस पूरे कथानक में अब तक प्रदूषण के लिए किसानों को विलेन के तौर पर प्रचारित किया गया है, लेकिन प्रदूषण के मामले में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने गुरुवार को खरी-खरी बातें कहीं हैं. उपराज्यपाल ने भी माना है कि दिल्ली में प्रदूषण के विलेन किसान नहीं हैं.
दिल्ली के उपराज्यपाल यानी एलजी वीके सक्सेना ने गुरुवार को दिल्ली के प्रदूषण मामले में सोशल मीडिया साइट एक्स पर खरी-खरी बातें लिखी हैं. एक्स पर एलजी ने दिल्ली में प्रदूषण के लिए केजरीवाल सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने केजरीवाल सरकार पर घोर निष्क्रियता का आरोप लगाते हुए प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए केजरीवाल सरकार से ढोंग ना करते हुए कार्रवाई करने को कहा है.
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एक्स पर उन्होंने आगे कहा है कि दिल्ली सरकार दूसरे राज्यों से उड़कर आ रहे पराली के धुएं को रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकती है, लेकिन प्रदूषण को कम करने के लिए काम कर सकती है. एलजी ने दिल्ली सरकार को दिल्ली की टूटी-फूटी सड़कों, फुटपाथ, निर्माण स्थल से उठ रहे धुल के कणों को कम करने और वाहनों से निकलने वाले धुएं पर लगाम लगाने का सुझाव दिया है.
वहीं एलजी ने पंजाब की भगवंत मान सरकार पर भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का आरोप लगाया है. साथ ही एक्स में उन्होंने लिखा है कि दीपावली पर पटाखे जलाने से दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति बिगड़ी है.
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के लिए पराली के धुएं को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. तो वहीं प्रदूषण पर जारी राजनीतिक नूरा कुश्ती में अपने अपने खेतों को गेहूं बुवाई के लिए जल्दी तैयार करने की मजबूरी में पराली को आग लगा रहे किसान प्रदूषण के मुख्य विलेन बन गए हैं, लेकिन इस बीच दिल्ली के एलजी ने जिस साफगोई से केजरीवाल सरकार को दिल्ली के अंदर का प्रदूषण कम करने का सुझाव दिया है, उसे गंभीरता से लेने की जरूरत है.
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किसान तक लगातार इस मामले को प्रमुखता से उठाता रहा है और किसानों को प्रदूषण के लिए विलेन बनाए जाने की राजनीतिक साजिशों का विरोध करता रहा है. दिल्ली में प्रदूषण के मुख्य कारकों पर अगर सार्वजनिक चर्चा हो तो ये पानी की तरह साफ होगा कि प्रदूषण का मुख्य कारण पराली का धुआं नहीं है.
दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण की चर्चा दुनियाभर में है. वहीं इसके कारकों की पहचान के लिए पिछले कई वर्षो से काम जारी है. अभी तक जितनी भी रिपोर्ट दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण पर आई हैं, अमूमन सभी में गाड़ियों के धुएं को दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण का मुख्य कारण बताया गया है.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता निगरानी एजेंसी सफर ने दिल्ली के प्रदूषण को लेकर 2010 से 2018 तक के प्रदूषण का अध्ययन कर एक तुलनात्मक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें अप्रैल से सितंबर तक के प्रदूषण का अध्ययन किया गया था.
सफर ने अपने अध्ययन में पाया था कि वाहनों से निकलने वाला धुआं दिल्ली में प्रदूषण उत्सर्जन का मुख्य कारण है. सफर की रिपोर्ट के अनुसार वाहनों के धुएं की दिल्ली के प्रदूषण में 40 फीसदी की हिस्सेदारी है, जबकि इसके बाद उद्याेगों से उठने वाले धुएं की 24 फीसदी की हिस्सेदारी है, जबकि हवा के बहाव के साथ आने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी मात्र 10 फीसदी है.
इसके साथ ही सफर ने पाया था कि 2010 की तुलना में 2018 में वाहनों और उद्योगों से होने वाले प्रदूषण में 40 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि हवा के साथ आने वाले प्रदूषण में 20 फीसदी की कमी आई है.
बेशक ये अध्ययन अप्रैल से सितंबर के बीच किया गया था, लेकिन ये बताने के लिए काफी है कि वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले धुएं की दिल्ली के प्रदूषण में कितनी हिस्सेदारी है.
साथ ही ये रिपोर्ट ये बताती है कि दिल्ली में प्रदूषण सिर्फ अक्टूबर से शुरू नहीं होता है ये साल भर रहता है, जिसमें गर्मी का मौसम भी है. जबकि ये रिपोर्ट ये भी इशारा करती है कि हवा के बहाव के साथ आने वाले प्रदूषण पहले ज्यादा हुआ करता था, जिसमें पिछले दशक में गिरावट हुई है. हालांकि ये भी सच है कि पराली से उठने वाला धुआं 15 सितंबर से 15 नवंबर तक दिल्ली की हवा को खराब करता है.
मसलन पराली जलाने के पीक समय में जो औसतन 20 दिन होते हैं, उस समय पर प्रदूषण में पराली के धुएं की हिस्सेदारी सफर ने 40 फीसदी से अधिक दर्ज की है, लेकिन ये भी समझना होगा कि पराली का धुआं नवंबर के बाद खत्म हो जाता है, तो अमूमन हर दिसंबर और जनवरी के महीने भी दिल्ली गैस चैंबर बनी रहती है. ऐसे में जरूरी है कि पराली पर सियासत ना करते हुए दिल्ली के प्रदूषण को कम करने के लिए काम किया जाए.
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