अंग्रेज किसानों से जबरन नील की खेती करवाते हुए (AI image)15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ. आजादी के 79 साल बाद भी हम उनकी ओर से दिए गए दर्द को नहीं भुला पा रहे हैं. अंग्रेजों ने भारत की हर बेशकीमती चीजों को लूटा और उसे ब्रिटिश समेत अन्य यूरोपियन देशों में बेचा. उनकी क्रूरता झेलने वालों में सबसे अधिक देश का गरीब तबका शामिल रहा. अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान भारतीय किसानों के साथ भी खूब अत्याचार हुआ. उनकी जमीनों को लूटने के साथ ही उनके जी तोड़ काम भी लिया जाता था. किसानों से जबरन नील की खेती कराई जाती थी. नील की खेती इतिहास में किसानों के लिए एक दमनकारी और क्रूर व्यवस्था कही जाती है.
नील के खेती की शुरुआत साल 1777 में बंगाल से शुरू हुई थी. नील की खेती के नाम पर किसानों के साथ शोषण और कठोरता की जाती थी. इसके लिए किसानों को मजबूर किया जाता था. इस प्रणाली के तहत किसानों को अपने खेत की एक निश्चित हिस्से पर नील की खेती करनी ही होती थी, जिससे किसान अन्य खाद्य फसलों की खेती नहीं कर पाते थे.
नील की खेती से एक तरह जहां किसानों के साथ क्रूरता की जाती थी वहीं दूसरी ओर उन्हें खेती के लिए कर्ज भी दिया जाता था. किसान के ना चाहते हुए भी उसे लोन दिया जाता और भारी-भरकम ब्याज भी लगाया जाता था. मना करने पर हिंसा भी की जाती थी. इसके अलावा नील की खेती से मिट्टी की उर्वराशक्ति भी प्रभावित होती है.
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जिससे किसानों को भविष्य में फसल उगाने में मुश्किल होती थी. इसके अलावा अंग्रेज जो नील पैदा करते थे उसकी कीमत भी नाम मात्र की देते थे और कई बार देते भी नहीं थे. इससे किसानों में असंतोष और विद्रोह की भावना थी.
नील की खेती कराने के लिए अंग्रेज इतना आतुर क्यों थे, इसके बारे में ज्यादातर किसान आज भी नहीं जान पाते हैं. आपको बता दें कि अंग्रेज भारत में उगे नील को यूरोप भेजा करते थे जहां इसकी मुंहमांगी कीमत मिलती थी. यूरोप में नील की भारी मांग थी, खासकर औद्योगिक क्रांति के बाद कपड़ों को रंगने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था. जिसे "नीला सोना" भी कहा जाता था.
नील की खेती के लिए किसानों के साथ खूब शोषण हुआ. कई कठोर यातनाएं दी गईं जिसके बाद बंगाल के किसानों ने साल 1859 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया. इतिहास में इसे नील विद्रोह कहा जाता है. लेकिन इसके बाद भी इसकी खूब खेती कराई गई. बाद में 1917 में बिहार के चंपारण में सत्याग्रह शुरू हुआ जिसमें महात्मा गांधी ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया. बाद में 1930 में अमेरिका में नील का उत्पादन फैक्ट्री में होने लगा. इसके बाद खेतों में नील का उत्पादन बंद हो गया.
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