खुशहाल किसान ही बनाएंगे विकसित भारतभारत 2047 तक 'विकसित राष्ट्र' बनने का सपना देख रहा है, लेकिन यह सपना सिर्फ शहरों की ऊंची इमारतों से चमचमाती सड़कों से नहीं, बल्कि हमारे गांवों और खेतों से ही पूरा होगा. खेती-किसानी ही वह इंजन है जो देश की तरक्की की गाड़ी को आगे बढ़ाएगा. नीति आयोग के मुताबिक, आज भी हमारी लगभग 46% आबादी खेती से जुड़ी है और हम हर साल 1 अरब टन अनाज पैदा करते हैं. यह साबित करता है कि देश की सुरक्षा और रोजगार इसी पर टिका है. अगर हमें 2047 तक देश की कमाई (ग्रॉस नेशनल इनकम GNI) को पांच गुना बढ़ाना है, तो यह किसान की फसल की पैदावार और आमदनी बढ़ाए बिना नामुमकिन है. पिछले दशक में कृषि क्षेत्र ने 3-5 फीसदी की सालाना दर से विकास किया है. नीति आयोग के अनुमान के अनुसार 2047 तक यह क्षेत्र आकार में तीन गुना बड़ा हो सकता है. सच तो यह है कि जब किसान आगे बढ़ेगा, तभी देश विकसित बनेगा.
विकास की रफ्तार के बीच आज भी हमारे किसान भाइयों के पैरों में कई पुरानी बेड़ियां हैं. सबसे बड़ी अड़चन यह है कि देश के 86% किसान छोटे हैं, जिनके पास जमीन के इतने छोटे टुकड़े हैं कि वहां न तो बड़ी मशीनें चल सकती हैं और न ही आधुनिक खेती संभव हो पाती है. इसके ऊपर से पुराने तौर-तरीके, पानी की किल्लत और बिगड़ते मौसम ने—कभी सूखा तो कभी बेमौसम बारिश—किसानों की कमर तोड़ रखी है.
दुख तो तब होता है जब खून-पसीने से उगाई गई फसल मंडी पहुंचने से पहले ही रख-रखाव की कमी से बर्बाद हो जाती है. नीति आयोग के अनुसार साल 2022 में 18 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. रही-सही कसर वक्त पर पैसा न मिलने और फसल का सही भाव न मिलने जैसी दिक्कतों ने पूरी कर दी है, जिससे किसान खुलकर तरक्की नहीं कर पा रहे हैं.
खेती की शुरुआत 'बीज' से होती है. अगर बीज अच्छा हो, तो आधी जंग वहीं जीत ली जाती है. नए तरह के बीज कम जमीन में ज्यादा अनाज पैदा कर सकते हैं. इसलिए विज्ञान और रिसर्च से अब ऐसे बीज बीज तैयार किए जाएं जो कम जमीन में भी बंपर पैदावार दें. सबसे अच्छी बात यह है कि ये बीज खुद ही बीमारियों से लड़ सकते हैं, जिससे किसान का कीटनाशक का हजारों रुपये का खर्चा बच जाता है.
चाहे सूखा पड़े या बेमौसम बारिश, ये 'जलवायु-प्रतिरोधी' बीज खराब नहीं होते और अच्छी उपज देते हैं. इस तरह के बीजों के किस्मों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा और खोज की जाए. साथ ही, ये अनाज सिर्फ पेट नहीं भरते, बल्कि विटामिन और प्रोटीन से भरपूर होकर देश से कुपोषण मिटाने में भी मदद करते हैं. इसलिए बायोफोर्टिफाइड बीज को प्राथमिकता देना जरूरी है.
दूसरी ओर, अब 'कंप्यूटर वाला दिमाग' यानी एआई (A.) खेतों में पहुंचकर किसानों को 'स्मार्ट' बना रहा है. तेलंगाना का उदाहरण गवाह है. वहां एआई (A.I) की मदद से किसानों को सलाह दी गई. नतीजा यह हुआ कि पैदावार में 21% की बढ़ोतरी हुई. किसानों को दाम 11% ज्यादा मिले. खाद और दवाई के खर्च में 9% की कमी आई. इस तरह सही तकनीक से पैदावार बढ़ी और खर्चा कम हुआ.
एआई एक सच्चे साथी की तरह बताता है कि कब बुवाई करनी है. वहीं ड्रोन ऊपर से ही फसल की सेहत जांच लेते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि अब किसान का डिजिटल डेटा तैयार करना होगा, जिससे बैंकों से सस्ता लोन मिलना आसान हो जाएगा और साहूकारों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. सरकार भी 'किसान ड्रोन' और 'डिजिटल मिशन' के जरिए पूरा जोर लगा रही है ताकि यह हाई-टेक बदलाव हर गांव तक पहुंचे और खेती घाटे का नहीं, बल्कि मुनाफे का सौदा बने.
योजनाएं तो बहुत बन गई हैं और नई तकनीक भी आ चुकी है, लेकिन असली चुनौती यह है कि ये फायदे हर किसान के दरवाजे तक पहुंचें कैसे? आज भी बहुत से किसान इन सुविधाओं से अनजान हैं. केंद्र सरकार तो अच्छी नीयत से योजनाएं बना देती है, लेकिन राज्य स्तर पर बैठे अधिकारियों को भी अब अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी.
अक्सर देखा जाता है कि बेहतरीन योजनाएं सरकारी फाइलों और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं. हमें अधिकारियों की उस पुरानी मानसिकता को बदलना होगा जहां काम सिर्फ कागजों पर होता है. अगर बीच में बैठे भ्रष्ट तंत्र पर लगाम नहीं कसी गई, तो सरकार की सारी मेहनत पानी में चली जाएगी और किसान तक न तो मदद पहुंचेगी और न ही अच्छी गुणवत्ता वाली सुविधाएं. इसके लिए कड़ी निगरानी रखनी पड़ेगी. अब वक्त है कि योजनाएं दफ्तरों से निकलकर सीधे खेतों तक पहुंचें.
2047 तक भारत को एक विकसित देश बनाने का रास्ता हमारे खेतों और खलिहानों से ही होकर गुजरता है. अगर हम अपनी बुजुर्गों वाली खेती की समझ में आज के नए विज्ञान का तड़का लगा दें, तो सच में चमत्कार हो सकता है. असली जीत तब होगी जब हाई-टेक मशीनें, ड्रोन और डिजिटल सुविधाएं सिर्फ बड़े और अमीर किसानों की जागीर न बनकर उस छोटे किसान तक पहुxचें, जिसके पास एक एकड़ से भी कम जमीन है. जब किसान का खर्चा घटेगा, फसल सुरक्षित रहेगी और उसे अपनी मेहनत का पूरा दाम मिलेगा, तभी वह सिर्फ एक 'अन्नदाता' नहीं बल्कि एक सफल 'बिजनेसमैन' बन पाएगा. छोटे खेतों और मौसम की चुनौतियों को नई तकनीक से हराकर ही हम एक खुशहाल और सुरक्षित भविष्य की नींव रख सकते हैं—यही विकसित भारत का असली मंत्र है.
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