Basant Panchami 2023: इस साल 26 जनवरी को बसंत पंचमी मनाई जाएगी. देश भर में ऋतुराज बसंत की शुरुआत से जुड़ा ये दिन धूमधाम से मनाया जाता है. कहीं इसे वसंत पंचमी कहते हैं और कहीं इसे श्रीपंचमी के नाम से सेलिब्रेट किया जाता है. कहा जाता है कि इस दिन से सर्दी का मौसम विदा लेने लगता है और बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है. अब जानिए कि बसंत पंचमी को मनाने के पीछे वजह क्या है और इसका खेती-किसानी से क्या कनेक्शन है. आखिर किसानों के लिए यह दिन क्यों है खास और क्या हैं इससे जुड़ी परंपराएं-
हिंदू धर्म के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ज्ञान की देवी मां सरस्वती का जन्म हुआ था. इसी वजह से देश भर में इस दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन स्कूल, कॉलेज से लेकर मंदिर और घरों तक देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. बच्चों की पढ़ाई की शुरुआत करवाने के लिए भी यह दिन शुभ माना जाता है.
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हमारे देश में 6 ऋतुएं हैं- बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु और शिशिर ऋतु. इन सबमें बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है क्योंकि इस दौरान मौसम सबसे ज्यादा सुहावना होता है. धरती पर हर तरफ हरियाली दिखती है. इसी मौसम में रबी की प्रमुख फसल गेहूं और सरसों के खेतों को देखकर ऐसा लगता है मानों गेहूं ने हरे रंग की साड़ी पहनी हो और पीले रंग से भरे सरसों के खेत सोने जैसे लगते हैं. प्रकृति के इन रंगों के पीछे छिपी किसानों की मेहनत को सलाम और सेलिब्रेट करने के लिहाज से भी बसंत पंचमी एक अहम दिन बन जाता है.
अब देश में हल से खेती बहुत कम होती है, लेकिन देश में पहले ज्यादातर खेती हल की मदद से ही होती थी. इसके लिए हलवाहे यानी हल चलाने वाले की जरूरत होती थी. परंपरा और शगुन के तौर पर श्रीपंचमी के दिन ही हल की पूजा करके हलवाहे से खेत की जुताई करवाई जाती थी. जानने वाली बात ये भी है कि एक साल के करार के बाद अगर हलवाहे को अपना काम छोड़ना होता था या फिर जमींदार को अपना हलवाहे को बदलना होता था तो वह दिन भी श्रीपंचमी यानी बसंत पंचमी का ही होता था. इस दिन ना तो हलवाहा और ना ही जमींदार अपने वादे से मुकर सकते थे.
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