सावन के महीने में जब नाग पंचमी आती है, तो सांपों की पूजा की जाती है। यह त्योहार इस सोच को दिखाता है कि सांप हमारे दुश्मन नहीं, बल्कि प्रकृति के रक्षक हैं. गांवों और किसानों के बीच इन्हें दोस्त माना जाता है क्योंकि ये फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को खा जाते हैं. लेकिन फिर भी ज्यादातर लोग सांपों से डरते हैं. वो जैसे ही सांप को देखते हैं उन्हें मारने के लिए दौड़ पड़ते हैं. ऐसे में नाग पंचमी हमें यह याद दिलाती है कि सांपों की रक्षा करना जरूरी है — और अकोला के जयदीप उर्फ बाल कालणे इसकी जीती-जागती मिसाल हैं.
58 साल के बाज कालणे पिछले 30 सालों से बिना किसी लालच के अब तक 20 हजार से ज्यादा सांपों और सैकड़ों जंगली जानवरों को बचा चुके हैं. चाहे कोबरा हो, अजगर, नाग, जहरीले सांप या बिना जहर वाले सांप — उन्होंने सबको पकड़ा, उनकी देखभाल की और फिर उन्हें जंगल में छोड़ दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने नीलगाय, तेंदुआ, सांभर, हिरन, सियार, भालू जैसे कई जानवरों को भी बचाया है.
साल 2018 में उन्हें गले और जीभ का कैंसर हो गया. दो बड़े ऑपरेशन हुए और उनके शरीर की 79 फीसदी ताकत खत्म हो गई, लेकिन जानवरों की मदद करने का जोश कम नहीं हुआ. जिस दिन उन्हें कैंसर का पता चला, उसी शाम वो एक जहरीले सांप को पकड़ने निकल पड़े. अब भी, बोलने में दिक्कत होने के बावजूद जैसे ही किसी की कॉल आती है, वे अपनी बाइक लेकर तुरंत निकल पड़ते हैं — यही उनकी दीवानगी है.
उनके काम को पहचानते हुए उन्हें 'वाइल्डलाइफ वार्डन' के सम्मानित पद पर नियुक्त किया गया है. महाराष्ट्र के वन मंत्री और कई सामाजिक संगठनों ने उन्हें सम्मानित किया है. इंडिया वर्ल्ड रिकॉर्ड और वर्ल्ड ग्रेटेस्ट रिकॉर्ड ने भी उन्हें 'शारीरिक परेशानी के बावजूद सबसे ज्यादा जंगली जानवरों को बचाने वाला व्यक्ति' घोषित किया है.
जयदीप उर्फ बाल कालणे सिर्फ सांपों को पकड़कर जंगल में नहीं छोड़ते, बल्कि अगर कोई सांप घायल हो गया हो — जैसे किसी जानवर के हमले में या सड़क हादसे में — तो वो उसे डॉक्टर से इलाज दिलाकर पूरी तरह ठीक करके ही जंगल में छोड़ते हैं.
इस सफर में उनकी पत्नी दीपाली और बच्चों ने हमेशा उनका साथ दिया. जब कैंसर हुआ और परिवार ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो उनकी पत्नी ने कहा-जिसने इतने जानवरों की जान बचाई है, भगवान उसकी जान भी जरूर बचाएगा,' और ऐसा ही हुआ.
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