आज के समय में मुर्गी पालन लोगों और किसानों के लिए एक बेहतर व्यवसाय के रूप में उभर कर सामने आया है. मुर्गी पालन में मुर्गी के अलावा उसके बीट यानी मल का भी काफी महत्व है. आमतौर पर जानकारी न होने की वजह से मुर्गी पालने वाले किसान मुर्गियों की बीट को ऐसे ही फेंक देते हैं. लेकिन किसान ऐसा कतई न करें क्योंकि मुर्गियों की बीट से सबसे अधिक बायोगैस बनती है.
बायोगैस में मिथेन होता है. मुर्गियों की बीट से बनी बायोगैस का इस्तेमाल अब खाना पकाने, गाड़ियां चलाने और बिजली बनाने में होता है. वहीं मुर्गियों की बीट से बने बायोगैस के मामले में भूसा और सूखी पत्तियां सबसे फिसड्डी हैं. यानी इनसे गैस सबसे कम बनती है.
शोध के मुताबिक मुर्गियों की बीट की बात करें तो उसमें सबसे अधिक बायोगैस यानी मिथेन पाया जाता है. दरअसल मुर्गियों की 440 किलो बीट में 65 फीसदी तक बायोगैस पाया जाता है, जो अन्य चीजों की बीट और भूसा-सूखी पत्तियां से अधिक होता है. मुर्गियों की बीट के अलावा पशुओं के 400 किलो गोबर में 60 फीसदी बायोगैस पाई जाती है. वहीं 450 किलो सूखी पत्तियों में 44 फीसदी बायोगैस की मात्रा होती है. इसके अलावा 830 किलो भूसा में 46 फीसदी बायोगैस पाई जाती है.
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मुर्गी की बीट से बनी खाद सस्ती होने के साथ ही फसलों के लिए गुणकारी भी होती है. ये पूरी तरह से जैविक तो होती ही है, साथ ही इससे पैदावार भी बढ़ जाती है. मुर्गी पालन कर आप चिकन और अंडे से अच्छी कमाई तो कर ही सकते हैं, साथ ही उसकी बीट (मल) से भी अच्छी कमाई कर सकते हैं. खेती में इस खाद के उपयोग के बाद किसी अन्य खाद या उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है. इसकी खाद से फसलों का विकास काफी सही तरीके से होता है. इसके इस्तेमाल से फसलों की पैदावार में 20 से 25 फीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है.
बता दें कि जैसे-जैसे लोगों का जैविक खेती की ओर रुझान बढ़ रहा है, मुर्गी की बीट की मांग भी बढ़ती जा रही है. ऐसे में आप चाहें तो इसका इस्तेमाल मुर्गीपालन में कर अपने व्यवसाय को बढ़ा सकते हैं.
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