देश में पारंपरिक खेती से हटकर किसान अब बागवानी और औषधीय फसलों की खेती का महत्व समझ रहे हैं, क्योंकि इस श्रेणी की ज्यादातर फसले कम लागत में बहुत अधिक मुनाफा देने में सक्षम हैं. सरकार भी अपनी नीतियों के जरिए आयुर्वेद को बढ़ावा दे रही है. ऐसे में आने वाले समय में औषधी बनाने के लिए औषधीय फसलों की व्यवसायिक खेती की मांग बढ़ेगी और मुनाफे में भी बहुत इजाफा होगा. वर्तमान में ही अच्छी क्वालिटी की औषधीय फसलें उगाकर देशभर में कई किसान बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं. ऐसे में आज हम आपको मई माह में कुछ औषधीय फसलों की खेती और उनके रखरखास से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं. सबसे पहले तुलसी और सफेद मूसली की व्यवसायिक खेती के लिए जरूरी बातें जान लीजिए…
अगर आप अपने खेत या बगीचे में तुलसी और सफेद मूसली की खेती करने की प्लानिंग कर रहे हैं तो इनकी इनकी बुआई इसी महीने में कर सकते हैं. दोनों ही फायदेमंद औषधीय फसल हैं. अगर आप मई में तुलसी और सफेद मूसली की रोपाई कर रहे हैं तो यह काम दोपहर के बाद ही करें और रोपाई के बाद तुरंत खेत में सिंचाई करें.
वहीं अगर हल्की बारिश हुई है तो उस दिन तुलसी और सफेद मूसली की रोपाई करना एकदम सही माना जाता है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, एक हेक्टर में तुलसी और सफेद मूसली की खेती के लिए 750 ग्राम से 1 किलोग्राम तक तुलसी का बीज की जरूरत होती है. इन फसलों की रोपाई पंक्ति से पंक्ति में करनी चाहिए और पौधे से पौधे की दूरी 60×30 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए.
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मई महीने में मेंथा की फसल में 40 से 50 किलोग्राम नाइट्रोजन की तीसरी और अंतिम टॉप ड्रेसिंग जरूर करनी चाहिए. वहीं, मेंथा फसल की कटाई 100-120 दिनों में करना चाहिए या जब पौधों में कलियां बनने लगें तब कर सकते हैं. फसल की दूसरी कटाई, पहली कटाई के 70-80 दिनों के अंतराल के बाद करनी चाहिए.
जब मेंथा की कटाई करें तो इस बात ध्यान रखें कि पौधों की कटाई मिट्टी की सतह से 4-5 सेंटीमीटर ऊंचाई पर करें. फिर कटाई के बाद पौधों को 2-3 घंटे तक खुली धूप में छोड़ दें. कटाई के बाद फसल को छाया में हल्का सुखाएं और जल्द से जल्द आसवन विधि की जरिए मशीन से तेल निकाल लें.
वहीं, औषधीय फसलों की खेती के लिहाज से मई महीने में सर्पगंधा की नर्सरी लगाई जा सकती है. सर्पगंधा की रोपाई के लिए प्रति हेक्टेयर में 6 से 7 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.
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